एक अधूरी कहानी- 12

Monday, October 04, 2021

 (कल से जारी...)

भाग- बारह



“तुमने कभी डूबते सूरज को गौर से देखा है...?” उसने अपनी नज़र दूर क्षितिज पर डूब रहे सिंदूरी सूरज पर टिकाये हुए पूछा, “कितना दुःख होता होगा न उसे, रोज़-रोज़ ऐसे मर जाते हुए...? मुझे तो एक बार मरने का सोच के ही बेहद डर लगता है...|”

 वो अचानक खामोश हो गई...| मैंने उसकी आँखों में झाँक के देखा, बेतुकी बातों से भरी उस लडकी की आँखों में उस पल शरारत बिलकुल नहीं थी | उस वक़्त वो बेहद गंभीर थी |

 उसने अचानक फिर से मेरी हथेली थाम ली, “जानते हो मैं मरने से क्यों डरती हूँ...? क्योंकि जब मैं मर जाऊँगी तो फिर किसी को दुबारा नहीं देख पाऊँगी...और न कोई मुझे...| फिर मैं अकेले वहाँ कैसे जीऊँगी...?” उसकी मोटी-मोटी आँखें डबडबा गई थी | उसे ऐसे उदास देख कर मेरा दिल डूब रहा था पर ऊपर से मैं हँस पडा, “मरने के बाद कोई जीता है क्या...?”

 पर उसका ध्यान मेरी ओर था ही नहीं...उसने मेरी हथेली अपने गालों से सटा ली, “मेरे मरने के बाद तुम साल में दो बार मेरी कब्र पर आया करना...| एक मेरे बर्थडे और दूसरा हमारी एनिवर्सरी पर...फूल और चॉकलेट लेकर...|”

 “ना...कब्र कहाँ होगी तुम्हारी...? तुम्हें तो जलाया जाएगा न...|” मैं नहीं जानता कि उसे छेड़ के हँसाने के लिए भी मैं ये सब कैसे बोल पाया |

 “ओह ! अच्छा...! तो मेरी अस्थियों की एक कब्र बना देना और वहाँ आना ज़रूर...|”

 उसने उदास होकर कहा और थोड़ी दूर बनी बेंच पर जाकर बैठ गई...|

-प्रियंका

(जारी है...कल)

 


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