ये आसमान भी छोटा लगता है

Friday, March 08, 2013


उड़ना है बहुत आगे तलक...अब तो ये आसमान भी छोटा लगता है...



लीजिए , एक बार फिर आ गया - महिला दिवस... । सिर्फ एक दिन तथाकथित रूप से महिलाओं के नाम...। पर किन महिलाओं के...? वो जो सुबह से शाम तक दूसरे के घरों में काम करती हैं ताकि उनका घर चल सके या फिर उनके जो सुबह से शाम तक अपने (?) घर में काम करती हैं, ताकि उनका (?) घर सुचारू रूप से चल सके...। वैसे हर बार की तरह कुछ संस्थाओं द्वारा इस बार भी सेमिनार आयोजित किए जाएंगे , महिलाओं के हित में बडी-बडी बातें होंगी और अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली जाएगी । इस एक दिन पर बधाई लेकर खुश हो जाओ...बाकी के तीन सौ चौंसठ दिनों से तुम्हें क्या लेना-देना...? इसी लिए कुछ बुद्धिजीवियों (? ) ने आधुनिकता दिखाते हुए बधाई संदेश भी दे डाले...। पर असल ज़िंदगी में हुआ क्या अब तक ?
हम में से कितने लोग वास्तव में , दिल से , महिलाओं के लिए कुछ करना चाहते है ? बिना बडे-बडे दावे किए ...। आज भी हमारे देश में , जहां स्त्री को देवी का दर्जा दिया जाने का दम भरा जाता है , उसी देश में एक देवी जन्मने से पहले ही मार दी जाती है...। अगर किस्मत से पैदा होने का मोर्चा फ़तेह कर भी लेती है , तो दहेज की बलिदेवी पर बलि दे दी जाती है । नहीं तो राह चलते किसी मजनूं का दिल आ गया तो तेजाब तो है ही ना , उसे जीवन भर का नरक दिखाने के लिए...। और ये नहीं...तब तो इतराओ...घर की महारानी हो तुम...एक ऐसी महारानी, जिसे खुल कर सांस लेने से पहले अंजाम की परवाह करनी पड़ती है...|
हक़ीकत में तो समाज में महिला को एक भरपूर इंसान का दर्ज़ा भी नहीं...। एक घर तक नहीं जिसे वो अपना कह सके। पहले पिता का घर, फिर पति का और अगर बुढ़ापे में बेसहारा होकर गई तो बेटे के घर...। इन सबके बीच उसका घर कहाँ है भई...? घर की तो छोड़िए, विभिन्न रिश्तों को सँवारती-सहेजती वो कहाँ है...? वो तो बेटी है, फिर पत्नी और बहू है, फिर माँ और सास...। सुहागन मरी तो स्वर्ग...वरना जीते-जी नर्क भी दिखा दिया जाता है...। न विश्वास हो तो कभी कुछ धार्मिक स्थानों के विधवाश्रम देख आइए...। इन सारे रिश्तों में बँटी उसके अन्दर की औरत कहाँ चली जाती है, किसी को पता भी नहीं चलता...। असल में वो भी एक इंसान है, ये कई बार उसे खुद पता नहीं चलता। ज़रा गिन कर बताइए...अपनी परिचित कितनी महिलाओं का नाम आपको पता है? खास कर शादीशुदा महिलाओं के...। मिसेज़ फ़लाना...मिसेज़ ढिकाना के आगे भी कोई पहचान है उनकी, ये उन्हें भी नहीं महसूस होता अक्सर...। एक आम औरत अपने को भूल सारी खुशियाँ सिर्फ़ अपने रिश्तों में तलाशती है। बच्चे खुश...पति खुश...ससुरालवाले खुश...तो अपना खुश...। मैं ये नहीं कहती कि अपनों की खुशी में खुश नहीं होना चाहिए, पर असल बात तो ये है कि अपनी खुशी भी तो देखो...। तुम किसमें खुश हो, कभी इसकी भी तो चिन्ता करो...। मैं न जाने कितनी ऐसी औरतों को जानती हूँ , जो पढ़ी-लिखी और प्रतिभासम्पन्न हैं, पर उन्होंने अपनी प्रतिभा, अपनी काबिलियत का गला सिर्फ़ इस कारण घोंट दिया क्योंकि उनके पति या घर के अन्य सदस्यों को पसन्द नहीं था। उनसे बात करती हूँ तो कई बार उनकी छटपटाहट डबडबाई आँखों में साफ़ झलक जाती है, जिसे वे बड़ी कुशलता से छिपा भी ले जाती हैं...। वे इसी बात से खुश हो जाती हैं जब कभी बड़ा अहसान-सा दिखाते हुए पतिदेव उनकी तारीफ़ कर देते हैं...एक आदर्श गृहणी के रूप में...। सोसाइटी की दूसरी औरतों के बीच अपनी इसी छवि को लेकर वे इतरा देती हैं...। उनकी प्रमुख चिन्ता अपनी आइडेन्टिटी को लेकर नहीं, बल्कि इस बात को लेकर रहती है कि पड़ोसिन की साड़ी मेरी साड़ी से उजली कैसे...। खुद ऊपर उठ कर कुछ सर्जनात्मक करने की बजाए आम महिलाओं की सारी उर्जा दूसरी औरतों पर उँगली उठाने में ही निकल जाती है। ऐसे में वो ये भूल जाती हैं कि जब एक उँगली दूसरे की ओर उठती है, तो बाकी की उँगलियाँ खुद-ब-खुद अपनी ओर ही इंगित करती हैं...। उनके जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा किटी पार्टी में गॉसिप करने, सीरियल की नायिका की साड़ी-गहनों की नकल करने में निकल जाता है। इस लिए महिला-दिवस हो, न हो...उनके जीवन पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता...।
आज भी हम महिलाओ को TAKEN FOR GRANTED ही लेते है | कितना अजीब लगता है न , ( या शायद नहीं भी लगता ) , जब भी हम किसी औरत से मिलते है , तो पूछते है - ARE YOU WORKING OR A HOUSEWIFE - और कई बार वह झेंप कर कहती है - जी नहीं , मैं सिर्फ एक एक HOUSEWIFE हू...गोया HOUSEWIFE हो कर वह कोई गुनाह कर रही है | असल में हम एक घरेलु औरत के काम को " काम " का दर्जा देते ही कब हैं | ज्यादातर पतियों का प्रिय डायलाग है -तुम करती ही क्या हो ? और हम सर झुका कर , खिसिया कर रह जाते हैं...| पर अब जरुरत है की हम सर उठा कर कहे- जो हम करते है , उसका हिसाब रखने की क़ूवत शायद किसी में भी नहीं है...|
तो महिलाओं...सर झुकाना छोडिए...और गर्व से कहिये...ये धरती और इस धरती पर जीवन भी हमारे दम पर है...और जिस दिन यह कर ले , उस दिन मुझसे बधाई लीजिएगा - महिला दिवस की...|
(चित्र गूगल से साभार )

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1 comments

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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