हिसाब

Saturday, March 04, 2017


करती रही रोज़
जोड़-घटाना
गुणा-भाग
जतन किए बहुत
पर फिर भी अपने हाथ
कुछ न आया
सिवाय ज़ीरो के
बहुत हिसाब-किताब लगा लिया
ज़िन्दगी,
तेरे पास
मेरा बकाया बहुत है...।

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2 comments

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ट्रेन में पढ़ी जाने वाली किताबें “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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