आपन तेज़ सम्हारो आपे...
Wednesday, April 05, 2017
आज आपको एक कहानी सुनाने का दिल कर रहा...| बहुत
पहले की बात है, जब किसी जंगल में एक बेहद ज़हरीले साँप का सामना एक बहुत सिद्ध
महात्मा से हुआ...| साँप अपनी फितरत का मारा...महात्मा को भी उसने कोई साधारण
इंसान समझ के डसना चाहा...| अब सिर्फ हमसे-आपसे ही थोड़ी न भूल होती है इंसान
पहचानने में...कभी-कभी जानवर भी ऐसे ही गलतियाँ कर जाते हैं...| अब जब उसने अपनी शक्ति
के दंभ में बाबाजी से पंगा लेने की कोशिश की, तो उन्होंने भी अपनी ताक़त दिखा दी,
और उसे मन्त्र के बल पर अवश कर दिया...| अब साँप बहुत रोया-तड़पा, हाथ पैर जोड़े तो
महात्मा ने उसे इस वायदे के साथ बंधनमुक्त किया कि अब आइन्दा वो किसी निर्दोष को
नहीं सतायेगा |
काफी वक्त बीत गया | साँप ने अपना वायदा निभाया और
किसी को भी नहीं डसा...| धीरे-धीरे आसपास के इलाकों में ये बात फैल गई और फिर तो
सब एकदम ढीठ हो गए | अब तो छोटे-छोटे बच्चे भी ख़ास तौर से उसके पास जाते, उसे
कोंचते...वह जान बचा कर भागना चाहता तो ईंट-पत्थर मार मार कर उसे लहुलुहान कर
देते...| हालात इतने बिगड़े कि साँप बिलकुल मरणासन्न हो गया | उसमे इतनी ताक़त भी
नहीं बची थी कि वह अपने बिल के अन्दर भी जा सकता...| आखिरकार उसे मरा जान कर
बच्चों ने उधर आना छोड़ दिया |
साँप अपनी आख़िरी साँसे गिन रहा था कि उन्हीं
महात्मा का फिर उसी रास्ते से गुज़रना हुआ | साँप की ऐसी दुर्दशा देख कर वे चकित रह
गए | पहले तो उसका इलाज किया, फिर सब हाल सुन कर उन्होंने माथा पीट लिया | जब साँप
के होशोहवास दुरुस्त हुए तब उन्होंने समझाया...मैंने तुम्हें किसी निर्दोष को
बेवजह सताने को मना किया था...अपनी शक्ति का अहसास दुनिया को करने से थोड़े न रोका
था...| इस दुनिया की नब्ज़ पकड़ना सीखो, यहाँ तुम जितना झुकोगे, दुनिया तुमको उससे
ज़्यादा झुकाएगी...| इतना कि एक दिन तुम खुद भूल जाओगे कि तुम असल में थे क्या...|
साँप को बाबा जी की बात समझ आ गई | उसके बाद से
उसने दोनों काम किए...| पहला तो किसी को बेवजह सताया या डसा नहीं, और दूसरा...किसी
को बिना बात खुद पर हावी होते देख उसने फन काढने के साथ ही फुफकारना शुरू कर दिया |
उस दिन से सबके दिन बहुर गए...| कोई न तो
अकारण मरा, और न साँप का जीवन किसी खतरे में पड़ा...|
अब आप ये सोच रहे होंगे कि आज मै ये कहानी क्यों
सुना रही...? इसकी एक वजह है...| अक्सर हम-आप भी इसी साँप की तरह हो जाते हैं...| सामने वाले
के आगे विनम्र होते-होते हम अपनी क़ाबिलियत दर्शाना भी भूल जाते हैं...| जबकि सामने
वाला हमे कोई भाव न देता हुआ हावी ही होता चला जाता है...| कुछ इतना कि हमारा दम घुटने
लगे |
तो बस याद रखिए...जब और जहाँ ज़रुरत हो, अपने फन भी
काढिये और एक ज़ोरदार फुफकार भी मारिए...|
कभी-कभी नाग होने में कोई बुराई नहीं...|
2 comments
इसीलिए कहते है ,सांप अगर जेहरीला न भी हो तो भी उसे अपने आप को जेहरिला दिखाना चाहिए क्यूंकि बाकी के लोग ऐसे जीने नहीं देंगे .....कुछ ऐसा ही हमारे साथ reality में भी होता है ..... बढ़िया लिखा ... ऐसे ही लिखते रहिये
ReplyDeleteशुक्रिया
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