तुम्हारा प्यार
Monday, April 13, 2015
आँगन में छिटकी
चाँद किरन ।
तुम्हारा प्यार
ज्यों सहरा में मिला
दो घूँट जल ।
तुम्हारा प्यार
ठण्डी पुरवइया
हौले से छुए ।
तुम्हारा प्यार
कागज़ पे उकेरा
बनी कविता
जब भी बरसता
मन भिगोता
तुम्हारा प्यार
आत्मा से महसूसा
देह से परे ।
तुम्हारा प्यार
पहली किरण-सा
रोज़ जगाता ।
तुम्हारा प्यार-
काँच का मर्तबान
सहेजे रखा ।
तुम्हारा प्यार
माथे पे परोसता
नेह-चुम्बन
तुम्हारा प्यार
दूर कहीं झंकृत
कोई सितार ।
तुम्हारा प्यार
डायरी में सहेजा
सुर्ख गुलाब ।
तुम्हारा प्यार
पाजेब सा छनके
मन-आँगन ।
तुम्हारा प्यार
कानों में घोले कोई
स्वर-लहरी ।
कभी डूब भी जाऊँ
उबार लेगा ।
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा प्यार
मिला; फिर क्यों भला
सपना लगे ?
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा प्यार
ज़्यों हवन में डाले
समिधा कोई ।
तुम्हारा प्यार
गुनगुनी धूप-सा
सहला जाता ।
अलाव बन तापे
सर्द रातों में ।
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा प्यार
सर्द रातों में जैसे
नर्म लिहाफ ।
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा प्यार
आँखों पर रखे हुए
नींद के फाहे ।
तुम्हारा प्यार
कलयुग में गूँजे
वेद-ऋचाएँ ।
2 comments
बेहद सुन्दर!
ReplyDeleteसब कुछ ही तो है ये प्यार ...
ReplyDeleteबहुत उत्तम ..