मैं सोफिया नहीं हूँ...

Saturday, April 28, 2018



They tyrannize you for your smile
And then question your frown…
-Nazuk Endlay

एक बहुत ही प्यारी लड़की है- नाजुक- हाल ही में उसके ये विचार मेरे सामने आए...| एक हँसमुख, समझदार और जिंदादिली से भरपूर आज के ज़माने की लड़की जब इस तरह की बात सोचे, उसे महसूस करे, तो फिर हमको भी ये सोचना पड़ेगा कि ‘दुनिया बदल रही है’ के हमारे दावे कहीं न कहीं बहुत खोखले हैं |

कहने वाले कह सकते हैं कि ये बात किसी पर भी लागू हो सकती है, पर मेरे हिसाब से तो आज भी ये बात एक नारी पर ज्यादा सटीक बैठती है | कभी अपने आसपास नज़र दौड़ा कर देखिएगा, हर उम्र की औरत हमारी निगाहों के दायरे में रहती है...| उसकी उम्र चाहे पंद्रह-सोलह साल की हो या वो अपनी उम्र के माध्यम दौर तक पहुँच चुकी हो...उसकी खुशी और गम दोनों हमारी स्क्रूटनी से होकर गुज़रते हैं...| हम हर वक़्त उसके लिए एक अदृश्य तराज़ू लेकर बैठे होते हैं...वो अगर खिलखिला के हँसी तो कितना और अगर उदास दिखी तो कितनी...? इस ‘कितने’ के तौल में ‘क्यों’ अपने भारी भरकम दबाव के साथ तो हमेशा मौजूद रहता ही है...|

आज के समय में हम भले ही लड़कियों को बचपन से धीरे हँसने-बोलने या नपे-तुले क़दमों से आहिस्ता आहिस्ता पायल छनकाते हुए चलने की शिक्षा न दे रहे हों, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही हम उनसे बिलकुल इसी तरह हो जाने की अपेक्षा ज़रूर रखते हैं...| अपने को आज़ाद ख्याल और पढ़ा लिखा दिखाने के लालच में हम खुल कर उनसे भले ही कुछ न कहते हों, पर इस तरक्की के मुखौटे के पीछे से हमारी शक़ भरी नज़रें उनकी हर गतिविधि को अपनी कसौटी पर कसती चलती है...|

‘औरतें पुरुषों के बराबर हैं’, ‘औरतें पूजनीय हैं’, और कहीं कहीं तो ये भी कहा जाता है कि ‘औरतें पुरुषों से श्रेष्ठ हैं’...| पर सच्चाई अक्सर इससे इतर साबित होती है...| औरतें सब कुछ हैं, बस इंसान नहीं हैं...| एक पुरुष खिलखिलाता है, लोग कहते हैं- कितना हँसमुख इंसान है...| पुरुष उदास दिखता है तो दुनिया की नज़र में एक सांत्वना, एक सहानुभूति होती है | पर अगर एक औरत खुश है, तो दुनिया भर में उसकी खुशी के राज़ को जानने की कुलबुलाहट होगी...| हमेशा दुखी रहने वालियों के साथ तो फिर भी गनीमत है, उनको रोता देख के सबको गहरी संतुष्टि होती है और किसी भी राज़ के होने की संभावना बेहद धूमिल हो जाती है | पर अगर आम तौर पर खुश रहने वाली कभी उदास है तो उसकी उस उदासी के पीछे भी लोग ‘राख में चिंगारी’ कुरेदने की कोशिश में लग जाते हैं...| अब अगर दुर्भाग्य से ऐसे खुशमिजाज़ औरत खुश दिखने के बावजूद अपने परिवार से सुखी नहीं है...तब तो ‘कोढ़ में खाज’ वाली बात हो जाती है...| तरह तरह के कयास लगाए जाते हैं, उसकी गतिविधियों पर नज़र रखी जाती है, परिवारवालों को सावधान रहने की हिदायत दी जाती हैं और ये सारे प्रयत्न तब तक किए जाते हैं, जब तक वो हार कर खुश दिखना बंद नहीं कर देती है...| उसके बाद अपनी जीत पर अन्दर ही अन्दर सन्तुष्ट होते लोग ही आगे आकर उसे हर परिस्थिति में हर तरह से खुश रहने की सलाह देते हैं...| गोया वो कोई हाड़-माँस की ज़िंदा इंसान नहीं, सोफिया जैसी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस वाली कोई रोबोट हो...|

अरे बाबा...कोई कभी ये क्यों नहीं सोचता कि एक आम इंसान की तरह किसी भी उम्र की कोई औरत या लड़की दुनिया की तमाम तरह की बातों से खुश या उदास हो सकती है | हो सकता है किसी दिन का मौसम उसे खुश या उदास रहने की वजह दे दे...| कोई गीत उसे किसी और ही दुनिया में ले जाए...किसी तरह की कोई मूवी या किताब या किस्सा-कहानी...कोई पुरानी, बचपन के खेल-खिलौनों की ही यादें हों, उसके किसी भी मनोभाव की वजह...| वो आखिर क्यों हर वक़्त बताए आपको अपने खुश या उदास रहने की वजह...जब तक वो वजह उसे आपके साथ बाँटने लायक न लगे...? हो सकता है वो आपको बस इतना भर कह के अपने में खो जाए कि उस पल वो बहुत खुश या उदास है...| तो कभी कभी शान्ति से रहने दीजिए न उसे अपनी दुनिया में गुम...सिर्फ अपने साथ...| कुछ देर आप भी अपने अन्दर के जासूस को थोड़ा आराम दीजिए और खोज लीजिए अपने लिए भी कोई वजह...हँसने या रोने की...जैसा भी आपका मन हो...| यकीन जानिए, बहुत सकून मिलेगा आपको...और शायद तब आप वो सुन सकेंगे जो उसने फुसफुसा कर ही कहा है आपसे...

मैं सोफिया नहीं हूँ...|

(चित्र गूगल से साभार)


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8 comments

  1. आज भी समाज में नारी को स्वतन्त्रता दिखावा मात्र है.
    जो जंजीर उनके पैरों में बंधी हुई थी वो मात्र थोड़ी सी ढीली छोड़ी गयी है न कि जंजीर को पूर्णत खोला गया है.
    सार्थक लेख.


    स्वागत है गम कहाँ जाने वाले थे रायगाँ मेरे (ग़जल 3)

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    1. बिलकुल सही बात कही है आपने...|
      टिप्पणी का शुक्रिया

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कश्मीर किसका !? “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सार्थक लेखन

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  4. हम स्त्रियाँ रोबोट नहीं हैं . हम किसी भी सामान्य बात से खुश हो लेती हैं, हँस लेती हैं, गा लेती हैं!
    हमें समझने की कोशिश ना भी करो पर वैसी रहने दो जैसी हम हैंँ....
    बहुत बढ़िया !

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    1. हाँ बिलकुल...असल मुद्दा तो यही है कि जैसा हम रहना चाहते हैं हमको वैसा रहने ही नहीं दिया जाता...|

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