क्या यह सही है...
Monday, February 13, 2012प्रिय मित्रों,
आज मैं आपके साथ हाल में ही अपनी एक सहेली के साथ हुई एक घटना का जिक्र करना चाहूँगी। बात मेरे ही मोहल्ले की है, सो जो कुछ हुआ उसे काफ़ी हद तक मैने भी देखा और जाना...।
घटना असल में मेरी सहेली के बेटे और मेरी एक दूसरी परिचिता की बेटी से जुड़ी है। एक बहुत ही मामूली सी बात का बतंगड़ कैसे बनाया जाता है, यह घटना इस बात का बहुत ज्वलन्त उदाहरण है। मेरे मोहल्ले में किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके बहुत बच्चे हैं, जो शायद तीन-चार साल की उम्र से साथ खेलते बड़े हुए हैं। उनमें से ज्यादातर एक ही स्कूल में पढ़ते भी हैं...कई तो एक ही क्लास में...। सो सब बच्चे एक ही बस में, एक ही स्टॉप से साथ-साथ जाते हैं। लाजमी है कि उनमें दोस्ताना अधिक ही है...। सो बस में भी हँसी-मज़ाक, धौल-धप्पा, एक-दूसरे के साथ सीट लेने की जद्दोजहद दूसरे बच्चों से कुछ ज्यादा ही है...।
तो मैं बात कर रही थी उन लड़का-लड़की की...। लड़की ने अभी पिछले ही साल अपना पुराना स्कूल बदल कर इस लड़के के स्कूल में दाखिला ले लिया। दोनो हमउम्र हैं, सो क्लास भी एक...बस सेक्शन अलग मिले...। किसी को कहीं कुछ भी बदला नहीं लग रहा था...। हाँ, ये दोनो बच्चे ज़रूर खुश हुए कि अब पढ़ाई में और आसानी होगी। एक नागा करेगा तो दूसरा तो है ही मदद को...। बस में भी अब दोनो एक दूसरे के साथ बैठने लगे थे...रास्ते भर कभी पढ़ाई, कभी दोस्तों, तो कभी यूँ ही किसी बात पर चर्चाएँ होने लगी...। स्टॉप पर बेटे को लेने-छोड़ने मेरी सहेली हमेशा जाती है। उन दोनो बच्चों की आपसी छेड़छाड़ में मेरी सहेली या उस स्टॉप पर आने वाली किसी और मम्मी को कभी कोई आपत्तिजनक बात नहीं लगी...न कभी किसी और बच्चे ने उन दोनो की किसी हरकत पर कोई एतराज़ जताया...।
चार-छः महीना सब ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन बच्चों की बस बदल कर दूसरी बस आने लगी। बच्चे वही थे, वही स्टॉप और वही माहौल...। पर बस की एक टीचर की नज़र में कुछ भी नॉर्मल नहीं था। मेरी सहेली का बेटा कुछ मज़ाकिया और मिलनसार स्वभाव का है...। माँ ने उसे कभी दुनिया के फ़रेब में नहीं डाला...। हाँ, क्या अच्छा है, क्या बुरा...सही-ग़लत वह उसे हमेशा समझाती है। बच्चों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा, लड़के-लड़की के बीच स्वस्थ मित्रता के लिए मेरी सहेली ने उसे कभी नहीं रोका...। शायद यही कारण है कि मेरी सहेली को अपने बेटे की सहेलियों के बारे में भी पता है...। उसने कभी बेटे के मन में विपरीत लिंग को लेकर हौव्वा नहीं डाला, क्योंकि उसका मानना है कि वर्ज़ित फल को चखने की चाह इंसान में ज़्यादा ही होती है, सो बेहतर है कि फल को वर्ज़ित करने की बजाय इंसान को यह पता होना चाहिए कि उस फल से क्या लाभ या हानि हो सकती है...ऐसे में इंसान हमेशा अपनी अंतरात्मा की सुनेगा और अंतरात्मा के फैसले ज़्यादातर सही ही होते हैं...। मेरी सहेली ने अपने बेटे को हमेशा अच्छे संस्कार दिए हैं और उसे भरोसा है कि शायद पूरी ज़िन्दगी में यही संस्कार उसे राह दिखाएँगे...।
पर बस में मौज़ूद वह टीचर दुनिया को थोड़े संकीर्ण नज़रिए से परखने पर यकीन करती हैं। उनकी निगाह में किसी भी उम्र के लड़के-लड़की में सिर्फ़ एक ही रिश्ता हो सकता है...ग़लत...। उन्हें दोनो बच्चों के एक साथ बैठने पर एतराज़ हुआ, सहेली को पता चला, उसने समझौतावादी रुख़ अपनाते हुए दोनो बच्चों को अलग बैठने की सलाह दी...। बेकार टीचर को नाराज़ क्यों करें...। उसे यह भी लगा, शायद यह दोनो बहुत शोर मचा लेते होंगे जिससे टीचर परेशान हो जाती होंगी...। पर फिर टीचर ने दोनो की आपसी बोलचाल भी बन्द करने को कह दिया...। पर दुनिया की गन्दी निगाह से बेखबर दोनो बच्चों ने इस बात को गम्भीरता से नहीं लिया। वे दोनो वैसे ही बोलते रहे...। जब वह टीचर अनुपस्थित हो जाती तो दोनो साथ बैठ भी जाते । पर बात उस दिन बिगड़ गई जब करीब आ रहे इम्तहान की तैयारी के लिए लड़के ने स्कूल से तीन दिनों की छुट्टी ले ली। उसकी कम्प्यूटर की कॉपी स्कूल में खो गई थी, सो उसने उस लड़की की कॉपी ली थी। चूँकि उसने वीक-एण्ड में छुट्टी ली थी तो मेरी सहेली ने ही उसे सलाह दी कि बस आने के समय चल कर फोटोकॉपी करा वह कॉपी उस लड़की को स्टॉप पर ही वापस कर दे ताकि उसे भी पढ़ने का हर्जा न हो। बेटे के साथ मेरी सहेली भी स्टॉप पर गई थी । टीचर ने बस रुकने पर मेरी सहेली को पूरी तरह नज़रअन्दाज़ करते हुए निगाह सिर्फ़ दोनो बच्चों पर गड़ाए रखी । उन्होंने मन में पूरी फ़िल्मी कल्पना कर डाली जहाँ हीरो हीरोइन को कुछ दिन न देखने पर बेचैन हो दुनिया की निगाहों से छिप कर उससे मिलने पहुँचता है...मैं तुझसे मिलने आई मन्दिर जाने के बहाने...स्टाइल...।
दूसरे दिन स्कूल पहुँच कर उस टीचर ने यह बात उन बच्चों की क्लास इंचार्ज तक पहुँचा दी...और भी न जाने किस-किस टीचर तक वह बात पहुँची...। क्लास इंचार्ज ने पहले तो उस लड़की को बुला कर सफ़ाई माँगी, फिर उन्होंने अपने सामने उस टीचर द्वारा पेश की गई बात लड़की की मम्मी को फोन करके बताई । इस अचानक वार से बौखलाई मम्मी को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने कह दिया कि वे दोनो बच्चे तो एक-दूसरे के भाई-बहन जैसे हैं...। खैर, उन टीचर ने उन्हें हिदायत दी कि जब तक दूसरी टीचर का शक़ दूर नहीं होता तब तक दोनो बच्चे आपस में बात न करें।
उन परिचिता ने यह बात तुरन्त मेरी सहेली को बताई...। सुन कर मेरी सहेली और उसका बेटा दोनो ही टेन्शन में आ गए...। बच्चा इस बात से परेशान था कि आज तक जैसा व्यवहार वह अपने दोस्तों से करता आ रहा था, वैसा ही तो उसके साथ भी कर रहा था...। फिर ऐसी चक्कर चलने वाली बात बीच में कहाँ से आ गई...? हार कर आखिर मेरी सहेली को भी अपने बेटे से कहना पड़ा कि अब से वह लड़कियों से थोड़ा दूरी ही बना कर चले, वरना आज बात इस लड़की की है, कल को दूसरी होगी...। इस बात का असर उन बच्चों पर इतना गहरा पड़ा कि जो बच्चे सहजता से एक-दूसरे के साथ हँस-बोल रहे थे, वही अपराधी की तरह आमना-सामना होने पर एक-दूसरे से मुँह फेर कर बैठ गए...। यही नहीं, बल्कि उसे बड़ा जान कर स्टॉप की एक मम्मी ने अपनी पाँच साल की बेटी का बस में ध्यान रखने की जिम्मेदारी मेरी सहेली के बेटे को दे रखी थी, उसने अब वह भी लेने से इंकार कर दिया यह कहते हुए कि ‘आण्टी, इसे मैं बच्चा समझ कर कई बार अपने ही पास बैठा लेता हूँ, पर किसी दिन मैम इसे लेकर भी मेरी बेइज्ज़ती न कर दें...। आप इसको देखे रहने का जिम्मा किसी और को सौंप दीजिए...।’
आगे क्या होगा, हम नहीं जानते...पर मेरी सहेली ने जो सवाल मेरे सामने उठाए, उन्हीं सवालों को मैं आपसे भी करना चाहूँगी कि क्या इस दृष्टिकोण से हम बच्चों के साफ़, स्वस्थ मस्तिष्क में एक ग़लत बात नहीं भर रहे...? जिन बच्चों ने आपस में हँसते-खेलते समय शायद एक-दूसरे को इस नज़र से देखा भी नहीं हो, उन्हें अपराधी महसूस करा कर क्या हम आइन्दा उन्हें विपरीत सेक्स के साथ सहज रहने की हिम्मत दे पाएँगे...? क्या एक लड़के और लड़की की स्वस्थ दोस्ती को भी समाज की बुरी नज़र से बचाने के लिए उसे भाई-बहन का नाम देना ज़रूरी है...? क्या वह टीचर पूरे स्कूल में उनकी बदनामी कर के अपना अच्छे शिक्षक होने का दायित्व पूरा कर रही हैं...? क्या यह लिंग-भेद को बढ़ावा नहीं कि अब वे ही नहीं, बल्कि इस घटना से वाकिफ़ हो चुके उस स्टॉप के बाकी बच्चे भी आपस में बोलने या बैठने से पहले यह देखने लगे हैं कि वे किसके साथ बैठ रहे...? क्या अब दो दोस्त सिर्फ़ इस कारण एक-दूसरे की मदद नहीं करेंगे कि उनमें से एक लड़का है तो दूसरी लड़की...?
इन सवालों के जवाब क्या होंगे, इनकी प्रतीक्षा मुझे भी रहेगी...।
26 comments
बीमार शिक्षक हमारी 90 फीसदी नई पीढ़ी को बीमार बनाने पर तुले हैं । ऐसे तालिबानी शिक्षकों का विरोध किया जाना चाहिए । किसी कक्षा में पढ़नेवाले दो बच्चे मित्र भी हो सकते हैं । अभी पिछले हफ़्ते 1989 बैच के मेरे कुछ छात्र एकत्र हुए । ये वे बच्चे हैं , जिनपर कुछ शिक्षकों की नज़र रहती थी । विद्यालय में मैं सर्वाधिक कठोर अनुशासन वाला शिक्षक था ; लेकिन यह 40-45 बच्चों का बैच मुझसे सबसे अधिक निकट था ।एकमात्र यही बैच ऐसा है जो आज भी मुझसे जुड़ा है । आज इनके बच्चे 11-12 वी कक्षा में पढ़ रहे हैं । सब अच्छे पदों पर हैं । एक दूसरे का सुख दुख पूछते हैं ।ये मुझसे भी उसी तरह जुड़े हैं जैसे एक दूसरे से । इनमें से एक तो मुमताज है जो खुद तो मेरा हर हफ़्ते हालचाल पूछती ही है, मेरे पूरे परिवार से मुझसे भी ज़्यादा बातें करती है।इनके श्रीमान भी हम सबसे अपने सुख दुख की बात करते हैं । अभिभावकों को चाहिए कि ऐसे कूपमण्डूकों का विरोध करें । इनके सामने झुककर अपनी सन्तान को माअसिक रूप से बीमार न बनाएँ । गलत प्रतिबन्ध विकृति को जन्म देते हैं।
ReplyDeleteIS TARAH KE COMMENT KARNE PAR ACHHE STUDENTS BHI SONCHNE PAR MAJBOOR HO JATE HAI KI AKHIR UNHONE AISI KAUN SI GALTI KAR DI HAI, JO DOSTI KE MAYNE SAMJHTE HAI UNKE MAN ME BHI BURE VICHAR ANE LAGTE HAIN, AUR BAT AHI AISE TEACHER KI TO AISE TEACHRON KO GHAR ME BAITHNE KI SALAH DENI CHAHIYE, JO SAMAJ KO GANDA KARNE KA KARYA KARTE HAI UNHE SCHOOL ANE KI JARURAT NAHI HAI.
ReplyDeleteसंकीर्ण मानसिकता बच्चों के स्वस्थ विकास में बहुत बाधक है, चाहे वह शिक्षकों में हो या माता पिता में. शिक्षकों की व्यक्तिगत कुंठाएं बच्चों के स्वस्थ मानसिक विकास से खिलवाड कर रही हैं.
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए मुझे ईमेल से भी निम्न टिप्पणी मिली, जो ऑस्ट्रेलिया से आदरणीय हरीश जोशी जी द्वारा भेजी गई है:-
ReplyDeleteIt's really a very nice " STUDY ".
1) Teacher,who was always looking at young boy and girl;was very narrow minded.
2) most of us,in our country are " Hypocrite ".
3) Would be " STARS " are lost in early stage.
4) Here,we experience " FREEDOM in behavioure among youth" but it is " NOT FREE SEX " ( As we say in our country.They are moving with a person of their own choice and not doing any thing wrong-
with any one else,going on road or in the street;even in late evening. While in our country GIRLS/LADIES are not that safe,though we claim that "We are a Developing COUNTRY ". They are happy in their own life. In our country, people are not happy in their own life and they also donot like others in " HAPPY SITUATION ".(Dusron ki KHUSHI BARDASHT NAHIN KAR PATE ).
I feel very pity for young BOY & GIRL of your friend in your near by area. Give the courage to face & fight with the situation. My BEST WISHES to them.
Kind Regards,
Harish Joshi
बालमन निष्कपट और निर्मल होता है|इस तरह की आहत करने वाली बातें उनके मन को बहुत ठेस पहुँचाती हैं, जिससे उनके भविष्य पर प्रभाव पड़ सकता है|अपनी सहेली को कहिए कि वे अपना पूर्ण विश्वास उन बच्चों के प्रति व्यक्त करें जिससे उनका आत्मविश्वास बना रहे|लोगों को बातें करने से रोका नहीं जा सकता...बच्चों को जरूरत है पैरेन्ट्स और घरवालों के सपोर्ट की|
ReplyDeletethis is one of the most interesting story... nd in india ppl think der is only 1 relation between a boy nd a gal.. dirty thinking... its totally our education problm...
ReplyDeletelove ur writing style nd ur lines u used.
this is one of the most interesting story... nd in india ppl think der is only 1 relation between a boy nd a gal.. dirty thinking... its totally our education problm...
ReplyDeletelove ur writing style nd ur lines u used.
बहुत सही सवाल है. ऐसे न जाने कितने सवाल हैं जिनके जवाब नहीं मिलते.
ReplyDeleteमैं प्रभात रंजन से सहमत हूँ। अलग अलग परिस्थितियों में एक ही बात को अलग तरीके से देखा जाता है। सिर्फ लड़के लड़की की दोस्ती नहीं और भी ढेरों बातें। कुल मिलाकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची हूँ कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति में संतुलन बनाए रखाना ही जिंदगी का नाम है। जितना ज्यादा हम बना सकेंगे उतने ही खुश रह सकेंगे। संतुलन ढेरों चीजों का होता है- भावनाओं का, भाषाओं का, संबंधों, भूगोल का, इतिहास का...
ReplyDeleteएकदम वाजिब सवाल हैं. इसीलिए मेरा मानना है कि शिछा सिर्फ डिग्रियों का नाम नहीं. ये खतरा और बढ़ जाता है जब शिछक खुली सोच के नहीं होते. मै अपनी बेटी के नाम के आगे सरनेम नहीं लगाती. आठ बरस की बेटी से साठ बार पूछा जा चुका है कि उसका सरनेम क्या है...एक दिन पता चला कि उसने अपने नाम के आगे अग्रवाल लगा लिया क्योंकि उसकी बेस्ट फ्रेंड अग्रवाल थी...आखिर मुझे टीचर और प्रिंसिपल से बात करनी पड़ी कि आइन्दा कोई टीचर और कोई बच्चा भी इस बारे में उससे कोई सवाल नहीं करेगा. बुनियादों में मजबूती अभी आई नहीं...फिर भी हमें कोशिश करते रहनी चाहिए. यही पीढ़ी तो आगे चलकर गर्व का कारन बनेगे. सोच को खोलना भी होगा और मजबूत भी करना होगा.
ReplyDeletePriyanka ji... i just want to say that.. ' Paancho ungaliya barabar nahi hoti' ayr us teacher ko abhi khud hi bahut kuch sekhne ki jaroorat hai shayad..!!
ReplyDeleteप्रियंका जी,
ReplyDeleteआपके इस विचारोत्तेजक लेख को पढ़कर अच्छा लगा। मेरा मानना है कि उक्त शिक्षिका ने अपनी समझ में जो किया सही ही किया –हाँ, ये ज़रूर है कि आपको (और आपके ज़रिए हमें) उन दोनों बच्चों के पुराने रिश्ते और उनके निश्छल तौर-तरीकों के बारे में जानकारी थी –इसलिए हमारे लिए उक्त शिक्षिका पर संकीर्ण मानसिकता का आरोप लगाना आसान हो जाता है। स्कूलों में अश्लील एम.एम.एस. से संबंधित घटनाएँ अक्सर सामने आती रहती हैं –और जो सामने आता है उससे कहीं अधिक तो छुपा रह जाता है। इसलिए उक्त शिक्षिका का ज़रूरत से अधिक सोचना पूर्णतया बेबुनियाद भी नहीं है।
लेकिन...
उक्त शिक्षिका ने एक अच्छे शिक्षक होने का उदाहरण पेश नहीं किया। जहाँ अपने छात्रों को भटकने से बचाना एक शिक्षक का दायित्व है –वहीं उनके लिए यह भी ज़रूरी है कि वे अपने छात्रों में पल रही कोमल और निर्मल भावनाओं को पोषण दें। उक्त शिक्षिका ने केवल अपने पुरानी जानकारी और संदेह के आधार पर कार्यवाही की –जो कि सर्वथा ग़लत है। आशा है कि उक्त शिक्षिका अपने जीवन से कुछ नए और बेहतर अनुभव पाएंगी और इस तरह के अविवेकी कार्य भविष्य में नहीं करेंगी।
शुभाकांक्षी
ललित
It will certainly have negative impact on the mind of kids , and they will remeber throughout there life . it should not have happened .. Deepak Tripathi..
ReplyDeleteme to ek teacher hone ke nate me to yahi kahungi ki ye ekdam galat hai .bachchon ka man komal hota hai usko ganda shayad ham hi karte hain
ReplyDeletebachchon ko sahi galat ka pata hona chahiye bas .is tarah ki baten galat mansikta ko janm deti hai aur bachche un baton ko sochne par majbur ho jate hain jinko kabhi socha hi na ho ..............
rachana
सबसे पहली बात की आपने पूरी बात को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। स्पष्ट और काफी रोचक लगा पढकर, इसके लिए आपको धन्यवाद। पढने के दौरान जो विजुअल खड़े हो रहे थे, वह आपकी सहजता को दर्शाता है। अब बात सब्जेक्ट पर।
ReplyDeleteकुछ लोगों को देखने का तरीका जैसा कि आपने बताया वह ऐसा कुछ वेसा ही है। असल में यह सब अतृप्त मन की ही उपज है। जो मन संतोष से नहीं भरा, जिसका अपना आंगन आनंद से खाली है, वह रिश्तों को लेकर या किसी और चीजों पर ऐसे ही संकीर्ण विचार प्रकट करते हैं। उनकी झोली ही ऐसी है, वह वही दे सकते हैं, यही उनकी संपदा है। लेकिन ऐसे विचार घातक होते हैं और अंत में आपने जो प्रश्न उठाए है, वह उसी चिंता को प्रकट करते हैं।
सबसे पहली बात की आपने पूरी बात को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। स्पष्ट और काफी रोचक लगा पढकर, इसके लिए आपको धन्यवाद। पढने के दौरान जो विजुअल खड़े हो रहे थे, वह आपकी सहजता को दर्शाता है। अब बात सब्जेक्ट पर।
ReplyDeleteकुछ लोगों को देखने का तरीका जैसा कि आपने बताया वह ऐसा कुछ वेसा ही है। असल में यह सब अतृप्त मन की ही उपज है। जो मन संतोष से नहीं भरा, जिसका अपना आंगन आनंद से खाली है, वह रिश्तों को लेकर या किसी और चीजों पर ऐसे ही संकीर्ण विचार प्रकट करते हैं। उनकी झोली ही ऐसी है, वह वही दे सकते हैं, यही उनकी संपदा है। लेकिन ऐसे विचार घातक होते हैं और अंत में आपने जो प्रश्न उठाए है, वह उसी चिंता को प्रकट करते हैं।
इस घटना और उसके माध्यम से इस समस्या को आपने बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है. जाहिर है कि टीचर को अपनी सोच बदलने की जरूरत है.
ReplyDeleteBahut badhiya lekh hai...aur sochniya bhi..Logon ki soch me badlaav laane ki zaroorat hai..mujhe to lagta hai ki jab wo teacher dusre ke bachhon ke baare me aisa soch sakti hai to apne bachhe ke saath kaisa vyavhaar karti hogi...!!!
ReplyDeleteTeachers hi to samaj ko badalne ka ek madhyam hain..agar unki soch aisi hogi to ek swasth samaj ki ummeed kaise aur kisse ki jaye...:(
Bahut badhiya lekh hai...aur sochniya bhi..Logon ki soch me badlaav laane ki zaroorat hai..mujhe to lagta hai ki jab wo teacher dusre ke bachhon ke baare me aisa soch sakti hai to apne bachhe ke saath kaisa vyavhaar karti hogi...!!!
ReplyDeleteTeachers hi to samaj ko badalne ka ek madhyam hain..agar unki soch aisi hogi to ek swasth samaj ki ummeed kaise aur kisse ki jaye...:(
सच में बेहद अफोसोजनक है..उस लड़के और लड़की के मन को ठेस तो पहुंची ही और गलत प्रभाव भी पड़ेगा.
ReplyDeleteललित जी की टिपण्णी भी अच्छी लगी..
हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज में भी एक ऐसे टीचर थे, जो लड़के को लड़कियों से बात करते देख लें, तो बहुत उपदेश देते थे.उनके नज़र में भी लड़के-लड़कियों की दोस्ती,कितनी भी अच्छी और साफ़ क्यों न हो उन्हें लगता था की ये गलत काम है..लेकिन हम इंजीनियरिंग में थे और आये दिन एक दो लड़के उस प्रोफ़ेसर को अच्छा ख़ासा जवाब दे ही देते थे..
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteप्यार की परवाह...
एक सही सवाल को आपने सटीक उदहारण देकर उठाया है. इस उदहारण में अध्यापिका निश्चय ही दोषी है. पर कई बार इसका उलट भी होता है. घर परिवार बच्चों के पारस्परिक व्यवहार से जनित वातावरण का प्रभाव से बच्चे बेहद उद्दंड हो जाते हैं, माँ-बाप ध्यान नहीं देते. बल्कि छोटी उम्र के बच्चों की गलत हरकतों में आनंद लेते हैं, वही हरकतें कुछ ही समय में परेशानी का सबब बन जाती हैं. एक स्कूल में एक ९ वीं क्लास का बच्चा अपनी माँ की उम्र की अपनी टीचर के लिए अपनी बाँहों पर बेहद आपत्तिजनक बातें लिख लाया, जब यह बात स्कूल प्रसाशन तक पहुंची, तो इससे पहले कि स्कूल प्रसाशन इस बारे में कुछ भी करता-सोचता, बच्चे ने सबूत मिटाने के लिए अपनी बांह को ही ब्लेड से खुरचकर लहूलुहान कर लिया. ९ वीं-१० वीं के बच्चो के पांच-सात बैंकों के ए टी एम् कार्ड और कई-कई हजार रुपये लेकर चलने, अनेकों कीमती सामान लेकर स्कूल आने आदि जैसी घटनाओं को क्या माँ-बाप के सहयोग के बिना रोका जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि घर, स्कूल और बच्चों के पारस्परिक व्यवहार में शामिल समूचे वातावरण पर ध्यान दिया जाये. स्कूलों में अध्यापक अपने दायित्यों एवं सीमाओं को पहचाने, तो माँ-बाप भी अपनी जिम्मेवारियों से मुंह न मोड़ें और बच्चों के साथ अपने-आपको जोड़कर चलें. आज के वातावरण में बच्चों के मनोविज्ञान को बहुत संजीदगी से समझने की जरूरत है.
ReplyDeleteham aage ja rahe hain par mansikta nahi bdal pa rahi...!!
ReplyDeleteये सवाल निश्चित ही समुचित चिन्तन मांगते हैं..सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteसंकीर्ण मानसिकता बच्चों के स्वस्थ्य विकास के लिये परेशानी का सबब बन जाती है. इस तरह के विचारों का विरोध किया जाना चाहिए.
ReplyDeleteयहां सभी लोग टीचर को दोषी ठहरा रहे हैंए जबकि किसी पत्नी का पति किसी सुंदर महिला से बात कर ले और यह सिलसिला रेग्यूलर चले या फिर किसी की पत्नी किसी नवयुवक से रेग्यूलर बात करने लगे फिर देखिये कि वही मानसिकता उन पति और पत्नी में में दिखार्इ देने लगती हैं। हमें अपने स्कूल या कालेज में केवल पढार्इ से ही अटेचमेंट रखना चाहिये यदि सहपाठी से भावनात्मकतौर से अटैच रहेंगे तो इसका परिणाम आये दिन बडे शहरों में जो कालेज के स्टूडेंट आत्महत्या और अपनी पे्रमिका को जान से मारने की सफल और असफल कोशिश करते हैं हम न्यूजपेपर में पढते हैं। यहां भोपाल में ही साल भर में इस तरह की ढेरों घटनाएं होती हैं। माता पिता आंसू बहाते रह जाते हंै।
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