पानी रे पानी...
Sunday, March 22, 2009Hi, आज अन्तर्राष्ट्रिय जल दिवस है...यानी एक अवसर और इस बात को याद रखने का की "बिन पानी सब सून..."
कितना अजीब लगता है कि जीवन की मूलभूत ज़रूरतों की महत्ता समझने के लिए भी हमें दिवस मनाने पड़ते है...| लेकिन जैसे भी जागो, जागो तो...वरना कही बहुत देर न हो जाए|
पिछली बार मैंने आप से गंगा मेला तक के लिए विदा ली थी, सोंचा था कि उसी दिन आप सब से फिर मुखातिब हूँगी...पर कुछ कारणवश वादा अधूरा ही रह गया...| तो फिर आज पानी की बात चली ही है तो पानी के त्यौहार होली की अनोखी कनपुरिया परम्परा-गंगा मेला-के बारे में कुछ बातें...
गंगा मेला की शुरुआत अंग्रेजों के ज़माने में हुई | इसके पीछे की कथा भी कुछ कम रोचक नही...| बताते है कि अंग्रेजों ने कानपुर में होली के त्यौहार पर बैन लगा दिया था...सन मुझे याद नहीं...| हटिया के बाबू गुलाबचंद समेत बहुत सारे आज़ादी के दीवाने अंग्रेजों की इस दादागिरी के ख़िलाफ़ बगावत करते हुए गिरफ्तार हुए...| तभी विरोधस्वरूप तय किया गया कि जब तक उन सब लोगो को रिहा नहीं किया जाएगा और इस तुगलकी फरमान को वापस नही लिया जाएगा, होली मनाई जाती रहेगी...| कानपुरवासियों ने रोज होली खेली और अंत में जनता के आगे अंग्रेजों को घुटने टेकने ही पड़े और होली के आठवें दिन, अनुराधा नक्षत्र में उन सारे लोगो को रिहा कर दिया गया और उस खुशी में उस दिन सबसे ज्यादा रंग खेला गया...| तभी से हर साल कानपुर में आठ दिनों तक आप हर दिन रंगीन कर सकते है...किसी को भी गले लगा कर कह सकते है..." बुरा न मानो होली है..."| गमो से भरे इस दौर में चंद पलों के लिए ही सही, रंगे-पुते चेहरों को देख कर ही रंगीनी और खुशी का अहसास कर सकते है...|
तो आज आप सब को इतना ही...अपना ख्याल रखे....और साथ में पानी भी...
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