चलो...अंधेरों से रोशनी ढूँढ लाते हैं...

Wednesday, March 30, 2016

कभी-कभी सोचती हूँ कि इन्सान जब स्वभाव से सौन्दर्य-प्रेमी होता है तो किसी बुरी चीज़ में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है कि अक्सर वह खुद-ब-खुद उसकी ओर खिंचा चला जाता है? बात चाहे घर-मोहल्ले-गली में होने वाली गॉसिप की हो या फिर आसपास किसी के साथ घटा कोई हादसा...राष्ट्रीय ख़बर हो या कोई स्थानीय घटना...हमेशा किसी बात का स्याह पक्ष ही क्यों अपनी ओर भीड़ खींचता है...?

हाल की ही बात देख लीजिए न...जब हरियाणा में हो रहे जाट आन्दोलन की ख़बरों से हर न्यूज़ चैनल, हर अख़बार अपनी टीआरपी और प्रसार बढ़ाने की जद्दोज़हद में लगा था, हरियाणा की एक ऐसी भयावह तस्वीर जनता के सामने आ रही थी, किसी को कानो-कान ख़बर न हुई कि उसी हरियाणा के १६-१७ वर्षीय चार बच्चों ने पानी से चलने वाला इंजन तैयार किया है। पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दाम से निरन्तर जूझ रहे लोगों के लिए क्या एक आशा की किरण दिखाती...राहत भरी ख़बर नहीं थी? मुझे नहीं मालूम कि ब्रेकिंग न्यूज़ के बीच कभी-कभार छन कर सामने आए ऐसे innovative idea के साथ किए गए अविष्कारों को हमारे देश के किस म्यूज़ियम में रख दिया जाता है, पर सोचने की बात यह है कि दिन भर ‘सावधान’ रहने की हिदायत के साथ बार-बार एक ही जैसी भयावह न्यूज़ को ‘रिपीट मोड’ में चलाते किसी भी न्यूज़ चैनल ने इस ख़बर को थोड़ा भी वक़्त देने की ज़रूरत क्यों नहीं समझी...?

चलिए, ऐसी ख़बरों के लोगों पर पड़ते राजनैतिक असर की बात यहाँ नहीं करते...। बात करते हैं इस तरह की खबरों का लोगों के मन पर पड़ने वाले असर की...। बात करते हैं आम जनता के मन में किसी राज्य...किसी तबके...किसी जाति...या किसी देश के प्रति पड़ने वाले असर की...। यानि बात करते हैं छवि की...। विदेशियों की बात तो छोड़िए, जिनके मन में आज भी भारत यानि साँप-संपेरों-भूखे-नंगों का देश...। वो तो ख़ैर पराये हैं, यहाँ तो हम खुद ही अपने आप को भिखमंगे और चोर-उचक्कों से भरे ‘स्लम्स’ के रूप में उनके सामने पेश करने को लालायित रहते हैं...। यक़ीन न आए तो फ़िल्म-फ़ेस्टिवल्स में भेजी जाने वाली अधिकांश फ़िल्में उठा कर देख डालिए...।

फ़िल्मों की बात छोड़ भी दें...विदेशों की बात रहने भी दें तो भी हम अपने बीच भी अपने देश को ‘बर्बाद गुलिस्ताँ’ दिखाने में कोई कसर नहीं रखते...। अपने किसी देशवासी से पूछ कर देख लीजिए...वो किसी ऐसे राज्य या जगह के बारे में आपके सामने ऐसी भयावह तस्वीर पूरे अधिकार भावना से खींच कर रख देगा (बिना वहाँ गए या वहाँ के बारे में जाने...) कि आप तो क्या, आपकी आने वाली सात पुश्तें उस जगह का रुख़ करने में काँप उठेंगी...।

इस मामले में मेरे लिए सबसे आसान उदाहरण बिहार का है...। बे-पढ़े तबके को छोड़ दीजिए, अच्छा-खासा पढ़ा-लिखा...बुद्धिजीवी तबका भी धाराप्रवाह रूप से बिहार और बिहारियों की एक भयंकर तस्वीर आपके सामने पेश कर देगा...। वहाँ के गाँव-देहात की ही नहीं, राजधानी पटना भी आपके नज़रों के सामने एक आदिवासी क़बीले की छवि बन कर नाचेगा...। ज़रा पूछ के देखिए ऐसे जानकारों से, क्या उन्हें पता है...पटना के गाँधी मैदान में बने revolving restaurant के बारे मे, जो अगर थोड़ा समय से बन पाता तो देश का पहला revolving restaurant होता?

उत्तर प्रदेश के बारे में भी अगर इतना नहीं, तो कमोबेश यही हाल है...। यू.पी से बाहर रहने वाले लोग बहुत बार यू.पी का नाम सुनते ही नाक-भौं सिकोड़ लेंगे। हरियाणा में जाने से डरने वालों को मैं ऐसे कितने ही जाटों से मिलवा सकती हूँ जो इन्सानियत और आत्मीयता की मिठास से लबरेज़ हैं...। मध्य-प्रदेश की पहचान सिर्फ़ चम्बल नहीं और न ही कश्मीर की खूबसूरती किसी फ़िल्म-स्टार की मोहर की मोहताज़ होनी चाहिए...। मेरे कहने का तात्पर्य बस इतना सा है कि अगर हम चाहें तो किसी तालाब में उगे कमल की सुन्दरता...उसकी पवित्रता को नमन कर सकते हैं और अगर चाहें तो उस तालाब की गन्दगी से घिना भी सकते हैं...।  पर मेरा सवाल वही है...क्या ज़रूरी है कि हम सिर्फ़ बुराइयाँ ही देखें...? कभी कोई अच्छाई भी तो ऊपर रखी जा सकती है न...।

इन सबके लिए अगर देखा जाए तो मीडिया सबसे बड़े दोषी के रूप में उभर कर सामने आएगा। न केवल प्रिंट या ब्रॉडकास्ट मीडिया, बल्कि सोशल मीडिया भी बहुत हद तक इसके लिए ज़िम्मेदार है...। जिस समय संचार के विभिन्न माध्यम साम्प्रदायिकता, जातिवाद, वर्गभेद आदि तमाम मुद्दों पर चीख-चीख कर बहस करते हुए दिलों में नफ़रत के बीज बो रहे थे, कितनों को पता चला कि इन सबके बीच भी एक मुस्लिम मित्र और उसके परिवार ने एक हिन्दू मित्र से किये गए सिर्फ़ एक वायदे को निभाने के लिए उसके दो मासूम-अनाथ बच्चों को कानूनी रूप से अपनाया...? न केवल अपनाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि अपने अपने जन्मजात नाम के साथ-साथ वे अपने धर्म और रस्मों-रिवाज़ों को निभाने के लिए ताउम्र आज़ाद रहें...। उनकी इस मंशा की पाक़ीज़गी पर सन्देह करने वालों के लिए यहाँ ये भी बताती चलूँ कि उन दोनो बच्चों के माता-पिता की छोड़ी हुई समस्त सम्पत्ति पर उस दोस्त ने पहले ही एक ऐसा कानूनी पहरा बैठा दिया, जिससे बड़े होने पर सिर्फ़ वे दोनो बच्चे ही अपने माँ-बाप की दौलत का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकें...। यही नहीं, बल्कि दोस्ती और इन्सानियत के उनके इस जज़्बे को अपने सही मुक़ाम तक पहुँचाने वाले उनके वकील ने इस काम के लिए एक पैसा भी लेने से इंकार कर दिया...। जाहिर सी बात है, मीडिया को इससे अपनी टीआरपी बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं दिखी, सो कहीं इसका कोई ज़िक्र किया भी नहीं गया...।

माना अपने देश में बहुत सी कमियाँ हैं, पर कमी किस देश में नहीं...? कुछ उँगली पर गिने जाने लायक देश हों शायद, पर जहाँ तक मेरी जानकारी है चोर-उचक्के, जेबकतरे, राहजन, खूनी और भिखारी तो अमेरिका और इंग्लैण्ड में भी हैं...। नस्लवाद और रंगभेद की ख़बरें तो जाने दुनिया के किस-किस कोने से हम सुनते रहते हैं...। पर आश्चर्य, हममें से कोई भी विदेश जाने के नाम से कभी नहीं डरते...। भ्रष्टाचार, स्कैण्डल और राजनीतिक से तो विकसित देश भी अछूते नहीं, फिर भी हम उन्हें बुरा नहीं कहते...। आखिर क्यों...?

जब से दुनिया बनी...जब से इंसान अपने अस्तित्व में आया तब से अन्धेरे और उजाले की जंग जारी है...। तय तो बस हमको करना होगा कि हमें किसके पक्ष में खड़ा होना है...। नफ़रत और भय की काली अन्धेरी रात के आगे प्यार और इंसानियत की रोशनी भी कहीं न कहीं मौजूद होती ही है, बस ज़रूरत अपनी आँखों को उसका अभ्यस्त बनाने की है...।

Photo - Wikipedia.org

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1 comments

  1. बहुत सही और अच्छा लिखा है प्रियंका . लोगों ने आलोचना को बु

    द्धिमानी और सजगता का प्रमाण मान लिया है .

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