छुट्टी लेना पाप है....

Friday, February 20, 2009

Hi, सुधरी सी तबियत कल फिर ख़राब लगी...| पर सच कहू, शारीरिक तकलीफ के बावजूद मैं खुश हूँ| जानते है क्यो? क्योंकि मैं ईश्वर का धन्यवाद देती हूँ की मैं आजकल के किसी प्राइवेट इंजीनियरिंग या MBA कालेज में नही पढ़ रही...| अगर पढ़ती तो चैन से बीमार भी न पड़ पाती| पता नही आप में से कितनो को मालूम है इन कालेजो में पनपता नया ट्रेंड ...छुट्टी लो और fine भरो...| इस रकम की कोई सीमा नही...| 150 से लेकर 500 या 1000 रुपए प्रतिदिन तक , कुछ भी हो सकती है | फिर चाहे कोई मरे या जीए , मैनेजमेंट की बला से |
Delhi के एक MBA कालेज की एक घटना मेरे परिचित के मध्यम से मुझ तक पहुची| एक लडकी की शादी थी| किसी तरह उसने दो दिन की छुट्टी मंजूर कराई - एक दिन शादी का, एक दिन विदाई का...| पर हाय रे कालेज की मारी,नही जानती थी की उसे शादी जैसे फालतू (???) काम के लिए सिर्फ़ दो दिन की छुट्टी मिली है...| उसके बाद के रीति-रिवाज , ससुराल के कायदे-क़ानून, उसके व् उसके परिवार के सपने...इन सब के लिए उसे कोई इजाज़त नही| ये सब जाए चूल्हे-भाड़ में...कालेज की बला से...| सो बेचारी अनजान लड़की ने इन सब के चलते चार दिनों की छुट्टी और ले ली| तो फिर भरना पड़ा fine दो हजार रुपयों का, ५०० प्रतिदिन के हिसाब से| उसका परिवार आया , साथी आए, मैनेजमेंट के आगे छुट्टी की वजह रखी गई, पर न कुछ होना था, न हुआ...|कुछ और भी घटनाए है जिनमे दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में भी आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रो ने छुट्टी नही ली, आख़िर fine कैसे भरते?
ऐसी एक दो खबरे और भी है, पर सही मायनों में वे खबरे इस लिए नही बनी क्यों की ऐसे मामलो में हमें कोई दिलचस्पी नही| कौन सा हमें fine भरना पड़ा और जिसने भरा, वह अपना भाग्य मान कर चुप्पी साध गया|
मै पूछती हूँ, ऐसी मनमानी क्यो? हर जगह, चाहे वह कोई स्कूल-कालेज हो या office , उपस्थिति-अनुपस्थिति का एक तय अनुपात होता है| क्या हमारे इस लोकतांत्रिक देश में किसी को बीमार पड़ने की भी इजाज़त नही? क्या यह हमारी भावी पीढी को भावनाहीन बनाने की साजिश नही? घर-परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों-साथियो में कोई मरे या जिए... छुट्टी लेने का मतलब - कालेज के खाते में थोडी और बढोतरी...| आखिर इस बेमतलब, नाजायज कदम का मतलब/ मकसद...? मानती हूँ, इस से कालेजो में उपस्थिति १००% हो जाएगी, शायद result
भी अच्छे जाए, पर किस कीमत पर...क्या इंसानियत की...?
सोचना आपको है और करना हम सब को है| है न!!!!
आपकी priyanka

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3 comments

  1. kripya likhte samay colour ka dhian rakhen boodon ki aankhon par bahut strain padta hai

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  2. hi,sorry kahna chahugi agar mere blog ka pehle vala template padhne me takleef deta tha...umeed hai, yah naya roop accha lagega...comments ke liye shukriya...

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  3. सटीक . धन्यवाद.

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