चन्दा भी तू...और सूरज भी तू...

Sunday, February 21, 2016

‘घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए...’
बरसों पहले जब निदा फ़ाज़ली साहब ने ये लाइन लिखी होगी, निश्चय ही उनके मन में ख़ुदा...भगवान या गॉड की कल्पना ही साकार हुई होगी...। एक बच्चे में भगवान बसता है, ये कितना सही है...इसे वही इंसान पूरी शिद्दत से महसूस कर सकता है जिसने एक नन्हें फ़रिश्ते को किसी भी रिश्ते में अपने करीब जाना हो...।

अपना बचपन तो, चाहे वो अच्छा रहा हो या बुरा, सभी जीते हैं...पर बड़े होने के बाद एक बार हमें ऐसा खूबसूरत मौका फिर तभी मिलता है जब हमको एक नए रिश्ते के रूप में अपना बचपन वापस मिलता है...। फिर चाहे वह हमारी अपनी औलाद हो...हमारा भानजा/भानजी...भतीजा/ भतीजी...या फिर नाती-पोता का नाम लेकर हम तक वापस आ जाए...। बच्चा और बचपन...दोनो ही हर नाम, हर रिश्ते में बेहद खुशनुमा अहसास से लबरेज़ होते हैं...।

मैने अपने अब तक के जीवन में अपना बचपन कई-कई बार जीने का खूबसूरत मौका हासिल किया है...। पहली बार तब, जब मैं बचपन बस पार ही कर रही थी और मेरे छोटे भाई के रूप में चिन्टू को मैंने मात्र ढाई घण्टे की उम्र में अपनी बाँहों में लिया था। खुद के उस रूप की तो बिल्कुल भी याद नहीं थी (कितना स्वभाविक है न...?), पर अपने बाद उतना छोटा बच्चा मैंने पहली बार देखा था। लगातार तीन घण्टों तक मैने उसे अपने से अलग नहीं किया था। बार-बार उसके नन्हें-नन्हें कोमल हाथ-पैर-चेहरे को मैं कितने एहतियात से सहलाते हुए आह्लादित हो रही थी, बिल्कुल साफ़-साफ़ आज भी याद है...। अब ये बात और है कि आज दाढ़ी-मूँछ वाले छः फुटे चिन्टू के आगे खुद मैं ही छोटी सी लगने लगी हूँ...।

दूसरा मौका मुझे अपने बचपन के करीब जाने का तब मिला था, जब चुनमुन मेरी गोद में आया। उसकी बेइन्तिहा बदमाशियों के कारण हँसते-चीखते-झल्लाते-खेलते-मुस्कराते दिन कैसे बीतते थे, याद ही नहीं...। उसको कहानियाँ सुनाते कितनी बालकथाएँ मैने रच दी...कितने भूले-बिसरे खेल फिर से खेले...व्याकरण और गणित के नियम-सिद्धान्तों को पढ़ाती-सिखाती मैं कितनी बार पुरानी यादों में जाकर एक बार फिर बचपन जी आई...उसकी तो कोई गिनती ही नहीं अब...।

तीसरा मौका मुझे मिला आज से दो साल पहले, जब 21 फ़रवरी 2014 की सुबह...लगभग तड़के ही अभि का खुशी से किलकता फोन आया...बधाई हो दीदू...तुम मौसी बन गई...। बस अभी...दस मिनट पहले...। उस दिन पहली बार महसूस हुआ कि मौसी बन कर भी उतनी ही खुशी मिलती है, जितनी माँ बन कर...। तभी तो शायद मौसी को ‘मासी’ भी कहते हैं न...। अयाँश से मिलना भले न होता हो, पर समय-समय पर उसकी प्यारी-प्यारी तस्वीरों...मोना यानि उसकी मम्मी के बनाए उसकी शैतानियों के वीडियोज़ और फोन पर उसकी चर्चा से मुझे कभी लगा ही नहीं कि वो बिल्कुल मेरे सामने मौजूद नहीं रहता। दूर रहने के बावजूद उसकी बहुत सारी मासूम हरकतों की मानो मैं भी एक चश्मदीद गवाह बन जाती हूँ...।

अयाँश आज दो साल का हो रहा। सोचा तो था कि उसके लिए कुछ बेहद खास लिखूँगी, पर तबियत ने ऐन वक़्त पर साथ न दिया...। यूँ ही कुछ हाइकु उस नन्हें फ़रिश्ते के लिए...मौसी की ओर से एक प्यार भरी भेंट के रूप में...






खिलखिलाता
मामा को घोड़ा बना
राजकुँवर ।









(मामा अभिषेक के साथ...)















ज़िद करता
चाहिए चंदा बॉल
माँ है हैरान ।





(माँ मोना की गोद में चहकता हुआ...)









मौसी का प्यारा
बलैयाँ ले हँसती
शैतानियों पे ।



(मौसियों निमिषा और सोना के साथ )





पिता ने जीया
अपना बचपन
काँधे पे बिठा ।









                                             
                                              (पिता अंशुमन के कांधो पर सवारी )





याद है आता
दूर देस में बसा
अपना चाँद ।






(नाना-नानी की गोद में...जब ननिहाल से चला जाता है तो दोनों को अपना नातू बेइंतिहा याद आता है...)

और अब कुछ हाइकु सिर्फ अयांश के लिए...







जब भी हँसे
रोशनी-सी बिखरे
मन-आँगन ।














करे रोशन
पूरा घर-आँगन
सूर्य के जैसे ।






जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक़ मेरे इस बदमाश भांजे को...यूँ ही बदमाशियाँ करते रहो...यूँ ही हँसते-खिलखिलाते रहो...हमेशा...साल-दर-साल...|
ढेर सारा प्यार नन्हें शैतान...<3 

                                       
                                        अपने पहले जन्मदिन पर अयांश...किसी प्यारे गुड्डे सा...

You Might Also Like

4 comments

  1. wow....ye issey behtar tohfa nahi ho sakta humare hero ke liye...
    lovely gift from lovely mausi...
    kitna sundar hai har haiku :) Loved it...

    ReplyDelete
  2. वाह जन्मदिन की इससे प्यारी शुभकामना और क्या हो प्रिय प्रियंका बचपन से फिर रूबरू होने के प्रसंग बहुत खूबसूरत और सच्चे हैँ .वैसे भी लडकियों में मातृत्त्व भाव जन्मजात होता है .

    ReplyDelete
  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " 'नीरजा' - एक वास्तविक नायिका की काल्पनिक लघु कथा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  4. जन्मदिन की प्यारी से बधाई

    ReplyDelete