इंटरनेट बिन सब सून
Saturday, January 12, 2013
लखनऊ से निकल रही पत्रिका ‘समकालीन सरोकार’ के जनवरी अंक में मेरा भी एक छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ है, जिसे आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ...। आपकी टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा ।
इंटरनेट बिन सब सून
प्रियंका गुप्ता
आधुनिकीकरण के इस तकनीकी
युग में जहाँ एक ओर नित नए अविष्कारों, साधनों ने जीवन आसान बनाया है, वहीं कई दुश्वारियाँ भी पैदा की
हैं। आज इन साधनों में शायद साँस लेने और खाना खाने की तरह ही सबसे ज्यादा ज़रूरी
हो गया है...मोबाइल और कम्प्यूटर...। दोनो में ही इंटरनेट होना तो और भी आवश्यक
है। गोया आज के ज़माने में इंटरनेट नहीं, तो जीने लायक कुछ भी नहीं...बिन इंटरनेट सब सून...। पिछले
लगभग दस सालों में इसका उपयोग दिन दूनी, रात चौगुनी की गति से बढ़ा है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या मर्द, क्या औरतें...सब इसके
दीवाने। इंटरनेट जहाँ एक ओर ज्ञान-प्राप्ति का एक नया जरिया बन कर सामने आया है, वहीं इसने हर तरह की
चीज़, वर्च्युयली ही सही, सहज-सुलभ करा कर कई
वर्जनाएँ भी तोड़ी हैं। इसके चलते रिश्ते बदल रहे हैं, आज़ादी की नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही
हैं, सम्पर्क और सम्बन्ध
बढ़े हैं तो उन सम्बन्धों से नए किस्म का तनाव भी उभर रहा है। हम व्यक्तिगत दायरे
से निकल कर देश, समाज और दुनिया पर
ज़्यादा मुखर होकर अपना नज़रिया रखने लगे हैं। कुंठाएँ निकालने और जूतम-पैज़ार के लिए
भी अब फ़ेसबुक, ट्विटर जैसे मंच तो
हैं ही। परिवारों में भी दूरियाँ बहुत आई हैं। अगर पति अपनी नई-पुरानी किसी सहेली
से दिल लगाए है तो पत्नी भी पीछे नहीं...। तू नहीं तो और सही...और नहीं तो और
सही...। झूठे रिश्ते असल पर भारी पड़ रहे। इधर देश-विदेश में हो रहे कई तलाकों के
पीछे इसी इंटरनेट और सोशल साइट्स पर इल्ज़ाम आ रहा। पति या पत्नी की बेवफ़ाई के सबूत
के तौर पर फ़ेसबुक की चैटिंग साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल हो रहे। क्या जवान-अविवाहित
लोग, अब तो शादीशुदा ही
नहीं, बच्चों के माँ-बाप भी
इस वर्च्युअल दुनिया के मायाजाल में फँसे हुए हैं। शादी नाम की संस्था का अस्तित्व
ही जैसे खतरे में पड़ रहा। विश्वास टूट रहे, शक़ बढ़ रहे। विवाहेत्तर सम्बन्ध और
भी ज़्यादा आम हो रहे। अपने नकली मनमीत की प्यार भरी बातों से बहले ये पति-पत्नी
आपसी नफ़रत का शिकार हो रहे। बच्चे अलग इस रंगीनी के नशे में चूर है। कब माँ-बाप की
आँख बचा वे बहक जाएँ, कुछ पता नहीं। कच्ची
उमर में गुनाह भी बड़े हसीन लगते हैं। एक तरफ़ इंटरनेट अकेलेपन का साथी भी है, वहीं कहीं-न-कहीं इसने
इंसान को और भी अकेला किया है। कहने को दोस्त कई हैं इस दुनिया में, पर सोचने की बात तो यह
है कि असल में कोई दोस्त है भी यहाँ पर...? सामने से दोस्त बना व्यक्ति अब
आपके मन को नहीं, तन को शेयर करना चाहता
है...। आप तैयार तो ठीक, वरना दूसरा तो कोई है ही...। दोस्तों की इस भीड़ में कौन
अपना, कौन पराया, कुछ समझ नहीं आता।
जहाँ एक तरफ़ देश-विदेश में बैठे पुराने मित्र मिल रहे, दूरदराज़ के रिश्तेदारों से सम्पर्क
बढ़ा है, वहीं धोखे भी बढ़े हैं।
सब से ज़्यादा मुसीबत बढ़ी है औरतों की...। अपनी अलग सोच, अपनी अलग विचारधारा वाली स्त्री
नारी-स्वतन्त्रता के झाँसे में आकर अक्सर अपनी अस्मिता ही खो देती है। इंटरनेट के
उस पार बैठा व्यक्ति अक्सर खुली सोच रखने वाली, अपने दम-खम पर कुछ हासिल करने की
चाहत रखने वाली किसी औरत के दोस्त बन मन की बात सांझा करते-करते एक दिन अचानक तन
सांझा करने की ज़िद पर भी आ जाता है। ऐसे में कोई ठगा महसूस न करे तो और क्या करे? और अगर सामने वाले की
बात मान ली गई तो समाज और उसी समाज का एक अहम हिस्सा, हमारा परिवार, किस दिशा में जाएगा, यह सोचने वाली बात है।
इंटरनेट के ही जरिए आज हम अपने आसपास अपराध भी बढ़ता देख रहे। लड़कियों को अश्लील
संदेश भेजना, उनका फोन नम्बर पाने
की कोशिश करना, किसी के भी वीडियो
अपलोड कर देना जैसे किस्से रोज़ पढ़ने-सुनने को मिलते हैं। इन पर लगाम लगाई भी जाए तो कैसे?
वैसे अच्छाई-बुराई तो
हर चीज़ में है। सिक्के के दो अलग-अलग पहलू तो होते ही हैं। अगर देखा जाए तो इंटरनेट एक ऐसी दुधारी तलवार के
रूप में हमारे सामने आया है जिसके दोनो तरफ़ खड़ा इंसान ख़तरे की जद में है। या शायद
यह एक ऐसा धारदार चाकू है, जिसका इस्तेमाल इंसान अपने विवेक से सब्ज़ी
काटने में कर सकता है या होशो-हवास
गँवा कर किसी का गला काटने के लिए भी..।
5 comments
प्रियंका जी, आपका यह आलेख इंटरनेट के लाभ और अलाभ की जानकारी देता है। वस्तुत: गुण दोष तो सभी में होते हैं, हमें गुण देखने और अपनाने चाहिएं पर अवगुण एक ऐसी फिसलन होते हैं जिन पर जाने-अनजाने पैर पड़ जाने से आदमी फिसलता ही चला जाता है। हमें हर नई तकनीक के गुणों को अपनाना चाहिए और फिसलन भरे अवगुणों की ओर झांकना तक नहीं चाहिए।
ReplyDeleteविचारणीय लेख
ReplyDeleteसच है की गुण अवगुण सभी में होते हैं ... तकनीकी में भी ... अच्छे को ले लेना चाहिए ...
ReplyDeletevibha ji ki chayan prakriya dwara apke is behtareen blog tak pahuchna munasib ho paya. apki lekhan shaily saras lagi. kshama chahungi kayi jagah aapne sentence ke end me HAI shabd likhna chhod diya hai. lekh me adhurapan lagta hai.
ReplyDeleteis post ko analyse karne par yahi kahna chaahungi ki jab tak hosh n khoye jaayen tab tak sab theek hai....varna....ye rasta bhi doobhar hai.
sadar
आपका यह लेख सबको जागरूक करता है । सदुपयोग बहुत है , लेकिन लापरवाह होकर कोई दुरुपयोग करे तो यह भयावह है । बहुत अच्छा विचारप्रधान लेख है ।
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