दूर गगन की छाँव में...
Tuesday, January 25, 2011
बहुत दिनों बाद कल मैने राह चलते यूँ ही किसी बच्चे को आठ-दस पतंगें ले जाते हुए देखा...। बड़ा अच्छा लगा , सो उसे रोक कर पूछ ही लिया,"कहाँ से ली ये पतंगें...?" और तब मुझे पता चला कि अपने इलाके के एक व्यस्त मार्केट के अन्दरूनी हिस्से की कुछ पतली-पतली गलियों को पार कर के एक दुकान है , जहाँ ऐसी खूबसूरत पतंगें मिलती हैं...। पर कुछ शौकीन पतंगबाजों को ही उसकी जानकारी है...। सामान्य मध्यमवर्गीय बच्चों को तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं...। पता होगा भी कैसे...? आज के पढ़े-लिखे माँ-बाप के लिए भले ही अपनी औलाद का लड़कीबाजी करना बुरा न हो, पर पतंगबाजी...तौबा...। यह तो पक्की आवारागर्दी की निशानी है...। सो बच्चों में ऐसे शौक डालना ही क्यों...? आखिर माँ-बाप के स्टेटस का भी तो सवाल है...।
ऐसी मानसिकता भरे समाज के बीच ज़िन्दगी गुजारते हुए कभी-कभी यह देख कर अच्छा लगता है कि अपने देश के कुछ हिस्सों में अब भी बड़े-बड़े पतंगबाज हैं और वहाँ अब भी पतंगबाजी बुरा शौक नहीं माना जाता...। ऐसे ही कुछ राज्यों में गुजरात का नाम मेरे हिसाब से पहले नम्बर पर लिया जा सकता है , जहाँ हर साल मकर संक्रान्ति के दिन ( जिसे वहाँ उत्तरायण के नाम से जाना जाता है) लोग बड़े शौक से पतंग का आनन्द लेते हैं...। इसके साथ ही वहाँ हर वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है...। इसके अलावा राजस्थान में भी राज्य पर्यटन विभाग तीन दिवसीय पतंग प्रतियोगिता आयोजित करता है , जिसमें पूरे देश से जाने माने पतंगबाज भाग लेते हैं...। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तो खैर ऐसे खूबसूरत शौकों के लिए मशहूर है ही...।
सिर्फ़ भारत ही नहीं , बल्कि चीन, जापान , कोरिया, थाइलैंड जैसे कई एशियाई देशों में भी पतंग बहुत लोकप्रिय है और विभिन्न मान्यताओं से जुड़ी है । पतंग का तो अविष्कार ही चीन में हुआ था । अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों में भी पतंग उड़ाने वाले मिल जाएँगे । एक मजेदार बात और , एक ओर जहाँ भारत में कटी हुई पतंग लूटने का अपना ही मजा है , वहीं चीन और थाइलैंड में कटी पतंग उठाना अपशकुन माना जाता है । मानने वाले यह भी कहते हैं कि शायद पतंग को यूँ उड़ते देख कर ही मनुष्य में भी आसमान में उड़ने की इच्छा जागी होगी और आज हम इंसान आसमान की किन ऊँचाइयों को छू रहे हैं , यह बताने की जरूरत नहीं...।
और अंत में...ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले आदरणीय हरीश जोशी जी , जिनसे मेरा परिचय मेरे लेखन के माध्यम से इस इंटरनेट ने कराया , और जिन्हें मैं अंकल कहती हूँ , उन्होंने हाल ही में मुझे गुजरात में आयोजित हुए अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव की कुछ तस्वीरें मेल की थी , उन्हें मैं आपके साथ शेयर करना चाहूँगी । उम्मीद है मेरी तरह ये चित्र आपका मन भी खुशी से भर देंगे...कम-से-कम इतना तो सन्तोष रहेगा कि बहुत सारी चीजों की तरह अभी यह सांस्कृतिक धरोहर विलुप्त होने से बची है...।
ऐसी मानसिकता भरे समाज के बीच ज़िन्दगी गुजारते हुए कभी-कभी यह देख कर अच्छा लगता है कि अपने देश के कुछ हिस्सों में अब भी बड़े-बड़े पतंगबाज हैं और वहाँ अब भी पतंगबाजी बुरा शौक नहीं माना जाता...। ऐसे ही कुछ राज्यों में गुजरात का नाम मेरे हिसाब से पहले नम्बर पर लिया जा सकता है , जहाँ हर साल मकर संक्रान्ति के दिन ( जिसे वहाँ उत्तरायण के नाम से जाना जाता है) लोग बड़े शौक से पतंग का आनन्द लेते हैं...। इसके साथ ही वहाँ हर वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है...। इसके अलावा राजस्थान में भी राज्य पर्यटन विभाग तीन दिवसीय पतंग प्रतियोगिता आयोजित करता है , जिसमें पूरे देश से जाने माने पतंगबाज भाग लेते हैं...। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तो खैर ऐसे खूबसूरत शौकों के लिए मशहूर है ही...।
सिर्फ़ भारत ही नहीं , बल्कि चीन, जापान , कोरिया, थाइलैंड जैसे कई एशियाई देशों में भी पतंग बहुत लोकप्रिय है और विभिन्न मान्यताओं से जुड़ी है । पतंग का तो अविष्कार ही चीन में हुआ था । अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों में भी पतंग उड़ाने वाले मिल जाएँगे । एक मजेदार बात और , एक ओर जहाँ भारत में कटी हुई पतंग लूटने का अपना ही मजा है , वहीं चीन और थाइलैंड में कटी पतंग उठाना अपशकुन माना जाता है । मानने वाले यह भी कहते हैं कि शायद पतंग को यूँ उड़ते देख कर ही मनुष्य में भी आसमान में उड़ने की इच्छा जागी होगी और आज हम इंसान आसमान की किन ऊँचाइयों को छू रहे हैं , यह बताने की जरूरत नहीं...।
और अंत में...ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले आदरणीय हरीश जोशी जी , जिनसे मेरा परिचय मेरे लेखन के माध्यम से इस इंटरनेट ने कराया , और जिन्हें मैं अंकल कहती हूँ , उन्होंने हाल ही में मुझे गुजरात में आयोजित हुए अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव की कुछ तस्वीरें मेल की थी , उन्हें मैं आपके साथ शेयर करना चाहूँगी । उम्मीद है मेरी तरह ये चित्र आपका मन भी खुशी से भर देंगे...कम-से-कम इतना तो सन्तोष रहेगा कि बहुत सारी चीजों की तरह अभी यह सांस्कृतिक धरोहर विलुप्त होने से बची है...।
2 comments
सुंदर चित्रों से सजी पोस्ट अच्छी लगी ..... जयपुर में तो काईट फेस्टिवल होता है... दुनिया भर से लोग आते हैं....
ReplyDeleteप्रियंका जी
ReplyDeleteनमस्कार !
रोचक पोस्ट के लिए बधाई !
माँ-बाप के लिए भले ही अपनी औलाद का लड़कीबाजी करना बुरा न हो, पर पतंगबाजी...तौबा...।
:)
चित्र बहुत शानदार हैं … हरीश अंकल को हमारी ओर से भी Thanks कहदें ।
हमारे यहां अक्षय द्वितीया और अक्षय तृतीया को भी बहुत पतंगें उड़ाने का प्रचलन है ।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार