यादों के झरोखे से - कुछ अपनों के मन की (दो)

Wednesday, September 11, 2024

 विशेष- नीलम सिंह यानि रुचि से हमारा परिचय लगभग दस साल पुराना है। शुरुआत बस एक मामूली-सी लगने वाली जान-पहचान से हुई, लेकिन एक-डेढ़ महीने की चंद मुलाकातों में जाने क्या और कैसे हुआ कि यह माँ (प्रेम गुप्ता 'मानी') के लिए उनकी छोटी बेटी सरीखी हो गई। रुचि को भी कुछ तो ऐसा लगा ही होगा कि किसी और की माँ के लिए आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला 'आंटी' का सम्बोधन देने की बजाय इसने माँ को - अम्मा- के आत्मीय सम्बोधन से बाँध लिया। मैं इसकी बड़ी बहन हो गई और माँ का घर मेरे साथ-साथ इसका भी मायका बन गया। 

हम लोगों के बीच विधि ने खून का रिश्ता तो नहीं बनाया, लेकिन आपस में मन के रिश्ते की एक ऐसी मजबूत डोर से जोड़  दिया जो किसी भी खून के रिश्ते पर भारी पड़ेगा। 

आज भी अक्सर हम दोनों ही माँ की यादें मिलकर जीते हैं...उन्हें मिस करते हैं...। कुछेक बार मेरे आँसू पोंछते हुए यह खुद भी रोई है और फिर हम दोनों ने ही एक-दूसरे को सम्हाल लिया है। 

आज अपनी इस छोटी बहन की भावनाओं को यहाँ साझा करते हुए जाने क्यों माँ का मुस्कराता चेहरा भी सामने आ रहा। रुचि के लिए ढेर सारा प्यार...। 

-प्रियंका 



                            मेरा मन का मायका

                                           -नीलम सिंह (रुचि)

 

नीलम सिंह उर्फ़ रुचि

प्रियंका दीदी ने मुझसे बोला कि मैं अम्मा यानि उनकी मम्मी प्रेम गुप्ता ‘मानी’ के लिए अपने मन की कुछ बातें लिखकर दूँ। मैंने शुरू से उनको ‘अम्मा’ ही कहकर बुलाया, कभी भी आंटी नहीं कहा।

 

सच कहूँ तो मुझे अभी भी नहीं लगता कि अम्मा अब हमारे बीच नहीं हैं। लगता है अभी भी उनकी आवाज मेरे कानों में गूँज रही है। मेरे लिए वो आवाज़ जिंदा ही है। अम्मा मेरे लिए कभी past नहीं हो सकतीं, मेरे लिए वो हमेशा present और future ही हैं।

 

मैं कभी नहीं भूल सकती कि वो मेरे दुख में किस तरह मुझे सांत्वना देकर मुझे protect करतीं और एक पल के लिए उस समय ऐसा ही लगता जैसे सब कुछ ठीक हो गया है। मेरी छोटी-से-छोटी चिंता में वो भी बहुत परेशान हो जाती, फिर मुझको समझाती कि चिंता करने से मेरे ऊपर ही बुरा असर होगा, चिंता न करो, सब अपने समय से ठीक हो जाएगा। मेरी परेशानियों और दुखों में वो healing जैसा असर करती।

 

मैं चाहे खाना खाकर उनके पास जाऊँ, या ऐसे ही पहुँच जाऊँ, वो एक माँ की तरह ही मेरे खाने को लेकर चिंतित हो जाती। मेरे मना करने पर मेरे स्वास्थ्य के लिए उनका चिंतित होना, यह सोचना कि मैं संकोच कर रही और बार-बार मुझे यही कहना कि जैसे यह प्रियंका दीदी का मायका है, वैसे ही मेरा भी है। ये सब कुछ ऐसी बातें थीं जिनके कारण मेरा लगाव उनसे बहुत बढ़ गया था। मैं हफ्ता, दस दिन बीतते-बीतते अपनी ड्यूटी से लौटते समय अक्सर दस मिनट के लिए ही उनके पास मिलने पहुँच जाती, और वो हमेशा की तरह मुझे जो भी घर में मौजूद होता, खिलाये बिना संतुष्ट नहीं होती। अगर कभी पंद्रह दिनों से ऊपर होने लगता तो वो मेरे लिए चिंता करने लगती और मुझे फोन मिलाकर, हालचाल लेकर तसल्ली कर लेती। फोन रखते-रखते वो मुझसे मिलने आने को भी ज़रूर बोलती और मैं फिर ड्यूटी जाते या लौटते समय कुछ देर के लिए उनसे मिल आती।

 

इतना सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था, पर 2023 के अगस्त में जाने भाग्य ने कौन सा खेल खेला कि मैं अम्मा के दरवाज़े तक पहुँचकर, दीदी से मिलकर अम्मा से मिले बिना ही फिर आने का बोलकर अपने काम से चली गई। उस दिन मुझे बहुत ज़रूरी काम था, दीदी ने गेट खोला और मुझे अंदर आने को कहा ही था, कि तभी मेरे काम वाला फोन आ गया। मैं अंदर घुसते-घुसते हड़बड़ाकर अचानक से वापस मुड़ गई, ये कहते हुए कि जल्दी ही आती हूँ। मुझे पता था कि अम्मा मुझे खिलाने-पिलाने के लिए परेशान होंगी ही और कहीं मेरा काम अटक न जाए, इसी चक्कर में मैं अंदर न जा पाई। मुझे क्या पता था कि अनहोनी मुझे उस दिन के बाद अम्मा के रहते उनसे मिलने ही न देगी। कुछ ऐसा इत्तेफाक हुआ कि अगले दस दिन न तो मैं फोन कर पाई, न मिलने जा पाई। उसके बाद बस उस मनहूस सुबह प्रियंका दीदी का फोन आया, जिसकी कभी उम्मीद नहीं थी।

 

आज वो नहीं हैं, पर अब भी जब कभी उनके घर की गली के पास से भी गुज़रती हूँ तो उनका चेहरा और उनकी आवाज़ मेरे मन को स्पर्श कर जाती है। जब भी उनके घर दीदी के पास जाती हूँ, लगता है अभी कहीं किसी कोने से निकलकर वो आएँगी और मुझे देखते ही खुश हो जाएँगी। पर ऐसा कुछ नहीं होता। भले ही उन्होंने मुझे जन्म न दिया हो, लेकिन एक माँ का ही दुलार, प्यार और स्नेह किया और जब उनके जाने का समय आया तो मैं उनसे मिल भी न सकी। यह मेरी बदनसीबी ही तो थी।

 

वो नहीं रही, यह सुनकर भी न मैं तब विश्वास कर पा रही थी, न अब।

 

Love you Amma, forever.

प्रियंका दीदी और चुनमुन के साथ-साथ आप मुझे भी बहुत याद आती हैं।

 

आपकी मानस बेटी,

रुचि

 

 

 

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