यादों के झरोखे से- कुछ अपनों के मन की (छह)

Sunday, September 29, 2024

 

विशेष- आज माँ के लिए कुछ अपनों की बातों और यादों के सिलसिले में प्रस्तुत है, मेरी बेहद खास और प्यारी सहेली- शिखा शुक्ला के मन की बातें...। शिखा मेरे बचपन की वो सहेली है, जिससे उम्र के एक काफ़ी आगे के पड़ाव पर आकर ही मिलना हो पाया। हम संपर्क में थे, बातें करते थे...लेकिन फिर भी मज़े की बात यह थी कि इन सबके बावजूद हमारे घर (मायके) कितने करीब हैं, यह पता चलते-चलते भी समय लग गया। शिखा का मायका मेरे ननिहाल के ठीक सामने है...और यह भी तब पता चला जब मेरा इसके साथ पहली बार कहीं निकलने का प्रोग्राम बना। नानी के घर के पास के एक शिव-मंदिर पर मिलने और फिर वहीं से साथ चलने के प्लान के कारण मैं पहले तो माँ के साथ ननिहाल गई, फिर तय समय पर माँ मुझे नियत जगह तक लेकर पहुँची। इसके पीछे मेरी बेहद सतर्क और नर्वस स्वभाव वाली माँ का मुख्य मकसद था कि जिस लड़की के साथ उनकी बेटी पूरे दिन के लिए कहीं घूमेगी, उससे वह खुद भी मिल तो लें। शिखा ने माँ को ड्राइविंग सीट पर बैठे देखा, तो उसके मुस्कराते-प्यारे से चेहरे पर एक आश्चर्य उभर आया...आंटी, आप ड्राइविंग करती हैं? माँ ने भी हँसकर ‘हाँ’ कहा और फिर यूँ ही पूछ लिया... तुम्हारा घर यहीं कहीं पास में है क्या? शिखा ने मुड़कर अपने घर की तरफ इशारा किया...वो, सामने...जिस घर पर लाल रंग वाला झंडा दिख रहा न, वही है मेरा घर...। मैं अचानक चहक उठी...अरे! उसके सामने वाला वो घर ही तो मेरी नानी का घर है...। और लो! पता चला, सब एक-दूसरे को बरसों से जानते हैं। सच कहूँ, तो इस बात से सबसे ज़्यादा निश्चिंत माँ हो गईं...।

उसके बाद का दिन और जब तक माँ रहीं, तब तक का दिन...अगर मुझे सहेलियों के साथ कहीं भी जाना होता था और ज़ाहिर था, हम सब आलसी सहेलियों का कहीं जाने-आने का कार्यक्रम सिर्फ शिखा के आने पर ही बन पाता था, तो ऐसे में बस शिखा का मेरे साथ में होना ही माँ की निश्चिंतता के लिए काफ़ी होता था। यहाँ तक कि कभी देर भी होने लगती, तो मेरा बस इतना कहना भर काफ़ी होता था...मम्मी, शिखा भी साथ है।

शिखा के कारण ही मेरी सहेलियों का मेरे घर आना और माँ के साथ समय बिताने की भी कुछ बेहद खूबसूरत यादें बन पाई। सच कहूँ तो शिखा हम सब सहेलियों के लिए फेविकोल की तरह है, जब भी मिलती है, हम सबको अपने साथ मजबूती से जोड़ लेती है।

माँ से कम मिल पाने के बावजूद मेरी इस प्यारी सखी का उनके साथ एक अलग-ही तरह का अपनापन था। माँ इसकी हर पोस्ट, हर रील और हर शेरो-शायरी ज़रूर देखती थी...और इसकी हर एक चीज़ को देखकर बिल्कुल उसी तरह खुश होती थीं, मानो यह भी उनकी ही बेटी हो। शायद यह मन का ही नाता था कि माँ के जाने के दो महीना पहले ही कानपुर आने पर इत्तेफाकन ही इसने उनके साथ न केवल लगभग पंद्रह-बीस मिनट का समय बिताया, बल्कि उतनी ही देर में उनसे जाने कितनी बातें भी कर डाली।

मुझे पता है, माँ जहाँ कहीं भी होंगी, मेरे साथ-साथ शिखा की भी हर सफलता, हर उन्नति पर उसी तरह खुश होते हुए उसे भी अपना प्यार और आशीर्वाद ज़रूर भेजती होंगी।

-प्रियंका   

 

                      प्रेम आंटी की याद में

                                         -शिखा शुक्ला

माँ के हाथों उनका कहानी संग्रह 'बाबूजी का चश्मा' लेते हुए शिखा 


कुछ लोग जीवन में एक खुशनुमा हवा के झोंके से आते हैं, बुझे हुए चेहरे पर अपनी बातों से ताज़गी महसूस करवाते हैं, खूबसूरत पल और मीठी यादें दे जाते हैं l चाहे कुछ ही पल उनके साथ बिताएँ हों हमने, जीवन के उन सुंदर पलों में होते हैं जो जीवन भर याद रहते हैं l प्रेम आंटी भी उन खास लोगों में थीं मेरे लिए l आंटी मुझे प्रियंका जैसी दोस्त के माध्यम से मिली ज़रूर क्योंकि उसकी प्यारी माँ थीं लेकिन मुझ से उनका एक अलग ही दिल का कनेक्शन था, बेहद प्यारा वाला l आन्टी को जब पहली बार मिली तब वो प्रियंका को मेरे पास कार से छोड़ने आई थीं, बात तो ज़्यादा नहीं हुई उनसे लेकिन उनका कांफिडेंस देख कर मेरे चेहरे पर खुशी व रेस्पेक्ट वाले भाव आ गये l उसके बाद जब भी मैं आन्टी जी से मिली एक अनोखा तेज़ दिखता था, बेहद स्मार्ट पर्सनैलिटी और aura था उनका l बहुत बार कॉल पर बात हुई उनसे, इतनी फ़िक्र रहती थी उन्हें मेरी बिल्कुल जैसे प्रियंका की रहती होगी, हमेशा मुझे अपना ख्याल रखने की सलाह देती थीं, बिल्कुल माँ की तरहl  प्रियंका मेरे साथ कहीं भी जाती बेफिक्री से भेज दिया करती थीं, कितनी लेट भी हम लौटें डाँट नहीं पड़ती थी, हाँ सावधान रहने की सलाह हम दोनो को मिलती थी, ज़ाहिर सी बात है l उनकी लिखी हुई किताब 'बाबूजी का चश्मा' उन्हीं के हाथों से पाकर बच्चों जैसी खुश हुई थी मैं क्योंकि वो इतनी महान लेखिका थींl जितनी बड़ी लेखिका, उतनी ही सरल और सौम्य थीं हमारी प्रेम आन्टी l बहुत सारी खूबसूरत यादें हैं आन्टी की जिन्हें मैं सदा अपने मन में प्रेम से सहेजे रहूँगीl प्रियंका और मेरा दोस्ती से बढ़ कर मन का और अब तो माँओं भी रिश्ता हो गया है l हम एक दूसरे के माध्यम से माँ को अपनी बातों में याद करते रहेंगे l प्रेम आन्टी आई लव यू, विल आल्वेज़ लव यू , आप हम सब पर अपना प्यार सदा बनाए रखना ❤🙏

आपकी प्यारी शिखा

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