एक अधूरी कहानी- 17
Saturday, October 09, 2021(कल से जारी...)
भाग - सत्रह
जाड़े की एक सर्द शाम फिर मेरे आँगन उतर आई है...। कुछ लम्हें इधर उधर जाकर पसर गए हैं, मानो मौसम के अकेलेपन से घबरा कर यादें भी उदास हो गई हों...। हवा को कुछ नहीं सूझता तो वो बस धीमे-धीमे कदमों से टहलना शुरू कर देती है...। सूखे पड़े पत्तों पर उसकी आहट चरमराती हुई जैसे कुछ गुनगुना रही हो...।
ऐसे में मैं कहाँ जाऊँ...? अब तो तुम्हारा प्यार भी ठंडी पड़ी चाय की मलाई की तरह हो गया है...चाहूँ तो उसे चुभला के स्वाद ले लूँ... चाहूँ तो किसी चम्मच से उसे करो कर बाहर फेंक दूँ...।
जाने क्यों, आज तुम्हारे हाथों की बनी कॉफ़ी याद आ रही...। उसे पिलाने एक बार आओगे क्या...?
-प्रियंका
एक अधूरी कहानी…पूरी होगी क्या...? कौन जाने...!
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