दुनियादारी सीखी गुलाब ने

Tuesday, November 15, 2011

नमस्कार,
कल बाल-दिवस था, यानि की बच्चों का दिन...| कई दिनों से मेरे कुछ मित्र मुझसे इस बात का आग्रह कर रहे थे कि मैं अपनी कुछ बाल-रचनाएँ भी इस ब्लॉग पर डालूँ...| उनकी बात भी सही है...| आखिर मैंने बचपन में लेखन की शुरुआत ही बाल रचनाओं से की थी...| तो अपने मित्रों का आग्रह पूरा करने का इससे अच्छा  अवसर क्या होगा...|
वैसे क्या सोचने का विषय यह नहीं है कि बच्चों के नाम, इस देश की भावी पीढ़ी के नाम, सिर्फ एक दिन...?


बालकथा
                                       दुनियादारी सीखी गुलाब ने
                                                                                                        प्रियंका गुप्ता



           सुबह की पहली किरण के साथ गुलाब की नन्ही-सी कली ने अपनी आँखें खोल कर धीरे से बाहर झाँका। ओस की बूंद उसकी आँखों में गिर पड़ी तो कली ने घबरा कर अपनी पंखुड़ियाँ फैला दी। अपनी लाल-लाल कोमल पंखुड़ियों पर वह खुद ही मुग्ध हो गई। थोड़ी देर इधर-उधर का नज़ारा देखने के बाद उसे कहीं से बातें करने की आवाज़ सुनाई दी। घूम कर देखा तो जूही और बेला के फूल आपस में बतिया रहे थे। गुलाब ने भी उनसे बातें करनी चाही,"बड़े भाइयों,"मैं भी आपसे बात करना चाहता हूँ...।"
           "तुम बेटे...अभी बच्चे हो," जूही -बेला के फूलों ने विनोद से झूमते हुए कहा,"थोड़ी दुनियादारी सीख लो तब शामिल होना हमारी मंडली में...।"
           वे फिर आपस में बातें करने लगे तो गुलाब ने सिर को झटका दिया,"हुँ...बच्चा हूँ...। कैसी बोरियत भरी दुनिया है...। क्या मेरा कोई दोस्त नहीं है...?" दुःखी होकर उसने सिर झुका लिया।


           "दुःखी क्यों होते हो दोस्त," कहीं से बड़ी प्यार-भरी आवाज़ आई,"हम तुम्हारे दोस्त हैं न...। तुम्हारे लिए हम पलकें बिछाए हुए हैं। आओ, हमारे दोस्त बन जाओ...।"
           गुलाब ने सिर उठा कर चारो तरफ़ देखा। कौन बोला ये? फिर अचानक काँटों को अपनी ओर मुख़ातिब पा उसने मुँह बिचका दिया,"दोस्ती और तुमसे...? शक्ल देखी है अपनी...? क्या मुकाबला है मेरा और तुम्हारा? न मेरे जैसा रूप, न कोमलता...और उस पर से मेरे लिए पलकें बिछाए बैठे हो...। न बाबा न, तुम्हारी पलकें तो मेरे नाजुक शरीर को चीर ही डालेंगी।"
           गुलाब की कड़वी बातों ने काँटों का दिल ही तोड़ दिया। पर उसे बच्चा समझ उन्होंने उसे माफ़ कर दिया और मुस्कराते रहे पर बोले कुछ नहीं।
           "पापा,देखो! कितना प्यारा गुलाब है...।" तीन वर्षीय बच्चे को अपनी तारीफ़ करते सुन कर गुलाब गर्व से और तन गया।
           ‘ऐसे ही प्यारे लोग मेरी दोस्ती के क़ाबिल हैं,’ गुलाब ने सोचा और काँटों की ओर देख कर व्यंग्य से मुस्करा दिया।
           "पापा, मैं तोड़ लूँ इसे? अपनी कॉपी में इसकी पंखुड़ियाँ रखूँगा।" बच्चे की बात सुन गुलाब सहम गया,"ओह! कोई तो मुझे तोड़े जाने से बचा लो...। आज ही तो मैने अपनी आँखें खोली हैं। अभी मैने देखा ही क्या है?" गुलाब ने आर्त स्वर में दुहाई दी,"मैं क्या बेमौत कष्टकारी मौत मारा जाऊँगा?"
           "नहीं दोस्त! काँटों की गंभीर आवाज़ सुनाई दी,"तुम चाहे हमें दोस्त समझो या न समझो, पर हम तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होने देंगे...।"
           इससे पहले कि बच्चे का हाथ गुलाब तोड़ पाता, काँटों ने अपनी बाँहें फैला दी। बच्चा चीख मारता हुआ, सहम कर वापस चला गया। गुलाब ने चैन की साँस ली।
           थोड़ी देर बाद बगीचे के फूलों के हँसी-ठहाकों में गुलाब और काँटों की सम्मिलित हँसी सबसे तेज़ थी।
           गुलाब अब दुनियादारी सीख चुका था...।





You Might Also Like

20 comments

  1. बहुत रोचक और शिक्षाप्रद प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  2. वाह प्रियंका जी,बड़े ही सरल और सहज ढंग से जीवन के उतार-चढ़ाव एवं सुख-दुख को बता दिया...बच्चे तो बच्चे, बड़े भी इससे सीख लेंगे...बहुत बहुत बधाई|
    प्रांजल को बालदिवस की शुभ कामनाएँ|

    ReplyDelete
  3. bahut hi sunder kahani .sochne pr majbur karti hai
    badhai
    rachana

    ReplyDelete
  4. एक अच्छी प्रेरणाप्रद बाल रचना !

    ReplyDelete
  5. अरे वाह..दोस्त हो तो ऐसे :)
    बहुत अच्छी और प्यारी कहानी :)

    ReplyDelete
  6. वाह प्रियंका जी,
    आपने इस छोटी सी कहानी में बहुत कुछ सफलता पूर्वक कह दिया है !
    सुन्दर शब्दों में पिरोई हुई बड़ी ही मासूम और शिक्षाप्रद कहानी है !
    आभार !

    ReplyDelete
  7. अच्छी प्रेरणाप्रद.

    ReplyDelete
  8. बहुत शिक्षाप्रद प्रस्तुति......

    ReplyDelete





  9. आदरणीया प्रियंका गुप्ता जी
    सादर सस्नेह अभिवादन !

    गुलाब अब दुनियादारी सीख चुका था...
    रोचक है यह बालकथा !

    गुलाब-कांटों के मध्य बालसुलभ संवाद सहज है … बाल पाठक को इन्हें पढ़ने में असुविधा नहीं हो सकती ।

    सार्थक सृजन हेतु साधुवाद !


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  10. प्रिय प्रियंका
    आपने बहुत अच्छी बालकथा लिखी है |
    सुंदर शब्दों में पिरोई ......दिल को छूने वाली !
    मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली ..........हर किसी में कोई न कोई गुण जरुर होता है भले ही वो कितना बुरा क्यों न हो !
    सुंदर लेखन पर बधाई !
    हरदीप

    ReplyDelete
  11. प्रियंका जी,...
    बहुत खूब,...सुंदर प्रेरणा देती शिक्षाप्रद कहानी...
    रोचक पोस्ट ...बधाई

    ReplyDelete
  12. रोचक प्रस्तुति,...नए पोस्ट के इंतजार में,..

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    आफिस में क्लर्क का, व्यापार में संपर्क का.
    जीवन में वर्क का, रेखाओं में कर्क का,
    कवि में बिहारी का, कथा में तिवारी का,
    सभा में दरवारी का,भोजन में तरकारी का.
    महत्व है,...

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

    ReplyDelete
  13. अच्छा लगा पढ़कर..

    ReplyDelete
  14. रोचक एंव शिक्षाप्रद रचना,
    नव वर्ष की शुभकामनायें
    vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

    ReplyDelete
  15. आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  16. kahani vishay vastu ke prati chaitanyta banatae pathak ki dilchaspi ko barkarar rakhti hai .

    badhai ke sath hi abhar.

    ReplyDelete
  17. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  18. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । एक-एक शब्द समवेत स्वर में बोल रहे हैं । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

    ReplyDelete