बचपन के दिन

Thursday, July 20, 2017

आज मैं यहाँ प्रस्तुत करने जा रही हूँ, हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका 'हरिगंधा' के जुलाई अंक में प्रकाशित मेरा एक चोका...|

जो लोग चोका से अनजान हैं, उनको यहाँ पर बताती चलूँ कि चोका जापानी कविता की एक शैली  में रची जाने वाली लम्बी कविताएँ हैं। भारत में भी यह विधा बाकी जापानी शैली की विधाओं की तरह धीरे धीरे लोकप्रियता हासिल करती जा रही है | इन समस्त विधाओं को यहाँ प्रतिष्ठित करने में मुख्य योगदान देने वाले श्री रामेश्वर काम्बोज `हिमांशु' जी के अनुसार मूलत: चोका गाए जाते रहे हैं । चोका का वाचन उच्च स्वर में किया जाता रहा है ।यह प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।

इसका नियम इस प्रकार है -
5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि समापन करते समय इस क्रम के अन्त में वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । इस अन्त में जोड़े जाने वाले ताँका से पहले कविता की लम्बाई की सीमा नहीं है । इस कविता में मन के पूरे भाव आ सकते हैं ।
इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या [ODD] यानी 25-27-29-31……इत्यादि ही होता है|


बचपन के दिन

याद आते हैं
बचपन के दिन
खेलते हुए
लड़ना-झगड़ना
कुट्टी करना
फिर एक हो जाना
गुट्टी फोड़ना
गेंद-ताड़ी खेलते
गिर पड़ना
गिर के संभलना
मिट्टी के टीले
चढ़ के फिसलना
फूलों पे बैठी
तितली पकड़ना
हरी घास पे
लोटपोट होकर
ओस की बूँदें
आँखों पर मलना
माँ का हाथ से
हर कौर खिलाना
दूर देश की
कहानियाँ सुनाना
रात घिरे तो
तारों की छाँव तले
आँचल ओढ़
माँ से लिपट सोना
वक़्त गुज़रा
हम बड़े हो गए
गुम हो गई
पुरानी निशानियाँ
वो शरारतें
नानी की कहानियाँ
मन चाहता
काश! कोई लौटा दे
वो बीता पल
छोटी-छोटी खुशियाँ
नन्हें सपने
मासूम बदमाशी
पर पता है
फिर ऐसा होगा
जो चला गया
लौट के नहीं आता
यादें सताती
अब यूँ ही जीना है
मीठी यादों के संग...





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