यादों के धागे

Monday, August 14, 2017


यादों के धागों से
बाँध रखे हैं कुछ लम्हें
जेबों में सम्हाल के रखे हुए
खनकते हैं गाहे-बगाहे
जेबें भारी हो रही
मेरे मन की तरह
सोचती हूँ
वक़्त से उधार ले लूँ
एक गुल्लक
सब लम्हें वहीँ जमा कर दूँगी
और जब होऊँगी तन्हा कभी
गुल्लक से निकालूँगी यादें
ज़रूरत भर को
और फिर
तुम्हारे आने पर
हम कर देंगे वापस वो लम्हें
गुल्लक में;
कुछ ब्याज तो दोगे न तुम ?

-प्रियंका गुप्ता 

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