करवाचौथ बनाम पातिव्रत्य...
Saturday, October 11, 2014देखते ही देखते एक और करवाचौथ आ ही गया...। सुबह से जिस भी लड़की / औरत से मिल रही हूँ...सबका एक ही जिज्ञासापूर्ण सवाल...आज तो व्रत होगी न...? पूछते समय चेहरे या आवाज़ में उत्साह की झलक...मानो व्रत रखने की बात नहीं, बल्कि ‘भारत रत्न’ मिला या नहीं, ये पूछ रही...। अरे बाबा, साल के ३६४ दिनो में कभी किसी दिन ये तो पूछा नहीं कि आज सुबह समय से नाश्ता किया या नहीं...खुश रही या नहीं...ज़िन्दा हो या मर गई...? पर ये सवाल आज के दिन पूछना लाजिमी हो जैसे...। ये सामने वाले की मर्ज़ी है भई, वो व्रत रहे या दिन भर खूब पेट भर कर खाए...तुम्हें क्या...? तुमको भूखा-प्यासा रहना है, वो तुम्हारी मर्ज़ी...।
वैसे अगर देखा जाए तो हर औरत के मन में चाहे दुनिया में खुद को बेहतर साबित करने की इच्छा हो, न हो...पर दूसरी औरत किसी भी मामले में उससे कम साबित हो जाए, ऐसी दिली तमन्ना ज़्यादातर औरतों के भीतर होती है...। ऐसे में तथाकथित महान ‘पतिव्रता’ का तमगा खुद को देने का मौका भला इतनी आसानी से छोड़ा जा सकता है क्या...? यानि इन शॉर्ट, अगर सामने वाली व्रत नहीं रखती तो कम से कम उसकी बुराई करने का कुछ मसाला तो मिलेगा न उन्हें...। ये व्रतधारी औरतें शायद खुद को सीता से भी महान पतिव्रता मानती हैं...क्योंकि जहाँ तक मेरा अल्पज्ञान है, सीता को करवाचौथ का व्रत करते मैने नहीं पढ़ा...। और सिर्फ़ सीता ही क्यों, मैंने तो भारत की बाकी महान नारियों को भी कभी करवाचौथ टाइप व्रत करते नहीं सुना...। आपमें से किसी ने सुना हो तो कृपया मेरा ज्ञान बढ़ाएँ...।
वैसे मेरे हिसाब से कोई भी व्रत-त्योहार, रीति-रिवाज़, परम्पराओं को निभाना-मानना हर किसी का अपना व्यक्तिगत मामला है...। पर कोफ़्त तो तब होती है जब औरतों के ऐसे सवाल के जवाब में कोई सामने से उत्तर देती है...नहीं, मैं ये व्रत नहीं रखती...और सवालकर्ता उसे यूँ ताकती है जैसे वो कोई उसी के जैसी औरत नहीं, बल्कि मंगल या किसी और ग्रह से आई अजीबोग़रीब चीज़ हो...।
मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि आप किसी की अपने पति के लिए समर्पण, परवाह या प्यार को सिर्फ़ एक व्रत के तराज़ू पर तोल के कैसे देख सकते हैं...? अगर किसी पत्नी के प्यार का सिर्फ़ यही मापदण्ड है तो मेरे ख़्याल से आप उन तमाम विधवाओं के प्यार पर शक़ कर रहे हैं , जिन्होंने शायद सैकड़ों सधवाओं से ज़्यादा अपने पति को प्यार किया होगा।
सच तो ये है कि फ़िल्मों, धारावाहिकों में इन सारे व्रत-त्योहारों, खास तौर से करवाचौथ, को इतनी भव्यता से फ़िल्माया जाता है, इसको पतिव्रता या पति-प्रेम के एक ऐसे मापदण्ड की तरह पेश किया जाता है, कि बरसों पहले जो व्रत बाकी के व्रतों की तरह बहुत सामान्य तरीके से सम्पन्न कर लिया जाता था, आज एक स्टेटस सिम्बल बन गया है...। आज पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा और बहुत बार मानसिक स्तर पर भी बहुत सक्षम औरतें भी इसके जाल में इस कदर उलझी हैं कि वे ऐसे धारावाहिकों या फ़िल्मों की भव्यता और मानसिकता से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं पा रही हैं...। समाज, रिश्तेदारों और तमाम जानी-अनजानी औरतों के बीच उनके पति-प्रेम और पति-निष्ठा पर कोई उँगली न उठे, इस भय से हर स्तर की औरत बढ़-चढ़ कर इस व्रत में अपनी भागीदारी साबित करना चाहती है...। फिर भले ही बन्द दरवाज़ों के पीछे उसका पति जम कर उसे पीटता हो...गालियाँ देता हो...दूसरी औरतों के पास जाता हो...और कई बार मज़ाक के रूप में ही सही, पर उसके मरने की भी कामना करता हो...।
कुल मिला कर बस यही कहा जा सकता है कि चाहे दुनिया में स्त्री-समानता के लिए कितनी भी आवाज़ें उठा ली जाएँ, कितने आन्दोलन कर लिए जाएँ...कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें बोल ली जाएँ...जब तक आपस में सच्चा प्यार करने वाले पति-पत्नी खुल कर ऐसे आडम्बरों का विरोध करना शुरू नहीं करेंगे...तब तक स्त्री, इच्छा या अनिच्छा से, दासी की तरह ही पति को परमेश्वर मान कर उसकी चरण-धूलि माथे पर सजा यूँ ही तिल-तिल मरती रहेगी।
(किसी की मान्यता या भावना को ठेस पहुँचाना मेरा मकसद नहीं...। मेरे स्वतन्त्र दिमाग़ ने जो सोचा...जो महसूस किया...कह दिया...। सहमत होना, न होना...आपकी मर्ज़ी...।)
2 comments
'करवाचौथ बनाम पातिव्रत्य' में प्रस्तुत आपके विचारों से सहमत हूँ। सबके त्याग की भावना और आस्था को प्रणाम करता हूँ । प्यार का आधार है विश्वास , वह विश्वास जिसमें अपनत्व के सिवाय और कुछ नहीं होता । इसी विश्वास के लिए हम तरसते हैं। कितना मिलता है , किससे मिलता है , तनिक भी पता नहीं। इतना खूबसूरत गद्य लिखने के लिए बधाई ।
ReplyDeleteजीना,मरना या प्यार या उम्रें व्रत की मोहताज़ नही होती.
ReplyDeleteमैंने घर में बहुत बार कोशिश की है ये समझाने की लेकिन उनकी ख़ुशी को दबा पाना इतना आसां तो नहीं.
लेकिन ये बात तय है कि भविष्य में मेरी पत्नी को इन फिजूल की बातों के लिए भूखा देखना मुझे गवारा नही होगा.
टीवी वाले तो अपनी टी आर पी. के लिए बात का बतंगड़ बना देते हैं.
उनकी बातों को गम्भीरता से लेने वाला बेवकूफ ही तो है.
अच्छा आलेख.
आप मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित हैं. :)