भावनाओं को समझो...
Monday, December 16, 2013कभी कभी ज़िन्दगी में कुछ ऐसी बातें सामने आती हैं, जो अनजाने ही एक सवाल खड़ा कर देती हैं...। ध्यान न दिया जाए तो बहुत मामूली लग सकती हैं, पर अगर गौर से देखें तो वे बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर कर देती हैं...। ऐसी ही एक घटना एक भाई-बहन की आपसी बातचीत से जुड़ी है...। भाई छोटा है...बहन उससे लगभग चार-पाँच साल बड़ी...शादीशुदा...भाई से दूर एक दूसरे शहर में...।
ऐसे में अक्सर वो कहती भी...चुपचाप डाँट सुनने के बाद...हद है बदमाश...मुझे तो याद ही नहीं रहा कि बड़ी मैं हूँ...तू नहीं...। तो डाँटने का अधिकार तो मेरा है न...?
भाई बहुत सहज ढंग से कह देता...हाँ रे जान...बड़ी तो हो तुम, पर लापरवाही करते समय मुझसे छोटी हो जाती हो...और मान क्यों नहीं लेती कि तुम्हारा ये भाई अपनी जान की कितनी चिन्ता करता है...। आखिरकार आइ लव यू रे...मेरी स्वीटहार्ट, लापरवाह, बदमाश बच्ची-सी दीदी...।
सब कुछ ठीक-ठाक था...जब तक एक दिन घर पर मौजूद एक पड़ोसन ने दोनो भाई-बहन की ये बातचीत नहीं सुन ली...। सीधे एक मुँह से दूसरे मुँह...एक कान से दूसरे कान...। उड़ते-फिरते बात दोनो की माँ तक भी पहुँची। पहले तो उनको समझ नहीं आया कि बात किस लिए और किस सन्दर्भ में हो रही, पर जब बड़ी चिन्ता जताते हुए माँ को समझाया गया कि एक भाई का अपनी दीदी से बात करने का यह उचित तरीका नहीं...। ‘जान’, ‘स्वीटहार्ट’ ‘डार्लिंग’ जैसे शब्द प्रेमी-प्रेमिकाओं अथवा ऐसे रिश्तों के लिए ही बने हैं...भाई-बहन के लिए नहीं...। माँ ने सामने तो पड़ोसन का मुँह यह कह कर बन्द करवा दिया कि यह उनके परिवार का आपसी मामला है, इसमें दखल देने की उन्हें कोई ज़रूरत नहीं, पर अकेले होते ही उन्होंने बेटे को अपने पास बुला लिया...। सब बातें उसके सामने रखी गई...दुनिया की ऊँच-नीच की जानकारी दी गई...। भाई सारी बातें चुपचाप सुनता रहा, अन्त में उसने माँ के सामने बस एक ही बात रखी...एक बात बताओ मम्मा, दीदी को मैं जितना प्यार करता हूँ, उसमें तुम्हें शक़ है कोई...? नहीं न...? एक बात पहले तय कर लो...जान, स्वीटहार्ट, डार्लिंग का अर्थ क्या होता है...? और फिर ये किस डिक्शनरी...किस शास्त्र में लिखा है कि आप जिसको बहुत प्यार करते हों, अगर वो आपकी बहन है तो आप उसे इन सम्बोधनों से नहीं पुकार सकते...? इनका कोई अश्लील अर्थ निकलता हो तो बताओ...। मेरी कोई गर्लफ़्रेण्ड होती और मैं उसे इस तरह से पुकारता तब किसी को कोई दिक्कत नहीं थी...। पर दीदी को ऐसे बुलाता हूँ...उसे बोल दिया कि जान, आइ लव यू...तो बवाल क्यों...? डियर या डार्लिंग का अर्थ तो ‘प्रिय’ होता है न...? हम क्यों अनजानों को भी लिखते हैं...प्रिय फलाँ-फलाँ...और इसके लिए सोचते तक नहीं...? और रही बात स्वीटहार्ट और जान की...स्वीटहार्ट यानि जो दिल को बहुत प्यारा लगे...और जान तो है ही जान...। तो हाँ, मैं तो हमेशा कहूँगा कि दीदी मेरी जान, मेरी ज़िन्दगी हैं...। मेरे दिल का टुकड़ा, मेरी स्वीटहार्ट हैं वो...। अब बोलो तो मम्मा, क्या ग़लत है इसमें...?
उसकी मम्मा ने उससे क्या कहा, भाई ने अपनी दीदी को इस तरह बुलाना छोड़ा या नहीं, बहन की इन बातों पर क्या प्रतिक्रिया रही...इन सब बातों की मुझे कोई जानकारी नहीं। पर फिर भी बड़े मामूली-सी लगने वाली यह घटना जाने क्यों मेर्रे दिलो-दिमाग़ से अब तक नहीं निकल पाई है। किसी परिवार का व्यक्तिगत मामला होने की वजह से इसका क्या हल निकला, मैंने यह जानकारी लेना उचित नहीं समझा...पर आप ही बताइए...क्या हुआ होगा इस सारे वाकये का अन्त...? या दूसरे तरीके से पूछूँ...तो क्या होना चाहिए था...इन सारे सवालों का जवाब...?
9 comments
"बहनों को ‘जान’, ‘स्वीटहार्ट’ ‘डार्लिंग’ कहने में क्या बुरा है? कुछ बुरा नहीं है...बहुत सही लिखा है तुमने, बहुत ही अच्छा सवाल उठाया है
ReplyDeleteNeed to write in Hindi.. So forgive me... Will come back tonight!!!
ReplyDeleteभावनाएं ही सर्वोपर्री हैं... जो भावों को समझेंगे उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी... और जो नहीं समझते, उन्हें समझाना कठिन है...!
ReplyDeleteआमतौर पर कुछ शब्द प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी की भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिये ही प्रयुक्त होते हैं। हम भाई-बहन के लिये ऐसे शब्दों का प्रयोग एक दूसरे के लिये सुनने के आदि नहीं हैं। इसलिये गलत तो लगता ही है।
ReplyDeleteप्रिय, प्रिये या o my love, i love u मैं तुमसे प्रेम करता हूं आदि जैसे शब्द या वाक्य भी इसी श्रेणी में आते हैं।
उन्होंने अपनी माता के लिये जान, स्वीटहार्ट जैसे शब्दों को प्रयोग भी किया है कभी या माता के लिये भावनायें नहीं हैं?
प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeleteशुक्रिया सोहिल जी...सबसे पहले आभार प्रतिक्रिया के लिए...|
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ कि हम आदी नहीं हैं भाई-बहन के आपसी तौर पर इन संबोधनों के...पर यहाँ सवाल सिर्फ इतना है कि क्या अगर कोई निर्मल-निर्दोष मन से अपनी बहन को ऐसे पुकारता है तो उसे सिर्फ इस आधार पर ख़ारिज किया जा सकता है कि हम उसके आदी नहीं...???
वैसे भी आज के समय में बहुत सारे शब्द अपने अर्थ और प्रयोग बदलते जा रहे...ये आपने भी महसूस किया होगा...| वैसे ये मेरा नजरिया है, हर कोई इससे सहमत हो, ये आवश्यक नहीं...|
सादर,
प्रियंका
एक प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक ने हास्य के तौर पर लिखा था कि "राम नाम सत्य है" एक ऐसा वाक्य है जो एक सनातन सत्य है. लेकिन इसे केवल शवयात्रा के समय प्रयोग करने की परम्परा बन गयी है.इसे किसी के विवाह पर बोलकर देखिये फिर लोग आपका क्या हाल बनाते हैं!
ReplyDeleteउसी तरह कई बातें देश, काल और परिस्थिति के अनुसार अपना अर्थ प्राप्त करती हैं और खो देती हैं. इसलिये वे सारे प्रश्न जो यहाँ उठाये गये हैं उसका जवाब देना बहुत कठिन है. सही-गलत, अच्छा-बुरा ये सब तुलनात्मक हैं, जो पूरी तरह देश, काल और परिस्थिति पर निर्भर करते हैं!
प्यार तो प्यार है.....
ReplyDeleteकिसी से भी हो...इज़हार खुल्ले दिल से होना चाहिए...बिना शब्दों के restrictions के :-)
कित्ता प्यारा होगा वो भाई जिसकी "जान" उसकी बहन में हो <3
अनु
मेरा कमेण्ट ग़ायब!!
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