बिन पानी सब सून

Friday, February 06, 2015

जाने कितने बरस पहले कह दिया रहीम साहब ने...रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून...पानी गए न ऊबरे, मोती-मानुष-चून...। अब मोती और चूने की बात करना तो फ़िलहाल मेरे मन में नहीं है, पर हाँ, मानुष ज़रूर बिन पानी बेकार होता है । अब बात चाहे ये जीवन-रक्षक पानी की हो, या आँखों के पानी की...मनुष्य दोनो के बिना बेकार ही है ।

आज अपने चारो तरफ़ देखिए ज़रा, आदमी दोनो तरह के पानी से खुद को वंचित करता जा रहा । नल चाहे घर के हों या सार्वजनिक, अमूमन उनमें पानी आता ही है न के बराबर, पर जो आता है, अक्सर वो भी बर्बाद ही होता रहता है। जहाँ सरकार सिर्फ़ टैक्स लेने के लिए पानी विहीन नलों की सुविधा दे रही, वहाँ साधन-सम्पन्न आदमी सबमर्सिबल लगवा कर इस धरती से पानी चूस रहा । फ़ॉर अ चेन्ज़, खून से ज़्यादा अच्छा शायद पानी चूसना लगता है कुछ लोगों को...। जहाँ साधन-सम्पन्नता नहीं है, वहाँ भी हालात कुछ बेहतर नहीं हैं ।

पर्यावरणविद अक्सर चिन्ता जाहिर करते हैं कि अगर धरती से पानी का दोहन ऐसे ही होता रहा, तो यह धरती एक दिन समाप्त हो जाएगी । लोग समझने भी लगे हैं इस बात को...। पर सबसे ज़्यादा दुःखद लगता है, किसी इंसान की आँखों का पानी मर जाना...। जब किसी की आँखों में पानी होता है, फिर चाहे वो आँसू के रूप में निकलने वाला खारा पानी हो या शर्म का अदृश्य पानी, वो इंसान ‘इंसान’ कहलाने का हक़दार होता है । वरना फिर ऐसे भावना-विहीन लोगों को जानवर की श्रेणी में रखना मेरे हिसाब से जानवरों का अपमान करना होता है |  ऐसे धरती के पानी के ख़त्म होने से पहले मानव-सभ्यता को बचाने के लिए शायद हम दूसरे ग्रहों पर बसने की मुहिम चला कर जीवन-रक्षा तो कर लेंगे, पर उन ग्रहों पर रहने के लिए आँखों का पानी बचाए हुए इंसानों का बचे रहना मानव-सभ्यता के लिए ज़्यादा ज़रूरी है, क्या आपको ऐसा नहीं लगता...?


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1 comments

  1. पानी की अहमियत को शायद नहुश्य झेल तो रहा है पर समझ नहीं रहा ... समय निकल न जाए कहीं ...

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