यादों के झरोखे से- (सात)

Wednesday, September 04, 2024

विशेष- बिना किसी लाग-लपेट के अगर सच कहूँ तो  मेरी माँ यानि प्रेम गुप्ता 'मानी' हर रिश्ते पूरी शिद्दत से निभाना जानती थीं। सिर्फ यही वजह है, शायद, जो उनके करीबी संपर्क में रहे हर व्यक्ति के दिल में उनकी यादों का एक कोना बन गया है। फिर चाहे उस व्यक्ति से मानी का खून का रिश्ता रहा हो, या मन का...सबने सहर्ष रूप से उनसे जुड़ी अपने मन की किसी-न-किसी बात को मुझसे साझा किया, जिसे मैं यहाँ सिलसिलेवार रूप से प्रस्तुत कर रही हूँ। 

आज प्रस्तुत है मानी के लाडले भतीजे अंकुर उर्फ़ चिंटू की भावनाएँ... जिन्हें उसने शब्दों में पिरोने की कोशिश की है। अगर आप मेरे ब्लॉग पर आते हैं तो आपने चिंटू के बचपन की कई मज़ेदार घटनाओं को 'मेरी यादें' के अंतर्गत पढ़ा ही होगा। 

-प्रियंका 


                    बड़ी बुआ के लिए एक प्यार भरी स्मृति

                                        -अंकुर वैश्य

अंकुर अपनी पत्नी मीनाक्षी के साथ 

 

मेरी प्यारी बड़ी बुआ, सिर्फ़ एक बुआ नहीं थीं, वो मेरे जीवन का एक अटूट हिस्सा थीं, जिनसे हमेशा अपनापन और स्नेह मिला। कानपुर में उनका घर मेरे लिए हमेशा एक ऐसी जगह रहा, जहाँ हँसी-मज़ाक़, पारिवारिक अपनापन, अनगिनत बातें, और उनका स्नेह भरा आशीर्वाद हर चीज़ को सही बना देता था।

 

पिछले साल, जब वो हमें छोड़कर चली गईं, उसके कुछ महीनों पहले मैं कानपुर आया था कुछ निजी काम से। यह छोटी सी यात्रा थी, और जल्दी के चलते मैं उनसे मिलने नहीं जा पाया। यह अजीब था, क्योंकि जब भी मैं कानपुर आता था, उनसे मिलना जैसे एक रिवाज था, जो मैंने कभी नहीं छोड़ा था। लेकिन इस बार, किसी कारणवश, मैं उनसे मिलने नहीं गया।

 

जब बड़ी बुआ को पता चला कि मैं कानपुर आया था और उनसे मिलने नहीं गया, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। वो बहुत समझदार थीं, हर छोटी बात को अक्सर एक मुस्कान के साथ नज़रअंदाज़ कर देती थीं। लेकिन इस बार कुछ अलग था। शायद उन्हें मेरी ज़रूरत थी, कुछ कहना था, या शायद वो मुझे इस बार ज़्यादा याद कर रही थीं। जो भी हो, मेरे उनसे न मिलने ने उन्हें दुखी कर दिया, और यह जानकर मेरा दिल भारी हो गया।

 

जैसे ही मुझे परिवार से पता चला कि बड़ी बुआ मुझसे नाराज़ हैं, मैंने तुरंत उनसे मिलने का फैसला किया। अगले ही कानपुर दौरे पर मैं सीधे उनके पास गया, और जो भी गलतफहमियाँ थीं, उन्हें दूर करने की कोशिश की। मैंने उन्हें यकीन दिलाया कि मैं उन्हें दुखी करने का कभी इरादा नहीं रख सकता था। वो इंसान, जिन्होंने मुझे एक नवजात शिशु से एक समझदार वयस्क होने तक पल-पल बड़े होते देखा, मेरे बचपन की तमाम शरारतों को सहा, और मुझसे बेइंतहा प्यार किया, मैं उन्हें कैसे भूल सकता था। मैंने उनसे वादा किया कि अब मैं कभी उनसे मिलने का मौका नहीं छोड़ूंगा।

 

लेकिन ज़िंदगी, जो अक्सर अप्रत्याशित और कठोर होती है, कुछ और ही सोचकर बैठी थी। कुछ ही महीनों बाद बड़ी बुआ हमें छोड़कर चली गईं। उनके जाने का सदमा मुझे उम्मीद से कहीं ज्यादा लगा। उनके जाने के बाद एक खालीपन, एक गहरा अफसोस, और एक तड़प मेरे दिल में रह गई, जिसे मैं हमेशा महसूस करूँगा। काश! मुझे पता होता कि हमारा समय इतना सीमित था, तो मैं उनके साथ और समय बिताता, कितने खुशनुमा पल साझा करता, और ज़्यादा यादें बनाता।


बड़ी बुआ का जाना मुझे एक सबक सिखा गया, जिसे मैं दूसरों को बताना चाहता हूँ: अपने प्रियजनों को प्यार करें, उन्हें अपने पास रखें, और उनकी मौजूदगी को कभी हल्के में न लें। सही समय या मौके का इंतज़ार न करें—उनके लिए समय निकालें, उनसे मिलने के मौके बनाएँ। उनसे मिलने जाएँ, उनसे बातें करें, उन्हें बताएँ कि वो आपके लिए कितने महत्त्वपूर्ण  हैं, क्योंकि आप कभी नहीं जानते कि कब वह आखिरी मौका हो सकता है।

 

मैं आपको बहुत याद करता हूँ, बड़ी बुआ। आपकी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी, मुझे सिखाएँगी कि अपने प्यार करने वालों को संभालकर रखना चाहिए, जैसे आपने मुझे हमेशा संभालकर रखा।

 

आपका चिंटू  

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