बह चली हैं यादें...फिर किसी बहाने से...

Friday, February 20, 2015

प्रशान्त प्रियदर्शी के ‘दो बजिया बैराग्य’ और फिर उसी के बाद अभिषेक के ‘कुछ पुरानी यादों के नशे में’...इन दोनो ब्लॉग पोस्ट्स ने मुझे भी अचानक बच्चों द्वारा पैर दबाने को लेकर एक मज़ेदार घटना याद दिला दी । वैसे बचपन में यूँ पैरों पर चढ़ कर मैने भी अपने घर के बड़ों के खूब पैर दाबे हैं ( इस तरह के पैर दबाने को मेरे यहाँ ‘पैर कचरना’ कहते हैं ) । पर आज बात खुद की नही कर रही, बल्कि अपने छोटे ममेरे भाई अंकुर उर्फ़ चिन्टू की कर रही...।

बात उस समय की है जब चिन्टू शायद पाँचेक साल का था । उसे मीज़िल्स निकल आई थी । तब जिस किराए के मकान में हम लोग रहा करते थे, वो नानी के मकान के सामने की गली में ही था । सो आने-जाने के लिए कुछ सोचना भी नहीं पड़ता था । नानी के घर के सब लोग कॉलेज़-ऑफ़िस चले जाते थे, मामी भी नौकरीपेशा थी, सो घर की और चिन्टू-पिंकी की देखभाल का सारा जिम्मा अकेले नानी के कंधों पर रहता था । मीज़िल्स के तेज़ बुखार और तकलीफ़ में चिन्टू को लगातार देखभाल की ज़रूरत थी, सो जल्दी-जल्दी अपने घर का काम निपटा माँ नानी के यहाँ पहुँच जाती और स्कूल से आते ही मैं भी...। कुछ दिन की अच्छी तरह देखभाल के बाद जब चिन्टू पूरी तौर से ठीक हो गया तो एक दिन जाने उसको क्या सूझा कि नानी से (यानि अपनी दादी से, जिन्हें जाने किसकी देखा-देखी वो माँ कहता था उस समय, बाद में ये माँ ‘माँजी’ में परिवर्तित हो गया ।) एक कटोरी में सरसों का तेल लेकर आ गया ।

(लाल नेकर में चिंटू...बहन पिंकी के साथ...)
सबसे पहले बारी आई उसकी चौबीसों घण्टे सेवा-सुश्रुषा करने वाली नानी की...। उनको बिस्तर पर बड़े कायदे से लिटा कर चिन्टू ने अपने नन्हें-नन्हें हाथों से उनके पैर में तेल लगा कर मालिश शुरू कर दी । जाहिर है, नन्हें हाथों में गज़ब का जादू होता है । थोड़ी ही देर में थकी-माँदी नानी गहरी नींद सो गई तो उसकी सेवा-भावना का अगला लाभ मिला उसकी बड़ी बुआ यानि मेरी माँ को...। उनका पैर भी बड़ी मेहनत से दबाया गया । माँ तो वैसे ही बाल-मज़दूरी के ख़िलाफ़ थी, पर यह स्व-घोषित बाल-मज़दूर तो उनके लाख मना करने के बावजूद कुछ भी सुनने-मानने को तैयार नहीं था । आखिरकार जब उसको यक़ीन हो गया कि बड़े प्यार-दुलार से हमेशा उसका ध्यान रखने वाली बड़ी बुआ के पैरों का दर्द भी गायब हो चुका है तो अपने ‘जादू वाले हाथ’ लेकर वो मेरी ओर मुड़ा ।

(आँखों में एक शरारती चमक लिए चिंटू...मेरे साथ...)

अभी तक मैं उसको ऐसे सेवा करते देख मज़े ले रही थी, पर उसके चेहरे से ये भी साफ़ जाहिर हो रहा था कि वो बेहद थक चुका है । अतः मैने उसकी सेवा लेने से साफ़ मना कर दिया । पर उसके सौ तरह के नाज़-नख़रे उठाने...उसके साथ खेलने-खाने वाली ‘दिद्दा’ का कोई ज़ोर कभी चला था क्या उसकी बालहठ के सामने, जो उस पल चल जाता । हार कर मैं भी मन के किसी कोने के हल्के से लालच के साथ चुपचाप लेट गई कि चलो...उन छोटे-छोटे जादुई हाथों का कमाल मैं भी देख लूँ...। बड़े मनोयोग से उसने मेरे दोनो पैरों पर अच्छी-खासी मात्रा में बचा हुआ सारा तेल लगा डाला...। मेरे तेल-पुते पैरों पर मात्र दो-तीन बार हाथ घुमा कर थक चुके चिन्टू महाशय बड़ी नफ़ासत से उठे, एक ज़ोरदार अँगड़ाई ली और आकर मेरे कानों में फुसफुसाए," दिद्दाऽऽऽ...अब इसको सूखने दो...। फिर दबा देंगे...।"

यूँ सूचना देकर अपने कर्तव्य और सेवा की इतिश्री करते हुए चिन्टू गए और नानी की बगल में अपनी नन्हीं-मुन्नी तकिया रख, पास में रखी अपनी दूध की बोतल मुँह में दबाए गुटर-गुटर दूध पीते हुए चन्द पलों में ही गहरी नींद में चले गए...।


आज इतने वर्षों बाद भी जब कभी किसी को तेल मालिश करते-करवाते देखती हूँ तो बरबस ये घटना याद आ जाती है । आज हम सब किसी काम को न करने के सौ बहाने गढ़ते हैं, सैकड़ों एक्स्प्लेनेशन देते हैं...पर ‘तेल सूखने’ का ऐसा मासूम और अनोखा एक्स्प्लेनेशन किसी ने कभी दिया होगा क्या...
(चिंटू...आज...)


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5 comments

  1. हाहाहा मज़ा आ गया :) वैरी वैरी स्वीट रे :)

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  2. हा हा हा.. तेल तो अभी तक नहीं सूखा होगा दीदी, है ना? :)

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  3. बड़े चिंटू ने पढ़ी ये पोस्ट ?:)
    बड़ी प्यारी यादें .

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  4. सूखने दो फिर दबा देंगे......हा हा हा
    पढ़ कर बहुत मजा आया

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