मेरा बचपन

Saturday, April 02, 2011

नमस्कार,
आज बहुत दिनों बाद आप सब से मुखातिब हुई हूँ...| मेरी इस गैरहाजिरी का सबब वैसे तो कुछ खास नहीं था, बस बेटे के स्कूल की छुट्टियाँ थी...सो थोडा मनोरंजन, मेहमानों का आना-जाना...बेटे की फरमाईशें...वगैरह...वगैरह...|
अब स्कूल फिर से खुलने वाले हैं...कुछ तो खुल भी चुके हैं, सो अचानक एक दिन किताबों की अलमारी साफ करते-करते अपनी एक पुरानी डायरी मिल गयी... कुछ पन्ने पुराने हो फट से चुके थे...| उन्हीं के बीच मुझे अपनी वह कविता मिल गयी, जो मैंने तब लिखी थी जब मैं खुद स्कूल में पढ़ती थी |
आज मैं वह कविता ज्यों-की-त्यों आप के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ...बिना किसी सुधार या संशोधन के...|
आप की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी...|

कविता
              मेरा बचपन


      हर बार
      स्कूल खुलने पर
      जब मैं
      किताबों के ढेर में खो जाती हूँ
      तब
      मुझे लगता है कि जैसे
      इन किताबों के नीचे
      दबा है मेरा बचपन
      और मैं " मैं " नहीं
      सिर्फ़ एक किताब हूँ
      जो
      हर वर्ष
      कैलेण्डर बदलने के साथ
      खुद भी
      अंक दहलीज़ पार करती
      बदलती जाएगी
      और फिर
      एक दिन अचानक
      जब आँगन में खिलेगी धूप
      तब चौंक कर
      खोजेगी अपना बचपन
      पीली...बदरंग...अधफटी
      किताबों के बीच...।

                   

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6 comments

  1. बच्पन -सी प्यारी कविता 'मेरा बचपन' पढ़ी । कुछ पल के लिए मधुर स्मृतियाँ उन दिनों में खींच ले गई , जो राजाओं को भी नसीब नहीं होते थे । बहुत अच्छी कविता है ।

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  2. ये कविता बचपन की है? वाह :)
    इतनी सुन्दर :)

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  3. 'मेरा बचपन' बचपन की कविता पढ़ी ।
    सुन्दर कविता .....
    बचपन याद आ गया ....वो प्यारा बचपन आप की कविता जैसा !

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  4. आप सब की बहुत आभारी हूँ...।

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  5. bahut achchhi kavita hai....

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