किस लिए...

Thursday, April 07, 2011


इस कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया चाहूँगी...।
सोच कर देखिएगा, कहीं अनजाने ही हम अपने बच्चों को एक हथियार की तरह तो इस्तेमाल नहीं कर लेते...और अगर करते हैं, तो ‘किस लिए...???'


कहानी
                                           किस लिए...
                                                                                  प्रियंका गुप्ता

           रेडियो पर बजते " वन्दे मातरम " की स्वर लहरी मिकी के कानो में पड़ी तो अधजगी मिकी बग़ैर आँख खोले ही समझ गई, सुबह हो गई । उसे पता था, रोज की तरह अभी मम्मी आएँगी , उसे प्यार से चूम कर, फुसला कर उठाएँगी और जबर्दस्ती पॉटी-ब्रश करा कर , नहला-धुला कर जल्दी से तैयार हो एक राजा बेटा की तरह स्कूल जाने को मनाएँगी और अगर मिकी नहीं मानेगी तो उसे जबरन स्कूल भेजेंगी । मिकी को यह भी पता था कि " वन्दे मातरम " ख़त्म होते ही रेडियो में टाइम बोला जाएगा और उसके सिर के पास रखी घड़ी में एलार्म बजेगा...टींऽऽऽऽ । मम्मी कभी भी सिर्फ़ घड़ी के एलार्म के भरोसे नहीं रहती बल्कि साथ में रेडियो बजा कर भी चेक करेंगी कि घड़ी सही है या नहीं । पापा हमेशा कहते हैं , सुबह टी.वी चलाया करो , पर मम्मी को रेडियो ही ज्यादा पसन्द है । पापा कई बार मिकी से भी कहते हैं, ये रेडियो नहीं , ट्रांजिस्टर है...पर मिकी बोल ही नहीं पाती । उसे रेडियो बोलना आसान लगता है , मम्मी की तरह...।
           मिकी का मन करता है कि एलार्म और रेडियो दोनो ही बन्द कर दे , और धीरे से टी.वी पर कार्टून नेटवर्क लगा दे पर जानती है कि ऐसे में अगर वह ज़रा भी हिली तो मम्मी तुरन्त पास आकर कहेंगी," अरे...मेरी गुड़िया उठ गई क्या...?" और मिकी फिर बच नहीं पाएगी ।
           मिकी बिना हिले-डुले लिहाफ़ में दुबकी रही । एक ही करवट देर से सोई थी जिसके कारण उसका कन्धा दर्द होने लगा , फिर भी वह हिली नहीं ।
          " हे भगवान जी , हमारा रेडियो खराब कर दो...। हमारी घड़ी भी जरूर से खराब कर देना...या फिर मम्मी से कह दो कि आज संडे है...उनको सब भुला दो । हमको किसी भी तरह छुट्टी दिला दो भगवान जी...हमको छुट्टी दिला दो...।" मिकी कस कर आँखें मींचे भगवान जी से मन-ही-मन प्रार्थना कर ही रही थी कि तभी मम्मी ने उसके मुँह पर से लिहाफ़ हटा दिया । मिकी ने और जोर से आँखें मींच ली । शायद मम्मी दया कर के उसे थोड़ी देर और सोने दें और स्कूल की देर हो जाए या शायद भगवान जी ही मम्मी को सब कुछ भुला दें, जैसा दादी की सुनाई कहानी में कृष्ण भगवान ने अपनी मम्मी को सब कुछ भुला दिया था । पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । मम्मी ने तो रोज की तरह ही मिकी के सिर पर धीरे से हाथ फेरा," मिकी...मेरा राजा बेटा...अभी उठेगा न, देर हो जाएगी...।"
         " बछ...पाँच मिनत औल..." मिकी अपनी छोटी सी हथेली को मम्मी के आगे नचाती हुई अपने को भरसक उनींदा जता कर रिरियाई ।
         " नहीं बेटा...मेरा अच्छा बच्चा...। आज मम्मा वैसे ही दस मिनट देर से उठा रही है अपने बेटा को...। अब जल्दी से उठ जा मेरी बेबी डाल...।" मम्मी ने प्यार से उसके गाल पर एक पप्पी लेते हुए कहा ।
         " अच्छा, तब तक काल्टून लगा दो न...फिल उठ जाऊँगी..." मिकी फिर कसमसाई तो मम्मी ने लिहाफ़ हटा कर सीधे उसे गोद में उठा लिया ," कोई कार्टून-वार्टून नहीं और अब आलस भी नहीं मिकी...। चलो जल्दी से ब्रश करो, फिर पाटी...। स्कूल की देर हो जाएगी तो सिस्टर टाफ़ी नहीं देंगी...।" मम्मी ने वाश बेसिन के सामने स्टूल पर खड़ा करके उसके नन्हें-नन्हें हाथों में ब्रश थमा दिया ।
           मिकी को अब रोना आने लगा । भगवान भी नहीं मानते उसकी बात । वो भी उसको प्यार नहीं करते । वह रोज कहती है उनसे, पर वो भी उसे स्कूल जाने से नहीं बचाते । अचानक उसकी नज़र सामने कमरे में लेटे पापा पर पड़ी । शायद आज वे ही उसे स्कूल जाने से बचा लें ।
         " पापाऽऽऽ," मिकी ने तार-सप्तक में पापा को पुकारा, पर उत्तर पापा की बजाए तेज़ आवाज़ में मम्मी ने दिया," कोई पापा-वापा नहीं...बड़ी आई पापा की लाडली...। मालूम है कितना प्यार करते हैं, सब चोंचलेबाजी..." मम्मी जल्दी-जल्दी मिकी को कुल्ला कराती बड़बड़ा रही थी," दो-चार रुपल्ली का सामान ला देंगे और बहुत हितैषी बन कर रोकेंगे स्कूल जाने से...। क्या मैं समझती नहीं , इतना ही प्यार है तो क्यों..."मम्मी आगे कुछ बोल पाती कि तभी पता नहीं कब वहाँ आकर खड़े हो गए पापा चीखे," चुप कर, ख़बरदार जो आगे कुछ आऊल-फाऊल बोला तो...ज़बान खींच लूँगा तेरी...।"
         " क्यों चुप रहूँ ?" मम्मी भी अपने पूरे तेवर में थी," इस लिए कि तुम चीख-चीख कर पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लोगे ? सामान तोड़ोगे ? नौटंकी दिखाओगे ? करो...जो करना है, करो...आई डोन्ट केयर एनी मोर...?"
           मिकी को लगा, आज फिर सण्डे की तरह पापा कोई सामान उठा कर पटकेंगे, मम्मी का जो कपड़ा बाहर मिलेगा , उसे ईईईईई करते हुए फाड़ने की कोशिश करेंगे , खूब जोर-जोर से चिल्लाएँगे और फिर थोड़ी देर बाद स्कूटर पर बैठ कर कहीं चले जाएँगे ।
           अगर आज भी संडे होता तो मिकी इस लड़ाई, बहसबाजी से घबरा कर एक कोने में दुबक कर रोती पर आज मिकी को पापा-मम्मी की यह लड़ाई बहुत अच्छी लग रही थी । उसे एक आशा सी बँधी । शायद भगवान जी ने उसकी प्रार्थना सुन ली है । हो सकता है इस लड़ाई में स्कूल की देर हो जाए और मिकी को छुट्टी मिल जाए ।
           पिछले हफ़्ते ऐसा ही तो हुआ था । मिकी के लिए दूध बनाती मम्मी शायद पापा की चाय में चीनी डालना भूल गई थी । पापा की शिकायत पर उन्होंने यही कहा कि उन्होंने चीनी डाली है और अगर नहीं डाली है तो वो खुद डाल लें । पापा ने बजाय चीनी डालने के चाय का कप ही पटक दिया । चाय का कुछ छींटा मिकी पर भी पड़ा, लेकिन वह जलन से कम और भय से ज्यादा चीख कर रोई थी । और बस्स...! उसके बाद शुरू हुई मम्मी-पापा की लड़ाई में मिकी के स्कूल की छुट्टी...। पर आज ऐसा नहीं हुआ । भगवान ने उसकी प्रार्थना क़बूल नहीं की थी शायद...। तभी तो न जाने क्यों पापा चुप होकर वहाँ से हट गए और मम्मी भुनभुनाती हुई ही मिकी को पाटी तक ले गई ।
         " मम्मीऽऽऽ पेऽऽऽट दर्द..." मिकी फिर रिरियायी ।
         " कोई पेट-दर्द नहीं है," मम्मी मिकी से भी गुस्सा हो गई," रोज यही नौटंकी दिखाती है...। आज रो चाहे धो, स्कूल तो जाना ही पड़ेगा...।"
          अपनी यह आशा भी टूटते देख मिकी सचमुच रोने लगी थी पर मम्मी पर कोई असर नहीं हो रहा था । ऐसी बात नहीं थी कि मिकी झूठ बोल रही थी । पता नहीं क्यों, स्कूल की बात सुनते ही उसे जोरों का पेट-दर्द होता है और छुट्टी मिलते ही पेट-दर्द गायब...। पर वह यह बात किसी को नहीं बताती । वरना फिर मम्मी दया करके छुट्टी नहीं दिलाएँगी ।
          मम्मी आज उसे बिना पुचकारे ही नहला-धुला कर जल्दी-जल्दी तैयार कर रही थी । दूध का गिलास मुँह से लगा कर किसी तरह वह आधा दूध ही पी पाई थी कि अचानक एक जोरों की उबकाई आई और जब तक वह संभल पाती, उल्टी हो गई । मम्मी के सिर पर भी पता नहीं क्या भूत सवार था कि ऐसे में हमेशा पुचकार कर चुप कराने वाली मम्मी ने तड़-तड़ चार-पाँच धौल मिकी की कोमल पीठ पर जड़ दिए," सब के सब मेरे दुश्मन...। बाप तो पहले से था ही, अब ये भी मेरी जान लेने को तैयार हो रही है । बाप-बेटी दोनो मिल कर मार डालो मुझे...। जितना करो दोनो का, उतना ही सिर चढ़े जाते हैं । जाओ दोनो भाड़ में..." मम्मी दो धौल और जमा कर उल्टी साफ़ करने लगी थी । मिकी को बहुत तेज़ मार लगी थी, पर और मार के भय से उसने अपनी रुलाई रोकने का बहुत प्रयत्न किया । लेकिन रुलाई थी कि हिचकियों में बँध कर बाहर आ ही रही थी ।
          मम्मी से दोबारा लड़ने के मूड में अन्दर आए पापा को उसे इस बुरी तरह रोते देख कर पता नहीं उस पर दया आ गई या वो इस वक़्त बेटी को अपने पक्ष में करने का मौका नहीं गँवाना चाहते थे, उन्होंने पुचकार कर मिकी को गोद में उठा लिया।
        " चलो बेटा...हम खुद अपनी राजकुमारी को जूता-मोजा पहना कर ले चलेंगे, टाफ़ी दिलाएँगे और परी वाली कहानी भी सुनाएँगे । सुनोगी न सोने के बालों वाली परी की कहानी...?" पापा ने उसे जूता पहना कर उसके गालों पर एक चुम्मी ली और उसका बैग और बाटल उठा लिया ।
         " ले जा रहा हूँ इसे...मेरा टिफ़िन भी तैयार कर देना...," पापा ने तेज़ आवाज़ में मम्मी से कहा तो मम्मी ने प्रत्युत्तर में उन्हें घूरा भर, कहा कुछ नहीं । पापा की गोद से उतर मिकी ने चापलूसी से मम्मी को "किस" किया," छुट्टी में जरूर आ जाना मम्मी, भूलना नहीं । वहीं सीढ़ी के पास खड़ी रहना, देर बिल्कुल न करना । भूलना नहीं, जरूर से आ जाना...।" रोज का अपना रटा-रटाया वाक्य मम्मी के आगे दोहराते-दोहराते मिकी के आँसू फिर बह निकले । मम्मी अचानक दयार्द्र हो उठी," नहीं भूलूँगी, आधा घण्टा पहले ही आकर खड़ी हो जाऊँगी, अच्छा...। अब चुप हो जाओ नहीं तो आपके स्कूल में सब हँसेंगे, है न...?" मिकी के आँसू पोंछ मम्मी ने उसे खूब प्यार किया ।
           स्कूटर पर आगे खूब कस कर हैंडिल पकड़े खड़ी मिकी पापा से वादे के अनुसार सोने के बालों वाली परी की कहानी सुन रही थी । पर ज्यों-ज्यों स्कूल और स्कूटर की दूरी कम हो रही थी, मिकी की धड़कनें तेज़ हो रही थी," हे भगवान, पापा मेरे स्कूल का रास्ता भूल जाएँ । स्कूल की घण्टी बज जाए...गेट बंद हो जाए...आज छुट्टी हो जाए । हे भगवान , आज रेनी-डे ही कर दो...।" मिकी परी की कहानी अनसुनी कर मन-ही-मन भगवान जी से प्रार्थना में जुटी हुई थी । भगवान जी इनमें से एक भी प्रार्थना सुन लें तो कितना अच्छा हो । पर भगवान ने तो उल्टे उसे समय से पहले ही स्कूल पहुँचा दिया ।
          " अभी दस मिनट बाकी हैं बैल होने में," पापा ने घड़ी देखते हुए कहा," चलो, तुम्हें टाफ़ी दिला दूँ...।"
          " अच्छा बेटे," पापा ने उसकी मनपसन्द टाफ़ी दिला कर अचानक पूछा," कल तुम्हारे अज्जू मामा आए थे न ? बताओ तो एक टाफ़ी और दिलाएँगे ।"
           मिकी को समझ नहीं आया, टाफ़ी और अज्जू मामा का क्या सम्बन्ध ? फिर भी और टाफ़ी पाने की लालच में उसने हामी भर दी ।
          " मम्मी से मेरे बारे में कुछ कह रहे थे ?" पापा ने दोबारा टाफ़ी दिलाते हुए पूछा ।
           मिकी ने "पता नहीं" के अन्दाज़ में हाथ घुमाया तो पापा रुआँसे हो उठे," तुम भी मुझे कुछ नहीं बताओगी मिकी तो मैं किसके सहारे जीऊँगा ? मम्मी को तो तुम सब बताती हो न, मुझे ही नहीं बताती...। मुझे तो कोई प्यार नहीं करता...तुम भी नहीं...। ख़ैर, ठीक है," पापा ने हमेशा की तरह एक लम्बी साँस भरी," तुम्हें क्लास में बैठा कर वापस लौटते वक़्त मैं ट्रेन के नीचे कट कर मर जाऊँगा...छुट्टी मिल जाएगी सब झंझटों से...।"
           मिकी को पता था, आदमी मर कर भगवान के पास जाता है और भगवान उसे कभी वापस नहीं भेजते...और अगर पापा वापस नहीं आए तो...? पापा के मरने की कल्पना से मिकी को फिर जोर का रोना आया," नहीं पापा, आप मलना नहीं । हम आपतो बहुत प्याल कलते हैं...।"
          " क्या पता बेटे...अब जो बदा होगा, देखा जाएगा । जैसी मेरी क़िस्मत...चलो, घण्टी हो गई क्लास की...।" पापा ने फिर एक लम्बी आह भरते हुए कहा और मिकी के बहते आँसुओं की परवाह किए बग़ैर उसे क्लास में छोड़ कर बाहर निकल गए ।
           पापा तो चले गए पर मिकी लगातार रोती रही । सिस्टर ने बहुत पूछा- मिकी क्यों रो रही हो ?- पर उसने कुछ नहीं बताया । सिस्टर की टाफ़ी का लालच भी मिकी को चुप कराने के लिए नाकाफ़ी रहा । हार कर उन्होंने उसे पुचकारना छोड़ कर खूब कस कर डाँटा । डर के मारे मिकी ने अपना मुँह दोनो हाथों से दबा कर रुलाई तो रोक ली पर सुबकियाँ बदस्तूर ज़ारी रहीं । सिस्टर क्या पढ़ा रही थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसे बस पापा की याद आ रही थी । कहीं वो सच्ची में...। मिकी की आँखों के आगे सहसा कोई भूली तस्वीर साकार हो उठी । ट्रेन के नीचे आकर बुरी तरह कट कर मरा एक कुत्ता...। मिकी कितनी कस कर चिपट गई थी मम्मी से, उस कुत्ते को कटते देख कर । और फिर डर के मारे मम्मी के कँधे में मुँह छुपाए-छुपाए ही सो गई थी । तो क्या पापा भी उसी कुत्ते की तरह कट कर मर जाएँगे ? नहीं...मिकी फिर सुबकने लगी । सिस्टर उसे रोने के लिए फिर से डाँटती कि तभी प्रिंसिपल आफ़िस से मिकी के लिए बुलावा आ गया ।
            प्रिंसिपल आफ़िस में मिकी के लिए एक सुखद आश्चर्य मौजूद था । मम्मी उसे छुट्टी दिलाने आई थी । मिकी का सारा डर और दुःख सहसा ही काफ़ूर हो गया । भगवान जी सचमुच बहुत अच्छे हैं । उसे दादी की सीख याद आई," सच्चे दिल से अगर भगवान जी से कोई कुछ माँगे तो वे जरूर उस इच्छा को पूरी करते हैं ।" जरूर भगवान जी ने ही भेजा होगा मम्मी को उसे छुट्टी दिलाने के लिए ।
            क्लास से उसका बैग-बाटल मँगा प्रिंसिपल ने मम्मी को उसे घर ले जाने की इजाज़त दे दी । मम्मी की गोद में चढ़ प्रिंसिपल को टा-टा करती मिकी की खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी ।
           " पापा बाहर हैं क्या ? " मिकी को सहसा फिर पापा की याद आ गई थी ।
           " नहीं, आफ़िस गए हैं," उसे संक्षिप्त सा जवाब दे मम्मी ने प्रिंसिपल को थैंक्स कहा और बाहर निकल आई । पापा को ज़िन्दा और सही सलामत आफ़िस गया जान कर मिकी निश्चिन्त हो गई ।
            घर तक का रास्ता रिक्शे पर बैठे-बैठे कब ख़त्म हो गया, मिकी अपनी मस्ती में जान ही न पाई । घर पहुँच कर मिकी को वहाँ का सारा माहौल हैरान कर गया । मम्मी अपना और मिकी का सूटकेस तैयार करने लगी थी," हम नानी के यहाँ जा रहे हैं," मम्मी ने उसका ड्रेस बदलते हुए बस इतना ही बताया था । मिकी को बेहद खुशी महसूस हुई । नानी के यहाँ जाने का मतलब चार-पाँच दिनो तक स्कूल से छुट्टी और ढेर सारी मौज-मस्ती । मिकी जानती थी, नानी रोज उसके लिए केले मँगवाएंगी, मामी शाम को उसकी मनपसन्द खीर और पकौड़े बनाएँगी और अज्जू मामा घुमाने और टाफ़ी दिलाने ले जाएँगे ।
          " अब की बार वह अज्जू मामा से चाकलेट नहीं लेगी," मिकी ने मन-ही-मन निश्चय कर लिया ," बल्कि इमली वाले चूरन लेगी, जो पापा लाते हैं...।" मिकी अपनी जीभ पर चूरन का स्वाद महसूसने लगी थी । अभी वह काल्पनिक चूरन का पूरा मज़ा ले भी न पाई थी कि मम्मी ने सूटकेस के साथ-साथ उसे भी कमरे से बाहर कर ताला लगा दिया और उसका हथ पकड़े-पकड़े रेनू ताई के दरवाज़े पहुँच गई," शाम को इसके पापा आएँ त्रो उन्हें चाभी और ये चिठ्ठी दे दीजिएगा...।" मम्मी ने ताई को घर की चाभी और एक लिफ़ाफ़ा पकड़ा दिया ।
          " जा रही हो अनु," ताई ने मम्मी का हाथ पकड़ लिया," मेरी मानो तो एक बार फिर अपने फ़ैसले पर गौर कर लो...इतनी जल्दबाज़ी में इतना बड़ा फ़ैसला...अपना नहीं तो इसका सोचो," ताई ने हैरान मिकी के सिर पर हाथ फेरा," इस पर क्या असर पड़ेगा ?"
          " इसी के कारण तो अब तक इस नर्क से बँधी थी दीदी," मम्मी की आँखों ने समुन्दर से थोड़ा पानी ले लिया था," वरना कब की सब कुछ त्याग चुकी होती । पर अब सहा नहीं जाता । ये रोज-रोज के लड़ाई-झगड़े, नफ़रत..." मम्मी ने थोड़ा रुक कर रुमाल से आँख और नाक पोंछी," आप तो सब देखती-सुनती ही रहती हैं । उस दिन कैसा पूरा खाना उठा कर आँगन में फेंका था । ये तो कहिए मिकी सो रही थी उस वक़्त, वरना बेचारी कितना डर जाती है उनकी ये सब हरक़तें देख कर...। पर बच्ची है न...उसे फुसलाने के लिए सस्ती-मद्दी चीजें ले आएँगे, डायलागबाज़ी करेंगे । समझते हैं ऐसे बच्चे को अपने पक्ष में कर लेंगे," मम्मी क्षण भर रुक कर चुपचाप उसके सिर पर हाथ फेरती रही," अभी तक सोचती थी , मिकी बड़ी हो जाए , इसका शादी-ब्याह करके इसे सैटिल कर दूँ , फिर सोचूँगी अपने बारे में...। कल भैया भी यही समझा गए । पर अब ये मुमकिन नहीं," मम्मी फिर पल भर रुकी," हर बार की लड़ाई और आइंदा ऐसा न करने का उनका वायदा अब बर्दाश्त नहीं होता मुझसे...। इतना ही दूसरी औरतों का शौक था तो मेरी ज़िन्दगी क्यों बर्बाद की ? कितना तो रोका, समझाया...। प्यार से , लड़ कर , पर नहीं...कल रात ग्यारह बजे आए पीकर...और आज..." मम्मी फिर फफक पड़ी ," उस औरत के लिए मुझ पर हाथ उठाया, आपकी मौजूदगी का भी कोई लिहाज़ नहीं किया...। बस , बहुत हो चुका , अब नहीं सहूँगी ," एक दृढ़ विश्वास से मम्मी का चेहरा व गर्दन दोनो तन गए ," पढ़ी-लिखी हूँ । खुद कमा कर अपना और अपने बच्चे का पालन पोषण कर सकती हूँ । आदमी का हाथ एक बार उठ जाए न तो समझ लो , ये भी उसकी रोज की आदत बन जाएगी...। बीवी हूँ , कोई ग़ुलाम नहीं...मेरा भी कुछ सम्मान है...।"
            मिकी को और कुछ समझ आया हो , न आया हो , पर इतना जरूर समझ आ गया कि मम्मी बहुत दुःखी हैं । लेकिन मम्मी रो क्यों रही हैं , वह नहीं समझ पाई । उनको तो स्कूल नहीं जाना पड़ता , फिर...?
            बिना कुछ जाने-समझे , मम्मी के दुःख से दुःखी मिकी ने मुँह बिदोरना शुरू किया ही था कि चन्ना दीदी उसे गोद में उठा कर रसोई तक ले गई ," ले मिकी , पकौड़े खा । पत्ते वाले हैं , तेरी पसन्द के...।"
            मिकी बमुश्किल दो पकौड़े ही कुतर पाई थी कि मम्मी का बुलावा आ गया । दीनू भैया स्टेशन के लिए रिक्शा ले आए थे । चन्ना दीदी ने एक थैली में ढेर सारे पकौड़े भर कर मिकी के नन्हें हाथों में थमा दिए ," ले मिकी , पकौड़े ट्रेन में खुद भी खा लेना और मम्मी को भी खिला देना ...और देखना, मम्मी को किसी चीज़ के लिए तंग मत करना और कहना , जल्दी वापस आएँ...।"
            मिकी ने गर्दन एक तरफ़ को टेढ़ी कर चन्ना दीदी से सहमति तो जताई पर जल्दी वापस आने की बात उसे पसन्द नहीं आई । वो क्या पागल है जो मम्मी को वापस आने को कहेगी ताकि मम्मी उसे फिर से स्कूल भेजने लगें...। चन्ना दीदी का हाथ पकड़े-पकड़े वह बाहर आई तो देखा , मम्मी और रेनू ताई दोनो ही रो रही थी ," मकान मालिक हो कर भी आपने हमेशा बड़ी बहन का प्यार दिया ," मम्मी ताई से कह रही थी ," आप सब का प्यार-सम्मान कभी नहीं भूल सकती ।"
           " मेरी बात पर गौर करना अनु । भगवान से यही प्रार्थना करूँगी कि सब कुछ ठीक हो जाए औए तुम जल्दी से फिर वापस आओ अपने घर...। वहाँ पहुँच कर फोन जरूर करना ..." मिकी का माथा चूम कर हाथ हिला कर विदा लेती ताई ने मम्मी से कहा ।
            ट्रेन में पुलकित हो मिकी जितना चहक रही थी , मम्मी उतनी ही खामोश थी , खोई-खोई सी ।
           " मम्मी...मेले खिलौने...?" अकेले ही ओक्का-बोक्का खेलती मिकी को सहसा अपने खिलौनों का ध्यान आया ।
           " खिलौने मौसी से ले लेना ।" मम्मी संक्षिप्त-सा उत्तर दे खिड़की से बाहर देखने लगी थी ।
           " बुढ़िया मौसी से...?" मिकी के सवाल पर मम्मी ने हुँकारी तो भरी पर मिकी का ध्यान तो बुढ़िया मौसी पर था । गुड़िया मौसी को मिकी हमेशा बुढ़िया मौसी ही कहती थी और इस पर चिढ़ कर मौसी जब उसे घूंसा दिखाती , दौड़ाती तो मिकी झट कूद कर नाना की गोद में चढ़ जाती । नाना अपनी राजकुमारी के पीछे पड़ी बुढ़िया पर छड़ी फटकते तो बुढ़िया डर जाती और मिकी खुश होकर ताली पीटती ," बुढ़िया मौसी आई , नाना का डण्डा खाई...।" मिकी को सारा दृश्य याद करते-करते ही जोरों की हँसी छूट गई । यही सब सोचते-सोचते वह कब सोई , कब नानी के यहाँ पहुँच भी गई , उसे पता ही नहीं चला ।
            नानी के यहाँ आए मिकी को कई दिन हो गए थे । अक्सर नानी के घर का माहौल भी मिकी को कुछ अजीब-सा लगता था । मम्मी सब से घिरी कई बार रो पड़ती थी और नाना-नानी , अज्जू मामा , मामी , सभी मम्मी को कुछ समझते थे । उस वक़्त मिकी खुद को बहुत अकेला महसूसने लगती थी । ऐसे में उसने कई बार बुढ़िया मौसी के साथ खेलना चाहा , पर बुढ़िया मौसी हर बार उसे टी.वी के सामने बैठा कर कार्टून नेटवर्क लगा देती ।
            आजकल मिकी को पापा की भी बहुत याद आती थी । सपने में वह कई बार पापा को देख चुकी थी । यह पहली बार हो रहा था जब मिकी ने पापा के बग़ैर इतने ढेर सारे दिन नानी के यहाँ गुज़ारे हों । ऐसा नहीं था कि इस बीच पापा से उसकी मुलाक़ात न हुई हो , पर वे भी तो नाममात्र की रही । पहली बार तो पापा उसके यहाँ आने के दूसरे दिन ही पहुँचे थे , पर हर बार की तरह रात को रुके नहीं थे , बल्कि नाना के कमरे में बैठ कर नाना , मम्मी और अज्जू मामा से ही बात की थी । मामी ने कई बार मिकी को वहाँ से हटा कर रसोई में ले जाने की कोशिश की थी , पर मिकी नहीं मानी थी । हार कर अज्जू मामा ही उसे बंदर का नाच दिखाने का वायदा कर के अपने साथ स्कूटर पर ले गए थे और मिकी के लौटने तक पापा जा चुके थे ।
            उसके बाद पापा सिर्फ़ दो बार और आए थे । एक बाए तो रात को , जब मिकी सो रही थी और दूसरी बार सिर्फ़ आधे घंटे के लिए । आकर उन्हों ने मम्मी से काग़ज़ पर बिल्कुल वैसी ही चिड़िया बनवाई थी जैसी चिड़िया मम्मी मिकी के रिजल्ट कार्ड पर बनाती थी । फिर मिकी से पापा ने पूछा ," कभी मेरी याद आती है ?" तो उसने झट से सिर ऊपर-नीचे करके कहा ," रोज...।" सुन कर पापा ने उसको चूरन और पप्पी दी थी और चले गए थे । मिकी को आश्चर्य इस बात का था कि हर बार की तरह इस बार मम्मी ने मिकी से चूरन " गन्दी चिज्जी " कह कर फिंकवाया नहीं था ।
            उस दिन के बाद मिकी ने कई बार पापा की राह देखी , पर पापा नहीं आए । मिकी को बार-बार घर में छूट गए अपने टैडी बियर , छुकी-छुकी ट्रेन , डमाडम बंदर और पापा की याद आती थी । पापा तो अब उसे फोन भी नहीं करते थे और मम्मी से उनसे फोन मिला कर बात कराने को कहने पर वो हमेशा " अभी नहीं मिकी , बाद में..." कह देती थी । कई बार उसका जी चाहा मम्मी से कहे वापस चलने को , पर उसको पता था , वहीं उसका स्कूल भी है और मिकी स्कूल तो कतई नहीं जाना चाहती थी ।
            मिकी ने आज कई दिनों बाद फिर अपने सिरहाने रेडियो बजते सुना । उसे लगा , मम्मी अभी आकर उसे स्कूल जाने के लिए तैयार करेंगी । पर काफ़ी वक़्त बीत जाने पर भी ऐसा कुछ नहीं हुआ । मिकी को बेहद हैरानी हुई । अभी मिकी ने वजह जानने के लिए धीरे से अपना मुँह लिहाफ़ के बाहर निकाला ही था कि चोरी पकड़ी गई । मम्मी तो वहीं बैठी थी ।
           " मेरा बच्चा जाग गया ," मम्मी ने हल्के से उसे गुदगुदाया ।
           " मम्मी , इछकूल नहीं..." गुदगुदी से हँसने के बावजूद मिकी का मुँह उतर गया तो मम्मी मुस्करा दी , " स्कूल कैसे जाएगी ? हम तो नानी के घर में हैं । मिकी को तो हम कहीं और ले जाएँगे आज...।" मम्मी ने मिकी को गोद में उठाते हुए कहा तो मिकी को बहुत राहत मिली ।
             आज मम्मी ने मिकी को खूब चुमकार कर नहलाया-धुलाया । अगर घर होता तो मम्मी के आश्वासन देने के बावजूद मिकी को यही शक़ होता कि उसे स्कूल जाना होगा । पर यहाँ न तो उसका स्कूल था और न ही यूनीफ़ार्म...। मम्मी तो उसे नहलाते , पोंछते और पाउडर लगाते वक़्त बार-बार पूछ रही थी ," मिकी बेटा तो मम्मा को बहुत प्यार करता है न...हमेशा मम्मा के साथ रहेगा न...? मम्मा उसे घुमाएँगी , टाफ़ी-खिलौने दिलाएँगी...।"
            " इछकूल भेजोगी...?" मिकी ने इतने प्रलोभनो के बीच सहसा अपना शक़ जाहिर किया था । मम्मी ने क्षण भर कुछ सोचा , फिर मिकी को खींच कर सीने से लगा लिया ," जब मिकी गुड़िया का मन नहीं होगा , तो मम्मा स्कूल नहीं भेजेंगी...।"
             मिकी का दिल खुश हो गया । स्कूल नहीं जाना तो मिकी मम्मी की हर बात पर गर्दन "हाँ" में हिला सकती है , भले ही गर्दन दुखने ही क्यों न लगे...।
             मम्मी ने मिकी के लिए उसकी मनपसंद गुलाबी फ़्राक निकाली थी । खूब घेरदार , फ़्रिल वाली , जिसकी दोनो बाँहों पर दो-दो गुलाब टँके थे और बेल्ट भी गुलाबों वाली ही थी । मिकी पुलकित हो उठी । मम्मी-पापा , अज्जू मामा और बुढ़िया मौसी , सभी उसे इस फ़्राक में परियों की राजकुमारी कहते थे । और इसका घेर...। मिकी ने धीरे से फ़्राक के घेर को सहलाया । यह घेर तो एकेदम पहिया बन जाता है जब वह जोर-जोर से चक्कर लेती है । मिकी का मन हुआ , इसे पहन कर वह फिर खूब जोरदार चक्कर मारे , पर चुपचाप बैठी रही । जानती थी , उसके रुकने के बाद जब सारा कमरा चक्कर मारेगा तब मम्मी उसे लिपटा कर धीरे-धीरे डाँटेगी ," कितनी बार कहा है , चक्कर मत लिया करो । अब सब कुछ घूम रहा है न ? आइन्दा अगर कभी चक्कर लिया तो मम्मा बहुत मारेगी ।" लेकिन मिकी तो अगली बार फिर मार लेती चक्कर और मम्मी मारने की बजाए हर बार की तरह सिर्फ़ धमकी दे कर रह जाती ।

           " अरे ! मम्मा तो अपनी बेबी डाल के लिए ग़लत जूता ले आई ," ध्यानमग्न , चुप बैठी मिकी के नन्हें पैरों में गुदगुदी कर मम्मी ने लाड़ से कहा और उसके काले जूतों के बदले गुलाबी जूते लेने दूसरे कमरे में चली गई । मिकी को यह बिल्कुल सही मौका लगा चक्कर लेने का । मम्मी को कुछ पता भी नहीं चलेगा ।
            " ता-ता-थैया..." अपनी नन्हीं बाँहें फैलाए , पैरों को घुमाती , चक्कर लेती मिकी सहसा मम्मी से टकरा कर रुक गई ।
            " अरऽऽरऽऽरे...! मेरी बेबी डाल को कहीं चोट तो नहीं लगी ?" मम्मी ने मिकी को बाँहों के घेरे में उठा कर आहिस्ता से सोफ़े पर बैठा दिया । मिकी का डाँट पड़ने का भय आश्चर्य आने के साथ ही भाग गया । "न" में सिर हिलाती मिकी ने अपने पाँव मम्मी की ओर बढ़ा दिए ।
             उसे खूब सुंदर तैयार कर के मम्मी , अज्जू मामा और नाना पता नहीं कहाँ ले गए , मिकी बहुत प्रयत्न करके भी समझ नहीं सकी । खूब बड़ा , जादूगर के महल जैसा मकान , जहाँ ढेर सारे अंकल काला कोट पहने घूम रहे थे । मिकी को लगा , वे सब उसी पहाड़ी वाले जादूगर के ग़ुलाम हैं जिसकी कहानी उसे नानी सुनाती हैं । पर जब एक काले कोट वाले ने अज्जू मामा से हाथ मिलाया , तब मम्मी की गर्दन से चिपकी मिकी को राहत पहुँची । ये सब अच्छे वाले जादूगर के ग़ुलाम हैं , परी वाले जादूगर के...।
             अंदर एक कमरे में मिकी को पापा भी मिले । उन्होंने मिकी को खूब पप्पी दी , पर चूरन लाना भूल गए थे शायद । थोड़ी देर बाद जब एक काले कोट वाले अंकल आकर कुर्सी पर बैठे तो पापा भी मिकी को गोद से उतार कर कुछ दूर वाली कुर्सी पर बैठ गए ।
           " ये जादूगर हैं ?" नए आए अंकल की ओर इशारा कर मिकी ने पूछा तो मम्मी ने प्यार से उसका मुँह सहला दिया ," नहीं बेटा , ये जज अंकल हैं ।"
            मिकी ने देखा , मोटा-मोटा चश्मा पहने जज अंकल से दूसरे दो काले कोट वाले कुछ कह रहे हैं । मिकी को लगा , हो-न-हो , ये जज अंकल इन सब के राजा हैं या फिर ये भी हो सकता है कि ये हातिम वाले दज़्ज़ाल हों...। आखिर ये काले कोट वाले किस तरह का जादू करते होंगे...? क्या ये भी राजकुमार को पत्थर का बना देते होंगे...? ये सब वास्तव में कौन हैं , इस बात पर वह ज्यादा कुछ सोच पाए कि तभी जज अंकल ने बड़े प्यार से उसे अपने पास बुलाया । डर के मारे मिकी मम्मी की गर्दन से चिपट गई । लगता है ये जादूगर उसे ही आम का पेड़ बना देगा...। पर मम्मी ने ही उसे पुचकार कर उनके पास जाने को कहा ।
            जज अंकल ने मिकी से उसका नाम पूछा पर मिकी टुकुर-टुकुर उनका मुँह ताकती रही । शायद वो उसका डर समझ गए तभी तो पूछा , " टाफ़ी खाती हो न...?" और उसके जवाब का इंतज़ार किए बग़ैर उसके आगे ढेर सारी टाफ़ी रख दी । मिकी को बहुत खुशी हुई । जज अंकल ने उसकी मनपसन्द संतरे की खट्टी वाली टाफ़ी रखी थी । उसने ललचाई नज़रों से टाफ़ियों की ओर देखा और फिर बारी-बारी से अंकल और मम्मी की ओर । मम्मी की आँखों में उसे इंकार की जगह कोई और ही भाव नज़र आया । रास्ता साफ़ देख मिकी ने "हाँ" में गर्दन हिलाते हुए झपट कर दोनो मुठ्ठियों में टाफ़ी भर ली ।
           " अब एक बात बताओ बेटा , तुम्हें मम्मी के पास रहना अच्छा लगता है कि पापा के पास...?"
            मिकी को जज अंकल की बात समझ में नहीं आई । वो तो अपने घर में मम्मी-पापा दोनो के ही साथ रहती है । लेकिन अंकल ने जब दोबारा यही बात पूछी तो उसे जवाब देना ही पड़ा , वरना अंकल टाफ़ी वापस ले लेते ," मम्मी-पापा के पाछ...।"
           " नहीं बेटा , अगर किसी एक के पास रहना हो तो किसके पास रहना तुम्हें सबसे ज्यादा अच्छा लगता है ?" अंकल ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा । मिकी को अपने बाल बिगड़ जाने का थोड़ा बुरा जरूर लगा , पर उसने जाहिर किए बिना अपना जवाब दोहरा दिया ।
            मिकी को अंकल ने आगे कुछ और पूछे बग़ैर ही वापस भेज कर कुछ कहा , जिसे न तो वह समझ पाई और न ही उसने उस ओर कुछ ध्यान ही दिया । उसका ध्यान तो अपनी टाफ़ियों की ओर था । ढेर सारी खट्टी-मीठी टाफ़ियाँ...।
           " वन...तू...थिरी...," मिकी अपनी फ़्राक पर रखी टाफ़ियों को धीरे-धीरे गिन ही रही थी कि सहसा सब लोग खड़े हो गए । मम्मी ने तेजी से उसे उठा कर हँसते हुए अपने सीने से लगा लिया ," मुझे पता था , तू मुझे ही मिलेगी...।"
           " मेली ताफी..." मम्मी के व्यवहार से अवाक , हतप्रभ मिकी बुदबुदाई पर मम्मी का ध्यान तो उसकी बतों की ओर था ही नहीं ," पल भर तो मैं जज साहब के मिकी से पूछने की बात पर डर ही गई थी ," मम्मी उसे गोद में हिलाते हुए अज्जू मामा से कह रही थी ," पर इसकी उम्र के कारण कहीं-न-कहीं ये भरोसा भी था कि कस्टडी मुझे ही मिलेगी...और फिर उस आदमी को फ़ुरसत भी है अपनी रंगरेलियों से , जो इसे पालता...तभी तो चुपचाप सब स्वीकार कर लिया...।"
            मम्मी की गोद में बेचैन-सी मिकी कसमसाई तो मम्मी ने उसे और कस कर चिपटा लिया । अचानक मिकी की नज़र दरवाज़े की ओर , गर्दन झुकाए , जाते हुए पापा पर पड़ी । मिकी ने पापा को आवाज़ दे उनकी ओर बाँहें फैलाई , पर पापा तो बिना रुके , उसकी ओर देखे बग़ैर आगे बढ़ गए ।
            मम्मी के कंधे पर उचकी आश्चर्यचकित , दुविधाग्रस्त मिकी ने नीचे ढेर सारे पाँवों द्वारा कुचली जाती टॉफ़ियों और दरवाज़े से बाहर जाते पापा की ओर बारी-बारी से देखा और एकाएक , पता नहीं क्यों , बुक्का फाड़ रोने लगी...।


















You Might Also Like

7 comments

  1. आद. प्रियंका जी,
    कहानी पढ़ने के बाद काफी सोच में पड़ गया ! जीवन की कटु सच्चाई आँखों के सामने चलचित्र की तरह दिखती चली गयी ! बच्चों के निश्छल मन में उठती कोमल संवेदनाओं का इतना सुन्दर और सजीव वर्णन कर आपने अपनी लेखनी की क्षमता को सिद्ध किया है !
    न जाने कितनी अनु और मिकी ऐसी त्रासदी को झेलने के लिए मज़बूर हैं !
    सामाजिक चिंतन से भरी मर्मस्पर्शी कहानी के लिए आभार !

    ReplyDelete
  2. काफी लंबी कहानी थी, खैर मैं तो पढ़ गया.
    जिस तरह से मिकी स्कूल जाने समय नौटंकी करती थी वैसी नौटंकियां को सब बच्चे करते हैं...और ठीक वैसे ही मैं भी स्कूल जाते वक्त रास्ते में ये मनाता रहता था की काश स्कूल किसी कारण बंद हो जाए...छुट्टी मिल जाए.. :)

    मिकी बेहद प्यारी लगी...लेकिन कहानी का अंत दुखद है...

    ReplyDelete
  3. हम तो यह कहानी पढ़ने से मरहूम ही रहते अगर अभिषेक ने बज्ज पर शेयर न किया होता, शुक्रिया अभिषेक का।

    यकीन मानिये पहली बार बच्ची के नजरिये से लिखी गई कहानी पढ़ी है, और इतनी छोटी छोटी चीजों को आपने सम्मिलित किया है जो कि जीवन में अहम स्थान रखती हैं।

    इस परिस्थिती के लिये पति-पत्नि दोनों ही जिम्मेदार हैं, बेचारी बच्ची की इसमें क्या गलती है ?

    अगर माता-पिता बच्चे की इस जद्दोजहद को समझ कर किसी और के बहकावे में ना आये तो ही बेहतर जीवन निकाला जा सकता है। गुस्से के घूँट तो परस्पर समन्वय के लिये पीने ही पड़ते हैं, वरना तो शादी ही नहीं करना चाहिये।

    आपको इतनी अच्छी कहानी लेखन के लिये बहुत बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  4. आदरणीय प्रियंका जी,
    नमस्कार !
    ......सामाजिक चिंतन से भरी मर्मस्पर्शी कहानी के लिए आभार !
    कहानी का अंत दुखद है...

    ReplyDelete
  5. bahut marmik kahani
    man bhar aaya
    badhai
    rachana

    ReplyDelete
  6. कहानी पढ़ कर उस पर अपनी अमूल्य टिप्पणी देने के लिए बहुत आभारी हूँ ।
    प्रियंका

    ReplyDelete
  7. बहुत देर से आपकी रचनाओं को पढ़ रहा हूँ , आप बहुत अच्छा लिखती है .. ये कहानी मुझे बहुत पसंद आई .. बधाई जी

    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete