एक अधूरी कहानी-13

Tuesday, October 05, 2021

 (कल से जारी...)

भाग- तेरह



इधर कई दिनों से मैं ग़ौर कर रहा था कि वह अब कुछ ज़्यादा ही जल्दी-जल्दी उदास होने लगी थी...कई बार बेवज़ह सी बातों पर...। वैसे खुश या उदास होने की कोई वज़ह उसे कभी चाहिए भी कहाँ होती थी ?

दोनों ही सूरतों में हमेशा की तरह उसे मेरा समर्थन चाहिए होता था । नहीं जानता क्यों, पर अब उसकी खुशी में तो मैं उसके साथ हँस लेता था, पर उसकी उदासी को अब मैं जानबूझ कर अनदेखा करने लगा था । पापा की बात मुझे सही लगने लगी थी...उदासियों को जितना सहारा दोगे, वे उतनी ही ज़्यादा आएँगी...। बेहतर है उन्हें नकार दो...।

आदतन अपनी उदासियाँ मेरे काँधे पर लटका वो जब भी मेरी ओर देखती, मैं कहीं और देख रहा होता...। जान के भी अनजान...सुन के भी अनसुना करता हुआ...। उसकी उदासियाँ खुद-ब-खुद मेरे काँधों से फिसल कर उसके कदमों पर जा गिरती...। अब तो मैं यह देखने की जहमत भी नहीं उठाता था कि वो उदासियाँ मेरे क़दमो तले रौंदी गई या उसके...या फिर उसने उन्हें सबकी नज़र बचा कर खुद चुपके से उठा के अपनी झोली में वापस डाल लिया ।

शायद वो भी सब समझ रही थी...। मैं भी खुश था...। पापा की बात काम कर गई थी, उदासियों ने दस्तक देना बंद कर दिया था...।

वो मेरे साथ हँसते हुए अब मेरी खुशियाँ पहले से भी ज़्यादा साझा करने लगी थी...। कुछ इतनी ज़्यादा कि अक्सर उसकी आँखों से पानी बह निकलता...जिन्हें अब वो मेरी हथेलियों के सोख्ते में संजोने की बजाय चुपचाप अपनी चुन्नी से पोंछ मुस्करा देती थी...।

मैं समझ क्यों नहीं पा रहा कि जब उसकी आँखों का पानी उसकी चुन्नी में जा रहा तो मुझे मेरे कंधे पर ये बोझ किसका महसूस होता है...?

-प्रियंका

(जारी है...कल)

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