अधूरी नींद...टूटे ख़्वाब और कुछ कच्ची-पक्की सी कहानियाँ (भाग-पाँच)

Monday, February 09, 2015


रात के अन्धेरे में सहसा किसी भयानक सपने से घबरा कर उसकी नींद टूट गई। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। घड़ी की टिक-टिक जैसे उस सन्नाटे को और बढ़ा रही थी। उसे भय लगने लगा। बेचैन होकर वो उठ बैठी। खिड़की से अब भी लॉन में जल रही मद्धिम रोशनी की एक हल्की सी परत उसके शरीर पर थी। उसने पलट कर देखा, साया अब भी था उसके साथ। उसने राहत की साँस ली और साये की ओर मुँह करके सो गई।

इस साये से उसका अभी हाल का ही तो परिचय था। कहने को तो साया कहता था, मैं जन्मों से तुम्हारे साथ हूँ...बस तुम ही इस दुनिया की भीड़ में मुझे पहचान नहीं पाई...। उसे शुरू में तो विश्वास नहीं हुआ था, पर अब वह भी इस बात को मानने लगी थी। अब वो अकेली नहीं थी...उसका साया जो साथ था उसके...। पहले की तरह अब जब वह घर से निकलती थी, उसे न तो अकेलापन लगता था...न भय...। साये ने यक़ीन जो दिलाया था...कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूँगा...। जब तक तुम हो...मैं हूँ...। ऐसी बातें सुन कर उसका जी खुशी से नाचने-गाने को करता था। कभी किसी ने उससे इतना प्यार किया भी तो नहीं था न...।

इधर कुछ दिनों से मौसम बदल रहा था। ठण्डी हवाएँ उसे सताने लगी थी। साया भी कुछ उदास-उखड़ा सा रहता था। उसने कई बार पूछा...पर वो कुछ साफ़-साफ़ बता भी नहीं रहा था। उसे कभी-कभी फिर डर लगने लगा था। पर हर बार मौसम का मिजाज़ बदलते ही साया उससे उतनी ही गर्मजोशी से मिलता...यक़ीन दिलाता...मैं हूँ न...और वो मान भी लेती।

आज सुबह से ही जैसे किसी तूफ़ान के आसार से थे। वो घर के एक कोने में दुबक गई। तूफ़ान हमेशा से उसे डराते आए थे...आज भी उसे भयभीत कर रहे थे। रात के गहराने के साथ तूफ़ान भी पूरे ज़ोर-शोर से अपनी दस्तक देने लगा था। लाइट कट चुकी थी। एक नन्हें से दिए की थरथराती लौ में एक तरफ़ वो थरथरा रही थी...दूसरी तरफ़ उसका साया भी डगमगाया हुआ सा था।

सहसा एक ज़ोर की हवा से वो नन्हा दिया भी हार मान कर एक झटके से अपनी जीवन-लीला समाप्त कर उसे भयानक अन्धकार की गिरफ़्त में छोड़ गया। डर और घबराहट से वो बारम्बार अपने साये को पुकार रही थी, पर साया तो शायद किसी और रोशनी की तलाश में उससे बहुत दूर जा चुका था...।


(चित्र गूगल के सौजन्य से)


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