मैं डरती हूँ

Saturday, March 18, 2017


कभी-कभी दर्द
जब हद से गुज़र जाता है
रोना चाहती हूँ मैं
पर रो नहीं पाती
डरती हूँ
कही पड़ोसी
मेरा दर्द जान ना जाएँ
या फिर
मेरे अन्दर की औरत
जाग ना जाए
चीत्कार से
मैं डरती हूँ
क्योंकि
सपनों की लाश
दबी पड़ी है नींव में
औरत जब जागेगी
खोद कर निकालेगी उसे
मेरा घरौंदा बिखर जाएगा
इल्ज़ाम मुझ पर ही आएगा
मैं इसी लिए डरती हूँ
सपनों की मौत पर
अपने दर्द पर
सिर्फ़ हँसती हूँ...।

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2 comments

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "यूपी का माफ़िया राज और नए मुख्यमंत्री “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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