तुम्हारी मुस्कराहट...

Monday, March 23, 2015



तुमने कभी किसी को मुस्कराते सुना है?

मैंने सुना है
जब तुम फोन पर अचानक
चुप हो जाते हो
मेरी किसी बचकानी सी ख्वाहिश पर
या फिर जब
तुम्हारी किसी बात पर
रोते रोते मैं हँस पड़ती हूँ
तुम मुस्कराते हो
और वो मुस्कराहट
धीमे से मेरे कानों में 
गुनगुनाती है...
गुलज़ार की कोई नज़्म सी
मेरी चाय में घुलती है मुस्कराहट
रुई के नर्म फाहे सी
सहला जाती है मेरे गालों को
चुपके से
और फिर रात ढले
जब मेरी बंद पलकों पर
बिलकुल खामोशी से रख जाते हो 
अपनी मुस्कराहट
वो एक ख्वाब बन
मेरे दिल में उतर जाती है
और एक बार फिर
ख़्वाब में ही सही
पर मैं सुन लेती हूँ
तुम्हारी मुस्कराहट...।

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2 comments

  1. बहुत बहुत प्यारी कविता ! :)

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