अधूरी नींद...टूटे ख़्वाब...और कुछ कच्ची-पक्की सी कहानियाँ (भाग-२)
Sunday, June 15, 2014माँ ने दुनिया देखी थी, जंगल देखा था...वो सब जानती थी...। मेमना माँ की सब बात मानता था...। ये बात भी मानी...। इस लिए अब वो अकेले कहीं नहीं जाता था...| किसी अजनबी तो दूर, जानने वाले से भी ज़्यादा बात नहीं करता था...। माँ के जाते ही मजबूती से घर के सब खिड़की-दरवाज़े बन्द कर लेता था।
एक दिन माँ जब काम से लौटी, मेमना कहीं नहीं मिला...। मिले, तो बस्स खून के कुछ कतरे...। माँ नहीं समझ पा रही थी कि उसके इतने आज्ञाकारी बच्चे का शिकार आखिर हुआ कैसे...? समझ तो शिकार होने तक मेमना भी नहीं पाया था...।
माँ उसे घर के भेड़िए के बारे में बताना जो भूल गई थी...।
2 comments
उफ!
ReplyDeleteBahut marmik ...aur aaj ki halat ko vyakhyayit karti laghukatha....Badhai Priyanka ji....
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