एक अधूरी कहानी- 16

Friday, October 08, 2021

 (कल से जारी...)

भाग- सोलह



वह मुझको खुद से अलग करता जा रहा था...धीरे-धीरे...परत दर परत मुझे छीलता हुआ...। जैसे कोई त्वचा का ऊपरी हिस्सा निकाल दे और दर्द तो हो, पर चोट साफ़ तौर पर दिखे नहीं...कुछ कुछ वैसा ही दर्द मुझे होता था...। जाने कब से मैंने खुद को उससे अलग करके  देखा ही नहीं था...। क्यों मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मैं उसी का एक हिस्सा हूँ जो कभी उससे अलग नहीं होगा ।

मैं शायद भूल गई थी कि अगर शरीर के किसी हिस्से में नासूर बन जाए तो उसे काट कर अलग कर दिया जाता है । हमारा रिश्ता भी शायद रिस रहा था...।

वो शायद भूल गया था कि सर्जरी के सफ़ल हो जाने के बाद भी उसके निशान ताउम्र उस दर्द की याद दिलाते रहते हैं...।

हम दोनों ही जाने कब से इतने भुलक्कड़ हो गए थे...।

-प्रियंका

(जारी है...कल)

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