दो अक्टूबर के दिन...
Saturday, October 02, 2010" तुम जो बदलाव दुनिया में चाहते हो , वही बदलाव तुम अपने आप में भी लाओ...दुनिया ख़ुद-ब-ख़ुद बदल जाएगी...।"
अक्षरशः तो याद नहीं , पर भाव यही थे महात्मा गाँधी द्वारा कही गई बात के...। अगर देखा जाए तो कितना आसान रास्ता बता गए बापू हमें । पर क्या ऐसा होता है ? नहीं...। आज हम अक्सर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का रोना रोते हैं , पर अपने बच्चे की नौकरी के लिए सोचते वक़्त क्या हम में से हर किसी के मन में यह विचार नहीं आता कि काश ! हमारे बच्चे को कोई ऐसी नौकरी मिल जाए जिसमें ऊपरी कमाई खूब हो , ताकि उसे किसी चीज़ की कमी न रहे...। हम गन्दगी से घिनाते हैं पर कितने लोग हैं जो किसी सार्वजनिक स्थल पर अपने खाए-पिए का कूड़ा डालने की बजाए उसे कायदे से कूड़ेदान में डालते हैं या जिन स्थानों पर हमें कूड़ादान नहीं मिलता , तो वो कूड़ा हम अपने घर पर लाकर या रास्ते में किसी कूड़ेदान में फेंकने के विचार से अपने साथ रखते हैं...? होता तो यह है कि इधर-उधर देखा...नज़र बचा कर धीरे से कूड़ा वहीं फेंक कर आगे बढ़ गए...।
हाँलाकि ऐसा भी नहीं है कि कुछ लोग इस दिशा में पहल न करते हों...। ग़ाहे-बग़ाहे हम कुछ ऐसी भी ख़बरों से दो-चार होते हैं जिनमें किसी व्यक्ति ने अपने स्तर पर ही समाज को बदलने की ओर क़दम बढ़ाया और उसमें सफ़ल भी हुए । पढ़ कर सच में बहुत अच्छा लगता है...। शुरुआत में ऐसे लोगों को कुछ मुसीबतों का भी सामना करना पड़ता है , लोगों की हँसी का पात्र भी बनते हैं पर एक दिन तो ऐसा आता है जब समाज से ही कुछ लोग उनके समर्थन में आगे आते हैं...और बदलाव की बयार बह निकलती है...।
इस सन्दर्भ में मुझे ‘ मुन्नाभाई...’ फ़िल्म याद आती है जिसने देश की युवा पीढ़ी को गाँधीगिरी भी सिखा दी...। गाँधीवाद को ‘ आऊटडेटेड ’ कह कर उसका मज़ाक बनाने वालों ने भी अहिंसा की ताकत पहचानी । मुझे याद है , कई सरकारी दफ़्तरों में काम न करने वालों को कई दिनों तक फूल या ‘ गेट वेल सून ’ के कार्ड भेजे गए थे...। हार कर उनको सही काम करना ही पड़ा था...। ऐसी ही कोई घटना हमें अभी भी सुनाई पड़ ही जाती है । तो क्या आप को नहीं लगता कि गाँधी जी अब भी सामयिक हैं...?
आज दो अक्टूबर का दिन गाँधी जी के साथ-साथ हमारे शास्त्री जी को याद करने का भी तो है । छोटे कद के शास्त्री जी ने भी किसी देश के दोनो आधारभूत स्तम्भों को पहचान कर ही ‘ जय जवान , जय किसान ’ का नारा दिया था । कितने क्षोभ की बात है कि आज उसी देश का किसान आत्महत्या करता है और एक सैनिक के शहीद होने के बाद उसके परिवारवालों को कई बार दाने-दाने के लिए मोहताज़ होना पड़ता है...। कैसी विडम्बना है...।
आज के दिन देश के दोनो महान आत्माओं के लिए तो हमारी सच्ची श्रद्धांजलि तो यही होगी कि हम अपने जीवन में गाँधीगिरी के साथ-साथ लालगिरी को भी अपना लें और शायद इसी तरह एक बार फिर सच हो ही जाए..." जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा , वो भारत देश है मेरा...।"
जय हिन्द...जय भारती...।
2 comments
गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
ReplyDeleteबापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
ReplyDeleteबापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
उचट गया मन इस समाज से, देखो कितनी दूषित है.
रीति-नीति सब कुचल गयी, नभ-जल-थल सभी प्रदूषित है.
घूमा बहुत इधर उधर, मन बार - बार तुमपर टिकता है.
अब फिर आ जाओ गांधी बाबा, मुझे तेरी बहुत जरुरत है.