अच्छे लोग भुलाए नहीं जाते...
Tuesday, January 24, 2012नया साल २०१२ जब आया तो बहुतों के लिए नई खुशियाँ, नई उमंगें लाया...पर यह खुशी, यह चहकन, यह उमंग अब की बरस हमारी गली ने महसूस नहीं किया...। न कोई कार्ड, न बधाई संदेश, न फोन...किसी माध्यम से भी किसी ने इस आते हुए साल की बधाई किसी को नहीं दी...। देते भी कैसे, जब इस साल ने आने के, या यूँ कहिए, कि २०११ ने जाने से ग्यारह दिन पहले हमारे मोहल्ले के एक सर्वप्रिय बुजुर्ग को हमसे अचानक ही छीन लिया...। कहने को उम्र ने उन्हें बुजुर्ग किया था, पर मन तो उनका अब भी वही था...मासूम बच्चे सा खिलखिलाने वाला, जवानों सा सदा खुश रहने वाला...। अपने परिवार से बेहद प्यार करने वाले, हर व्यसन से दूर रहने वाले मोंगा अंकल को मोहल्ले की बेटियाँ जितनी प्यारी थी, उतना ही प्यार उन्होंने अपनी बहू नीतू को भी दिया...। जिस बहू की आँखें उनके जाने के महीने भर बाद भी ‘डैडी जी’ की बात करते समय भर आए, गला रुंध सा जाए, उस बहू को उनसे कितना प्यार-दुलार मिला होगा, यह भी क्या बताने वाली बात है...?
मैं बात कर रही हूँ स्वर्गीय श्री इंद्रराज मोंगा जी की...यानि कि मेरे मोंगा अंकल...। लम्बा कद, बहुत गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे मोंगा अंकल...। अब भी इतने अच्छे लगते थे कि देखने वाला बरबस ही कह देता था कि जवानी में निश्चय ही बिल्कुल हीरो की तरह रहे होंगे...।
मूलतः रावलपिण्डी के रहने वाले मोंगा अंकल का परिवार विभाजन के बाद भारत आ गया था। वैसे तो उनका लगभाग सारा जीवन ही हिन्दुस्तान में बीता, पर गाहे-बगाहे अपने बहुत छुटपन के रावलपिण्डी के दिन भी उन्हें याद आ जाते थे। उनकी बातें बड़ी रोचक हुआ करती थी। धीरे-धीरे बोलने वाले मोंगा अंकल अचानक ही कोई ऐसी बात कहते कि सामने वाला खिलखिला कर हँस पड़ता...। बेहद खुशदिल इंसान थे वो...। मोहल्ले में ही क्या, कभी उनके परिवार वालों ने भी उन्हें किसी से तेज़ आवाज़ में बोलते या गुस्सा करते नहीं देखा था...। कभी किसी की बुराई करते भी हमने नहीं देखा था। उर्दू के बहुत अच्छे जानकार थे वो...सो मोहल्ले की ही एक बेटी को जब अपनी नौकरी के लिए उर्दू की जानकारी लेने की आवश्यकता महसूस हुई तो वह सीधे मोंगा अंकल के ही पास पहुँची थी...। एक दिन जब बातों-बातों में मैने उन्हें अपनी उर्दू पढ़े होने की बात बताई थी, तो वे बहुत खुश हुए थे...और फिर न जाने कितनी देर तक हम दोनो उर्दू की ही बातें करते रहे थे...। उन्होंने मुझसे भी कहा था, कभी उर्दू में कुछ न आ रहा हो, तो बेझिझक पूछ लेना। वे हमेशा मदद करने को तैयार रहते थे...।
NSI कानपुर में Chief Designing Officer की पोस्ट से रिटायर होने वाले मोंगा अंकल किसी समय में डॉक्टर बनना चाहते थे, पर ऐसा हुआ नहीं, सो हमेशा आगे बढ़ जाने वाले मोंगा अंकल ने कभी इस बात का मलाल भी नहीं किया। हाँ, biology में उनका ज्ञान और रुचि वैसे ही बनी रही। आज भी मुझे याद है कि कुछ साल पहले छुट्टियों में मेरे बेटे को biology का एक प्रोजेक्ट मिला था, जिसमें वह कुछ अटक गया था। मुझे मोंगा अंकल की याद आई थी और उन्होंने हर संभव मदद भी की थी।
पेड़-पौधों से उन्हें बेहद लगाव था। न केवल अपने घर की बागवानी का पूरा जिम्मा उन्होंने ले रखा था, बल्कि जब हमारे घर के सामने वाले पार्क का नवीनीकरण करने की ज़िम्मेदारी नगर निगम ने स्थानीय लोगों को सौंप दी, तो उसके लिए भी डिज़ाइन मोंगा अंकल ने ही तैयार किए। जब तक वे रहे, रोज़ ही पार्क में दिखते थे...कभी किसी पेड़ को संवारते हुए, कभी माली से किसी पेड़ के बारे में विचार-विमर्श करते हुए...।
जितने अच्छे ढंग से उन्होंने बगीचे को संवार रखा था, उतने ही साफ़-सुथरे, रौनक भरे वे खुद भी रहा करते थे। उनकी पत्नी यानि कि कंचन आँटी अक्सर कहा करती थी कि उन्हें गन्दे रूप में तो पूरे जीवन में उन्होंने नहीं देखा। सुबह तड़के ही उठ कर वे शेव करके, नहा-धोकर तैयार हो जाया करते थे। उनका यह क्रम उनकी अन्तिम साँस तक चला।
२० दिसम्बर २०११ की शाम पाँच बजे जब मोंगा अंकल के पड़ोस में रहने वाली खरे आँटी का फोन मेरे पास आया, मोंगा अंकल नहीं रहे, मैं सन्न रह गई...। उस समय रजाई में दुबकी मैं सो रही थी, सो लगा, कुछ ग़लत सुन लिया...। ऐसा कैसे हो सकता है...? दोपहर को ही तो छत से मैने उन्हें उनके बगीचे में देखा था, पेड़ की किसी पीली पड़ गई पत्ती को तोड़ते हुए...अच्छे-भले...। मुझे लगा, खरे आँटी शायद उनकी तबियत खराब होने के बारे में कह रही, मैं नींद से उठने के कारण समझ नहीं पा रही...। दो-तीन बार उनसे पूछा...हर बार वही...मोंगा अंकल नहीं रहे...।
मैने दौड़ कर मम्मी को बताया...सुन कर वे भी अवाक रह गई...। उनका भी वही सवाल...ग़लत तो नहीं सुन लिया...? वे तुरन्त कंचन आँटी के पास भागी। मुझसे कहा, तुम भी चलो, नीतू को संभाल लेना...तुम्हारी इतनी अच्छी सहेली है, पर मैं भरे गले से बस इतना ही कह पाई, आप जाइए...मैं नहीं जा पाऊँगी...। मैं मोंगा अंकल को ऐसे नहीं देख पाऊँगी...। जो मेरे पहुँचने पर सोते से भी उठ कर आए हैं, उन मोंगा अंकल को हमेशा के लिए सोता देखना...मेरे बस की बात नहीं...।
जिसने भी सुना, हतप्रभ रह गया। हर किसी के पास उनकी सिर्फ़ अच्छी यादें ही थी, क्योंकि बुरा तो उन्होंने किसी का किया ही नहीं था। उनके न रहने पर कंचन आँटी बस एक बात ही कह-कह कर, उन्हें याद करके रो रही थी कि ‘भगवान ने उन्हें एक तराशा हुआ हीरा दिया था, जो उनसे छिन गया...।’
सच ही तो कह रही थी आँटी...सच्ची में तराशा हुआ हीरा थे मोंगा अंकल...शायद भगवान को भी अपने मुकुट में सजाने के लिए उस हीरे की ज़रूरत पड़ गई हो...।
10 comments
कुछ व्यक्तित्व बहुत ही स्मरणीय होते हैं। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteएक संवेदनशील पोस्टिंग। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteनिश्चय ही उनका व्यक्तित्व स्मरणीय है...मेरी विनम्र श्रद्धांजलि|
ReplyDeleteachche vyaktiva ke malik the unko me shradhanjali
ReplyDeleterachana
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि|
ReplyDeleteबसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteअपने ब्लाग् को जोड़े यहां से EK BLOG SABKA
आशा है , आपको हमारा प्रयास पसन्द आएगा!
आपका यह संस्मरण बहुत जीवन्त है । अच्छे लोगों का इस तरह चल देना बहुत व्यथित कर देता है।
ReplyDeleteक्या कहूँ दीदी, ऐसे पोस्ट पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता..
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि!!
दिल में बस जातें हैं अच्छे लोग .लिखने से मन हल्का हो जाता है .सुकून मिलता इस बे -सुकून दुनिया में अच्छों को याद करके .
ReplyDeleteachche log dil men baste hain ...meri unko shradhanjali.
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