वो शाम कुछ अजीब थी..

Friday, November 15, 2013

कभी-कभी हमारे साथ कुछ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं, जिनका ज़िक्र हम आम तौर पर किसी से सिर्फ़ इस लिए नहीं करते कि शायद ऐसे खास इंसान दुनिया में अकेले हम ही हैं...। पर फिर अचानक कोई आपको अपने साथ घटी कुछ-कुछ वैसी ही मज़ेदार बात बताता है और तब आप चोरी से भगवान को शुक्रिया बोलते हैं...अकेला नमूना मैं ही नहीं...।
घटना का केन्द्रबिन्दु एक बार फिर माँ ही हैं...। (ऐसी शानदार बातें अक्सर उनके साथ ही क्यों घटती हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं...पर इस घटना का उल्लेख मैं पूर्णतया उनकी सहमति से कर रही...)
बात लगभग नौ-दस साल पहले की है...। शायद अक्टूबर का महीना था...। दिन शुक्रवार था, ये अच्छे से याद है क्योंकि उसी दिन मैं ज़्यादातर चुनमुन को स्कूल से लेते हुए माँ के पास आ जाती थी और फिर इतवार तक वापसी...शनिवार को स्कूल बन्द रहता था...इस लिए...। वैसे चुनमुन का एक स्कूल ड्रेस माँ के यहाँ भी था, ताकि अगर कभी ज़रुरत पड़ती तो चुनमुन को वहीं से स्कूल भेजा जा सके।
दोपहर के खाने के बाद चुनमुन को सुला कर हम दोनो भी अक्सर सो ही जाया करते थे...ताकि नटखट चुनमुन के पीछे भागा-दौड़ी करने की एनर्ज़ी वापस आ सके। उस दिन चुनमुन की नींद जल्दी खुल गई और माँ सो ही रही थी। मैं चुपचाप उसे लेकर बाहर आ गई ताकि उसकी कूदा-फाँदी से माँ की नींद न खुल जाए। गेट पर आए दो मिनट ही हुए थे, कि बगल में रहने वाली मिथिलेश दीदी आ गई। वो एक गवर्मेण्ट स्कूल में शिक्षिका हैं...। मेरी तरह वो भी गॉसिप से ज़रा दूर ही रहती थी, सो अक्सर शाम को जब तक चुनमुन बाकी बच्चों के साथ खेलता था, तब तक हम दोनो गप्पे मार लिया करते थे। एक पंथ, दो काज...। चुनमुन की निगरानी भी होती रहती थी और हमारा टाइम-पास भी हो जाता था।
उस दिन भी हम लोग दुनिया जहान की बातें कर कर के हँस ही रहे थे, कि आँखें मलती हुई माँ बाहर आ गई...। हम दोनो को यूँ बतियाता देख कर हमेशा की तरह शामिल हो जाने की बजाए वो कुछ नाखुश-सी दिख रही थी। हम दोनो ने आलस समझ कर ज़्यादा ध्यान भी नहीं दिया। बाहर आकर उन्होंने आसपास का जायज़ा लिया, फिर मुझसे पूछा,"टाइम देखा है...?"
मैंने बातों के बीच ही सहज भाव से कह दिया,"हाँ...सवा छ होगा...। अभी दस ही मिनट तो हुए हैं बाहर आए हुए...।"
माँ अब भी थोड़ा असहज ही थी,"चुनमुन को दूध दे दिया...? अभी तो चाय भी नहीं बनी...।"
मैंने तब भी ध्यान नहीं दिया,"उसको दूध दे चुके हैं...। आप सो रही थी, इसलिए चाय नहीं चढ़ाई...। अब चढ़ा देते हैं...।" फिर मैंने मिथिलेश दीदी को भी आमन्त्रित कर दिया, चाय के लिए...पर वो तुरन्त ही चाय पी कर निकली थी और ज़्यादा चाय उन्हें नुकसान करती थी, इसलिए उन्होंने साफ़ मना कर दिया। माँ अब उनकी ओर मुख़ातिब हो चुकी थी,"आज छुट्टी है तुम्हारे स्कूल में...?"
दीदी छुट्टी के नाम से मायूस हो गई,"कहाँ दीदी...(मज़े की बात...हम उनको दीदी बोलते थे, उनका बड़ा बेटा हमको...और वो माँ को...घोर कन्फ़्यूज़न...), सोमवार से शनिवार तक खटो...जल्दी छुट्टी कहाँ देते हैं...।"
"हाँ, वो तो है...।" माँ अब भी थोड़ा खोई-खोई सी थी कि तभी सामने से खरे आँटी आती दिखाई दे गई। हाथ में सामान के नाम पर माचिस का एक पैकेट...। हम लोगों को गेट पर देख कर वो भी रुक गई,"आज दिखाई दी हैं आप भाभी जी...वरना ये जब ससुराल रहती है तो आप भी जल्दी नहीं दिखाई देती...। बस चुनमुन के कारण ही निकलती हैं आप...।"
माँ जाने किस विचार में डूबी थी, बस पूछा..."अभी क्या करने निकली थी...।"
आँटी ने कहा, "कुछ नहीं भाभी जी...माचिस खत्म हो गई थी, वही लेने निकली थी...।"
माँ कुछ चौंक गई,"अरेऽऽऽ...इस समय क्यों गई...। हमारे यहाँ से ले लेती न एक डिब्बी...। अभी क्यों परेशान हुई...?"
आँटी माँ का मदद वाला स्वभाव जानती थी, सो खुश हो गई,"अरे, तो क्या हुआ भाभी जी...। इसी बहाने आप सब से मुलाकात हो गई...। अब जा रहे, चाय बनाने...।"
पीछे से तब तक मैंने बोल दिया,"आँटी, हम बनाने जा रहे चाय...। आ जाइए...अंकल जी का कप हम दे आते हैं...।"
आँटी ने हामी भरते हुए कहा,"बनाओ...हम अंकल जी को बोल कर आते हैं...।"
मुझसे ज़्यादा मेहमाननवाज़ माँ हैं...पर उस पल उन्होंने कुछ अजीब नज़रों से मुझे देखा..."चाय चढ़ा कर चुनमुन का कपड़ा तो निकाल दो...या बातें ही करती रहोगी...?" फिर वे वापस दीदी की ओर मुड़ी,"तुम नहीं तैयार हुई...?"
दीदी अब तक कुछ संशय में आ चुकी थी। उन्होंने गौर से माँ को देखा, फिर अपनी आदत के हिसाब से उन्हें छेड़ते हुए मुझसे बोली,"ज़रा चेक करो...सब ठीक है न...?"
अब तक माँ के इस अनोखे-से व्यवहार से शक तो हमको भी हो चुका था, इसी लिए डाइरेक्ट मैदान में आ गए,"आप क्या समझ रही हैं अभी...? चुनमुन का कौन सा कपड़ा निकालना है...और ये दीदी को कहाँ भेज रही तैयार कर के...?"
माँ अब भी कुछ नहीं समझ पाई थी। उन्होंने फिर हमको ऐसे देखा जैसे हम सीधे मंगल ग्रह से आए हों,"क्यों, स्कूल नहीं भेजना क्या उसे...? और मिथिलेश का भी तो स्कूल खुला है न...उसे देर नहीं हो जाएगी...?"
सारा मामला समझ में आते ही हम और दीदी एकदम ठहाका मार कर हँस पड़े...। हल्का सर्दी की शुरुआत का समय था, सो शाम के छ बजे भी वैसा ही धुंधलका दिखता था, जैसे सुबह के छ बजे...। बहुत गहरी नींद से जागी हुई माँ समझ नहीं पाई थी कि वो शाम को सो कर उठी हैं या सुबह...। उनके नाखुश नज़र आने की बस इतनी सी वजह थी कि उन्हें लग रहा था कि बातों में लग मैं अपनी ज़िम्मेदारी भूल रही थी...। बड़ी मुश्किल से हँसी रोक कर जब माँ को बताया...ये सुबह नहीं, शुक्रवार की शाम है...तो उनकी हँसी हम तीनों में से सबसे ज़्यादा ज़ोरदार थी...।

(इस पोस्ट को लिख पाने का पूरा क्रेडिट दिल्ली में रह रहे मेरे छोटे भाई अभि को जाता है, जिसके साथ हाल ही में एक शाम कुछ ऐसा ही कन्फ़्यूज़न हुआ...और तब से वो लगातार फोन पर ज़िद किए जा रहा, इस घटना को एक ब्लॉग-पोस्ट के रूप में लिख डालने की...। वैसे इतना पता है, अगर वो लिखता, तो इससे बहुत बेहतर लिख पाता...पर चश्मदीद गवाह होने के नाते इसे मुझे ही लिखना पड़ा...।)

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7 comments

  1. शानदार पोस्ट है !!!हम बस विश़ूअलाइज़ कर रहे हैं आंटी का एक्स्प्रेसन कैसा हुआ होगा? :) :) :) और आप कैसे ठहाके लगा कर हँसी होंगी....गज्ज़ब का कन्फ्यूजन !!! हा हा हा !! बस एक छोटी सी बात पसंद नहीं आई, वरना बाकी सब चकाचक !!!

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  2. शानदार पोस्ट है !!!हम बस विश़ूअलाइज़ कर रहे हैं आंटी का एक्स्प्रेसन कैसा हुआ होगा? :) :) :) और आप कैसे ठहाके लगा कर हँसी होंगी....गज्ज़ब का कन्फ्यूजन !!! हा हा हा !! बस एक छोटी सी बात पसंद नहीं आई, वरना बाकी सब चकाचक !!!

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  3. अरे छोडो , ई गोलगपवा से बाग बगीचा में टहला लो , नय त ऊ हैं न चचा खुसरो ...अरे नहीं कौन हैं ऊ दूसरे वाले चचा गालिब ..दुन्नो के परेम में ऊंघता रहता है भर दिन ..ई नय लिखेगा न ई सब । ई होता है खासकर बच्चों और बडों के साथ, चाची के साथ हुआ तो हमको कोनो अदगुत नय लगा मुदा ई गोलगप्पवा भी :) और का तो अगले साल हमको बरियाती ले जाएगा , बियाह करने भी भोरे भोर न पहुंच जाए लईका :) :) चाय ड्यू हो गया हमारा :)

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  4. ek baar hame bhi confusion hua tha..tab ham brush karne nikal pade the..good post..thnx..

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  5. lovely post....refreshing..
    loved it!!!
    :)

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  6. हा हा हा ..होता है ,होता है हम भी एक बार ब्रश कर चुके हैं.... किसी को बताईयेगा नहीं ...:-P

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  7. Hota hai... Mere sath bhi ho chuka hai.. Baad me khud pe bahut sharm aati hai!! :)

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