जय हो....

Tuesday, February 24, 2009

hi, आख़िर slumdog millionaire ने भारतीयों की आँखों में बरसो से पल रहे ऑस्कर के सपने को हकीकत में बदल hi दिया| बधाई, सभी को...| विजेताओ में तिन पूर्णत भारतीय है...A.R.रहमान, गुलज़ार और पोकुत्ति...उनका अभिनन्दन...|जिन विकास स्वरूप के उपन्यास -Q & A-पर यह फ़िल्म बनी...उन्हें भी ढेरो बधाईया...| Danny Boyle को भी जिन्हों ने बड़ी खूबसूरती से भारतीयों को उनके चहरे की बदसूरती से रूबरू करा दिया|
हम बहुत खुश है की विदेशी पुरस्कार हमारी झोली में आया| कब से तरस रहे थे इसके लिए| देशी पुरस्कार वैसे भी इतने हो गए है की " घर की मुर्गी दल बराबर" वाली बात हो गई है|
अब कुछ दिल की कहू? क्या अपनी बदसूरती को ठीक करने के लिए महंगा से महंगा प्रोडक्ट इस्तेमाल करने वाला आम भारतीय देश की बदसूरती को निखारने के लिए कुछ करेगा? क्या एक विदेशी द्वारा हमेशा की तरह देश की बदहाली को highlight करने से हम थोडी शर्मिंदगी महसूस कर कुछ सुधारना चाहेगे? ये तो वक़्त बताएगा...|
दूसरी बात...ऐसा क्यो होता है की किसी भारतीय को इंटरनेशनल लेवल पर पहचान तभी मिल पाती है जब उसके सर पर किसी विदेशी का हाथ हो? slumdog millionaire में नीव और ताना-बना भले ही भारतीय हो , है तो वह एक विदेशी फ़िल्म ही न? यही हल smile Pinki का भी है| उसका निर्माता भी एक अमेरिकी ही है | आख़िर एक भारतीय निर्माता -निर्देशक की फ़िल्म ऑस्कर क्यो नही पाती? सच्चाई तो यह है की पूर्णत भारतीय फ़िल्म को वहाँ के जूरी मेंबर देखने का कष्ट ही नही उठाते, तो उसके पक्ष में वोट क्या देगे? " लगान" और "तारे ज़मीं पर" जैसी फिल्म क्या नयापन लिए हुए, कसी पटकथा, अच्छे निर्देशन वाली फिल्मे नही थी? पर उनमे देश की तंगहाली नही थी, गरीबी नही थी...| एक में थी विदेशी ताक़त से लड़ कर जितने की लगन और दुसरे में किसी बच्चे को अपने ही ढंग से mainstream में लेन की जिजीविषा...| क्या आपको भी कही-न-कही मेरी बात सच नही लग रही? बताइयेगा ज़रूर...|
फिर भी, चाहे कुछ हो, कोई कुछ भी कहे या सोचे, एक बार smile करते हुए कहे ज़रूर- जय हो....|

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