अधूरी नींद...टूटे ख़्वाब...और कुछ कच्ची-पक्की सी कहानियाँ (भाग-३)

Wednesday, June 18, 2014


राहुल और सीमा वृद्धाश्रम से बाहर निकल कर पूरी तौर से संतुष्ट थे। अम्मा को उन्होंने बहुत अच्छे से सहेज दिया था आश्रम की संचालिका को...। सब बात समझा दी...। अम्मा की आदतें, उनकी चिड़चिड़ाने की मुख्य वजहें...इस उमर में उनका चटोरापन...और उस वजह से बार-बार खराब होता उनका पेट...। अम्मा को क्या और कितना खाने को देना है, ये भी...। साथ ही ये भी ताकीद कर दी कि अगर बेवजह गुस्सा दिखाए तो बेझिझक निकाल बाहर करने की धमकी दे दें...झूठी-मूठी...तुरन्त शान्त हो कर एक कोने में दुबक जाएँगी...। हाँ, अगर सच में तबियत खराब लगे कभी तो डॉक्टर को ज़रूर बुलवा लें...। उन दोनो को सिर्फ़ किसी मिस-हैप्पनिंग की स्थिति में ही परेशान किया जाए...। वैसे भी इतना पैसा खर्च कर के उनके आश्रम में इस लिए नहीं डाला है कि ज़रा-ज़रा सी बात पर उनको बुलवा भेजा जाए...। एक लम्बी फ़ेहरिस्त तैयार कर के ले गए थे दोनो पति-पत्नी कि कहीं कुछ ताक़ीद करना रह न जाए...। वरना बार-बार कौन परेशान होता...। अब दुनिया कुछ कहती है तो कहती रहे, वो अपना जीवन देखें या दुनिया...।

दोनो कार में बैठने जा ही रहे थे कि तभी सीमा की नज़र सामने की पटरी पर बैठे एक लाचार-जर्जर से अपाहिज़ भिखारी पर पड़ी। उसने राहुल को टहोका...उस बेचारे को कुछ दे दो...। अपाहिज़ है...कुछ पुण्य ही मिल जाएगा...।

दोनो ने साथ जाकर उसके कटोरे में जैसे ही कुछ रुपए डाले, भिखारी ने हिक़ारत से वो नोट उनकी ओर वापस लौटा दिए...मैं हमपेशा से भीख नहीं लेता...। 

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4 comments

  1. DI isko thoda sa or samjha dijiye... means samajh me to aayi bt actually kya kahna hai wo kah nahi pa raha hu..

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  2. DI isko thoda sa or samjha dijiye... means samajh me to aayi bt actually kya kahna hai wo kah nahi pa raha hu..

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  3. बहुत सुंदर ...अंतिम पंक्तियों में सारा सार है |

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  4. कहीं पढा था
    अपनी औलाद से ताजीम की उम्मीद ना रख
    अपने मां-बाप से गर तूने बगावत की है

    प्रणाम

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