कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...

Sunday, October 03, 2010


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...

अभी दो-तीन दिन पहले जब मैं अपनी मेल चेक कर रही थी तो एक मेल ने मुझे पुराने दिनों में पहुँचा दिया । मेल भेजी थी मेरी बचपन की सहेली वर्षा ने...। वर्षा यानि कि वर्षा सरकार...। हम लोअर के.जी से लेकर दसवीं तक साथ पढ़े थे और फिर दुनिया के मेले में कहीं बिछड़ गए...। पर भला हो इंटरनेट और उस पर मौजूद तमाम सोशल साइट्स का जिनकी बदौलत एक दिन अचानक हम मिल गए...। मिले तो मेरे कई बिछड़े दोस्त...और अब हम मजे से एक-दूसरे के संपर्क में बने हैं ।
हाँ , तो मैं बात कर रही थी वर्षा की भेजी एक मेल की...। उसमें जिक्र था अस्सी और नब्बे के दशक का...। उसमें समाई थी उस समय की वे स्थितियाँ जिन्हें आजकल के बच्चे कमियाँ मानते हैं...। आज के बच्चों को लगता है कि उस समय के लोग जीते कैसे थे...खास कर के उस समय के बच्चे...? बोर नहीं हो जाते थे...?
 न उस समय हमारे पास कम्प्यूटर थे , न मोबाइल...फिर भी हम अपने अपनों के सम्पर्क में थे...। हमें उनकी याद बनी रहती थी । हमारे पास एक दूरदर्शन था , पर जो चाव उसके कार्यक्रम देखने का था , वह अब कहाँ है ? हमें तो कई बार चैनलों की भीड़ में याद भी नहीं रहता कि किस दिन कौन सा प्रोग्राम आना है । हमें तब सण्डे को देखी फ़िल्म पूरे महीने याद रहती थी , अब तो सुबह कौन सी मूवी देखी , भूल जाते हैं...। रामायण देखते समय मन में उठने वाली भक्ति भावना...स्टार ट्रेक में कैप्टन कर्क और मि. स्पॉक के साथ अनजाने अंतरिक्ष के रहस्य तलाशना...स्पाइडर मैन और ही-मैन का रोमांच...करमचन्द और किटी की जासूसी...मालगुडी देज़...मुँगेरीलाल के हसीन सपने...ये जो है ज़िन्दगी...कहाँ तक गिनाऊँ...? आज इतने साल बीत जाने के बाद भी हमें अपने फ़ेवरेट सीरियल और उनके कलाकार याद हैं , पर क्या आप बता सकते हैं कि छः महीने पहले आप के द्वारा सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले चैनल पर कौन सा सीरियल ख़त्म हुआ है...( अगर कोई सीरियल ख़त्म हुआ हो तो...! वरना आजकल के सीरियल तो एक पीढ़ी के ख़त्म होने का इंतज़ार करते हैं...। )
गानों के लिए अपना ट्रान्जिस्टर एक बहुत बड़ी सौगात होती थी...। हिट गानों के लिए सिबाका गीत माला तो थी ही...। भूले-बिसरे गीत...आपकी फ़रमाइश...छायागीत...इन पर सुने गाने फ़िल्मों और हीरो-हीरोइन के नामों के साथ हमें बरसों-बरस याद रहे...और हैं भी...।
हम महँगे वीडियो गेम्स नहीं खेलते थे , पर पकड़म-पकडाई , गेंद-ताड़ी , खो-खो और आम छू बादाम छू जैसे खेलों में हमारी जान बसती थी...। गर्मी की छुट्टियाँ सच की छुट्टियाँ थी...। मोहल्ले के बच्चों का अलग-अलग कॉमिक्स किराए पर लाना और उस एक दिन के अंदर ही आपस में अदला-बदली करके बारी-बारी से सारी कॉमिक्स पढ़ डालना...खेलते-खेलते लड़ना और फिर थोड़ी ही देर में सब भूल कर फिर खेलना...। धमा-चौकड़ी से त्रस्त हो कभी मेरी मम्मी तो कभी किसी और आँटी का चिल्लाना और हमारा हँसते हुए उनकी चिरौरी करना...थक जाने पर नींबू का शर्बत पीना...वगैरह-वगैरह...। कोल्ड-ड्रिंक तो ट्रीट होती थी...। आज तो किसी मेहमान को आप नींबू का शरबत पेश कीजिए तो वो आपको ऐसी हिक़ारत से देखेगा कि आप उसे दुबारा कुछ भी पेश करने से पहले अपने और उसके स्टेटस के बारे में सौ बार सोचेंगे...।
आज के समय में हमारे और हमारे बच्चों के पास वो सुविधाएँ हैं , जिन्हें हम अपने बचपन में टी.वी पर दिखाए जाने वाली कुछ अंग्रेजी फ़िल्मों में देखा करते थे और आहें भरा करते थे । आगे आने वाले समय में पता नहीं और कितनी कल्पनाएँ साकार होंगी...। पर इतनी सुविधाओं , सम्पर्क के इतने सारे साधनों के होने के बावजूद क्या हम सच में किसी के इतने क़रीब हैं कि ज़रूरत पड़ने पर हम रोने के लिए उसके कंधे का सहारा ले सकें...? हमें सुख देने के लिए इतने सामान हैं , पर क्या हम सच्चे अर्थों में सुखी हैं...? सच बताइएगा , क्या ए.सी की हवा में वह ठण्डक है जो पेड़ों की ठण्डी हवा जैसी शीतलता पहुँचा सके...? आज सुख की तलाश में हम सच्चे सुख से वंचित हो रहे हैं...पर परवाह किसे है...? तन का आराम है , पर मन का सकून कहीं खो गया है...। हम सोशल साइट्स पर सैकड़ॊं तथाकथित दोस्तों के क़रीब हैं , पर अपने अपनों के लिए हमारे पास फ़ुर्सत नहीं...। हम कहाँ जा रहे , हमें खुद पता नहीं...।
कभी दो पल मिले तो सोचिएगा...शायद मेरी तरह आप भी गुनगुनाएँ..." कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...।"

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9 comments

  1. प्रियंका जी,
    नमस्ते!
    यहाँ पहली बार आया हूँ. अच्छा लगा....
    मैं ना आज का हूँ और ना ही पूरी तरह कल का....
    मसलन कुछ यादें हैं जो मैं आपसे शेयर करता हूँ, कुछ नहीं!
    हां ये ज़रूर कह सकता हूँ मैं भी: बचपन के दिन भी क्या दिन थे........
    आशीष
    --
    प्रायश्चित

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  2. प्रियंका जी,
    यह ठीक है कि बीता हुआ कल तो लौटाया नहीं जा सकता ....मगर हमें हर छोटी बात में खुशी ढूँढनी होगी...खुशी को तो ही पाया जा सकता है 'गर हम बीते कल की यादों को यादें न बना ..उनको अपने जीवन में शामिल करने की कोशिश करें...मसलन बच्चों के साथ पुरानी खेलकर उनको पुरानी होने ही न दें ...नूडलज़...पिज़ा के ज़माने में उन्हें मठ्ठी- गुलगले - सेवियाँ बनाकर दें..आपको अपना ज़माना दूर नहीं लगेगा ।
    अपना-अपना विचार है.....

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  3. बहुत-बहुत शुक्रिया , आशीष और डा. संधू जी...
    हरदीप जी , मैं आपसे सहमत हूँ , पर कभी-कभी बच्चे भी अपने कई साथियों की देखा-देखी पुरानी बातों को आउट्डेटेड कह कर उनसे दूर भागते हैं , खासतौर से यदि वे थोड़ा भी बड़े हो चुके हों तो...। वे उसका अनुभव करने से पहले ही उसे नकार देते हैं...। ऐसा मैने कई बार देखा है , पर कई अपवाद भी होते हैं...।

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  4. Priyanka Aunty,
    I can read Hindi a little bit....yes I can read Hindi very slowly , can write as well but still learning....but can read and read Punjabi very well...as mum teaches me at home ( We do not have any language at school) .
    Mum has read your post to me....
    I understand that everything is changing....you have not read mum's haiku...
    Nani poode bnaye
    pancake btakar
    maa bachon ko khilaye
    Mum is writing in hindi for you ....
    नानी पूड़े पकाए
    पैनकेक बताकर
    माँ बच्चों को खिलाए......
    Agar maa hee nahee btayegee ke Poode kia hote hai to bache kaise seekh sakte hain.
    Supreet

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  5. I agree with you dear supreet , its the duty of mother to tell her children what is the truth...as mother is the first teacher...being a mother myself , i fully believe in it...
    your mum is so good in writing haiku that I can't stop praising her...

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  6. nice write... !
    bracing one ...!!

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  7. bachpan laut kar aayega jab hum pachpan ke ho jaayenge

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  8. मेरी रचना भी पढ़े :
    http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_1913.html

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  9. क्या इत्तेफाक है, मैंने एक पोस्ट लिखी थी कुछ दीं पहले...और फिर दो तीन जगह और पढ़ लिया वैसा ही मिलता जुलता पोस्ट...

    मतलब ये की सभी इस बात को मानते हैं की पुराने दीं वाकई अच्छे थे...और सभी बड़ी सिद्दत से पुराने दीं याद करते हैं. इसलिए तो लोग अक्सर अपने ब्लॉग में उन दिनों का जिक्र कर देते हैं.....

    बहुत अच्छा लगा पढ़ना...

    मेरा पोस्ट जिसमे मैंने जिक्र किया था पुरने दिनों का - "एक वो भी था ज़माना, एक ये भी है ज़माना."

    कभी फुर्सत रहे तो पढियेगा... :)

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