ये इश्क़ नहीं है आसां
Saturday, July 14, 2018आधी रात बीत चुकी और हम हैं कि उल्लू की तरह जाग रहे। आज की डेट में पक्का हमको एक बार फिर प्यार हो गया...। अब ‘एक बार फिर’ का जुमला सुन कर ऐसे कच्चे करेले की तरह मुँह बनाने की कोई ज़रूरत नहीं, किसी भी इंसान को जितनी बार सूट करे, उतनी बार प्यार हो सकता है...। किसी शास्त्र या पोथी में हमने तो नहीं पढ़ा कि प्यार सिर्फ़ एक बार करना चाहिए। पर लोगों का इस मामले में विचार सुन कर फ़ालतू में हमको गिल्ट हो जाता है...।
ख़ैर, ये सब गिल्ट-फिल्ट के चक्कर में हमको नहीं पड़ना, बस इस बार हमारा चक्का पिछली बारियों की तरह ग़लत ट्रैफ़िक में न जाम हो जाए, इतनी दुआ करिए...। इतने दिनों से हम अपनी नाकाम मोहब्बतों वाली डायरियों को सम्हालते-सम्हालते दुःखी हो चुके हैं...। जितनी शायरियाँ हमने इन सब बर्बाद मोहब्बतों के कारण याद कर डाली, अगर उतनी अच्छी याददाश्त हमारे एक्ज़ाम टाइम भी रहती तो आज ग्यारहवीं में तीसरे साल भी न लटक रहे होते...। पर हम भी क्या करें...? काश! ये कम्बख़्त पढ़ाई की किताबें भी शाहरुख-काजोल की रोमाण्टिक फ़िल्मों की तरह इंटरेस्टिंग होती, तो आपकी क़सम, दिखा देता कोई पूरे कानपुर में हमसे ज़्यादा नम्बर लाकर...।
वैसे भी आपको एक बात हम बता दें, देखने में हम भी शाहरुख और सलमान के मिक्सचर हैं...। थोड़ा सिक्स पैक बना लें तो रितिक भी हमसे शर्माएगा...। ऐसे ही थोड़े न पूर्णा देवी की सारी लड़कियाँ हमको देख कर मुस्कराती हुई निकल जाती थी...। एक ने तो हमको देख कर अपनी सहेली को इशारा भी किया था...। हमको तो उससे भी पहली नज़र वाला प्यार हो गया था, पर बुरा हो उस कांस्टेबिल का...। पीछे से आकर दो डण्डा जमाया...मुर्गा बनाया सो अलग से...। वो दिन और आज का दिन, हम कभी मुड़ के नहीं गए पूर्णा देवी...। कुछ दिन कलपे-रोये भले, पर इज्ज़त तो सबकी होती है न, सो हमारी भी है...।
अब ये इज्ज़त की खातिर तो सब काम होता है...। इसलिए हमने ये बात किसी को नहीं बताई, बस औंधे मुँह दो दिन धूप में पड़े रहे...। अम्मा ने पूछा तो हमने बोल दिया, पेट में दर्द है...। अम्मा ने हमको बस अजवाइन और हींग फँकवा कर हमारे दिल में और आग लगा दी...। जो दो-तीन लंगोटिया यार हैं, वो भी बिलौटे की तरह सच सूंघने की कोशिश में थे...। हमारे दोस्त सब एक नम्बर के जलनखोर हैं...। ऊपर से गुलकन्द की तरह मीठे, अन्दर से गुटखे की तरह ज़हरीले...। हमें तो कभी-कभी शक़ भी होता है...। ऐसा तो नहीं, सब हमारी पर्सनैल्टी से पर्सनली जलते हों और चन्दा करके मास्साब को ‘अण्डर द टेबिल’ हमें लगातार फ़ेल करने की सुपारी दिए हों...?
पढ़ाई और प्रेम, दोनों में लगातार फ़ेल होने का हमारा रिकॉर्ड तो बहुत पुराना है...। जब नई नई आशिक़ी में नवीं में फ़ेल हुए थे, तब तो पप्पा से बस चार-पाँच लात-घूँसे खाकर हम घर से निकाल दिए गए थे, पर अबकी उनकी धमकी ज़रा ख़तरनाक किस्म की है...। बड़ी मेहनत से तो नारियल और बादाम का तेल लगा कर आज के फ़ैशनेबल हिसाब से बाल लम्बे किए हैं, पर पप्पा की निगाह उसी पर है...। सो अगर इस बार हम एक्ज़ाम में रपटे, माने फ़ेल हुए, तो हमारी संजू बाबा वाली ज़ुल्फ़ों को नाना पाटेकर की हेयर स्टाइल में बदल कर अपनी दुकान पर गल्ला सम्हलवा कर ही मानेंगे।
इस धमकी की तो ख़ैर अभी उतनी फ़िकर नहीं, पर वो नवीं क्लास वाली आशिक़ी भी क्या गज़ब की थी...। हम तो नवीं में लुढ़क गए, पर हमारी मोहब्बत पास होकर दसवीं में शिफ़्ट हो गई। उस दिन हमको फ़ेल होने पर बड़ी शर्म आई थी, पर वो प्यार ही क्या जो बेशर्म न हो...? उस भूरी आँखों वाली के प्यार में तो हम ‘एट वन्स’ पड़ गए थे। हमारे दिल की सुई अक्सर भूरे रंग पर ऐसे ही अटक जाती है। उसके भूरे बाल...भूरी आँखें...कसम से, हम सिर से पाँव तक भुरा गए थे...। ‘भुराना’ बौराने का बिगड़ा नाम था, जो हमारे दोस्तों ने हमको दिया था। बस, इस प्रेम कहानी में एक ही गड़बड़ हो गई...। खुद को राज और उसको सिमरन समझ कर बिना दायें-बायें देखे हम जो आगे बढ़े तो एक्सीडेण्ट हो गया...। इधर हमने उसको ‘आई लव यू’ बोला नहीं कि उधर से दे दनादन, ले तड़ातड़...। पता नहीं कितनी देर बाद हैलट के जनरल वार्ड में दो सूजे गाल, एक काली आँख, थोड़ी हिली-लचकी कमर और पूरे फटे कपड़ों में आधे शेम-शेम हम जब होश में आए तो कम्बख़्त दुश्मन जैसे दोस्तों से पता चला कि प्यार के इजहार की जल्दबाज़ी में हमने अपनी भूर-परी के दोनो मुस्टण्डे भाइयों को तो देखा ही नहीं, जो उसको कम्पनी देने कम्पनी बाग चौराहे तक आए थे...।
हैलट में जितनी बेइज्ज़ती से वो नर्स ट्रीट कर रही थी, उससे ज़्यादा इज्ज़त तो हमको घर में भी न मिली...। अब डिटेल्स में क्या जाना, बस इतना समझ लीजिए कि इतने बेआबरू होकर सब तरफ़ से निकले, कि कुछ दिन तक हमको सारी दुनिया बेवफ़ा और किताबें असली प्यार लगने लगी...। हर बुराई के पीछे छिपी अच्छाई की तरह इस दुर्घटना के कारण हम भी लुट-पिट कर दसवीं में आए और वहाँ अपने एक और नए प्यार के कारण बड़ी लगन से उसको पास भी कर गए...।
दसवीं पास होने पर अम्मा ने बलाएँ ली तो पप्पा ने नई सायकिल दिला दी...। माँगी तो मोटर साइकिल थी, पर पप्पा ने हमको जिस तरह घूरा, हमको ‘उड़ान’ का रोनित रॉय याद आ गया। इससे पहले कि हम कूट दिए जाते, बड़ी अदा से अपनी पोनी टेल लहराते हम भग लिए...। हमने शायद बताया नहीं, जितना शौक़ हमको शायरी का है, उतना ही प्रेम हमको फ़िल्मों से भी है...। इन फ़िल्मों से हमको प्यार करने के इतने आइडिया मिलते हैं कि हम चाहे तो उनसे पीएचडी कर डालें...।
खूब फ़िल्में देखते हैं हम...छिप के भी देखते हैं और भाग-भाग के भी...। चाहे घर से भागें या स्कूल से, पर रोमाण्टिक फ़िल्मों का ‘फ़र्स्ट डे, फ़र्स्ट शो’ हमको देखना है, तो बस देखना है...। अब चाहे इस भागमभाग में पप्पा हमको भगा-भगा के कित्ता भी मारें, हम डरने वालों में से नहीं हैं...। गब्बर सिंह क्या बोला था...? जो डर गया, समझो मर गया...। तो इतना मारे-कूटे जाने के बावजूद न तो हम प्यार करने से डरते हैं, न फ़िलम देखने से...।
रोमाण्टिक फ़िल्में देखने के बावजूद असल प्यार तो हमको हमेशा अपने टाइप की लड़कियों के साथ हुआ है...। जागती आँखों से सपने देख मुस्कराने वाली...नज़रें मिले तो आँख झुका लेने वाली...। पर अपने इस लेटेस्ट प्यार में हमको कुछ डिफ़रेण्ट फ़ीलिंग आ रही। सामने वाले मकान में नए किरायेदार के आने के साथ हमारे दिल में अपने आप ही कुछ कुछ होने लगा...। हमारी ताज़ा चाहत जब भी छत पर दिखी, किताबों में जाने क्या पढ़ती रही। उसको देखा-देखी के फेर में हम अपनी किताबें भी पहचानने लगे। लेकिन सिर्फ़ पहचान रहे, उनमें लिखा क्या है, ये हम बिल्कुल नहीं जानते। हमको तो किताबों की आड़ से उसे ताकना बड़ा अच्छा लगता है...। अब की हम किसी रंग-वंग के चक्कर में नहीं पड़े, बस उसके गालों पर जो डिम्पल पड़ता है, उसमें किसी अच्छे से मुहूर्त में अपने दिल का नट-बोल्ट कसने की तमन्ना हैं...।
उसकी उमर को लेकर थोड़ा कन्फ़्यूज़न था, पर भला हो हमारी अम्मा का...। बात-बात में सामने वाले का भेद उगलवा कर जिस तरह दूसरे के सामने उगल भी आती हैं, कमाल का आर्ट है...। तो बस हमारी कलाकार अम्मा ने एक दिन हमको लताड़ने के इरादे से बता दिया कि हमारी ये नई वाली सिमरन हमसे कुछेक साल छोटी है...।
उमर का डाउट जैसे ही क्लियर हुआ, हम पूरी तरह से ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएँगे’ वाले फ़ॉर्म में चले गए...। अक्सर बड़ा अफ़सोस होता था सोच कर कि उधर तो अनुपम खेर बेटे की मोहब्बत में उसके साथ थे, कितने प्यार से बोलते थे...मेरी बहू लेकर आना...पर इधर हमारे पप्पा तो अमरीश पुरी से भी चार-पाँच फुट आगे थे...। गुस्से में कूटने से पहले घूरते तो ऐसे हैं, जैसे हम उनकी औलाद नहीं, कोई रोस्टेड चिकन हैं...।
ऐसे में अपनी लव-स्टोरी आगे बढ़ाने का पूरा जिम्मा बस हमारे ऊपर ही था। छत पर झूठमूठ ही सही, पर ऐसे किताबें घूरना सच्ची बड़ा बोरिंग होता है...। हमारा दिमाग़ बस किसी तरह उसे इम्प्रेस करने की जुगत में भिड़ा पड़ा था। कित्ते फ़िल्मी आइडिया सिर्फ़ इस कारण कैन्सिल कर दिए कि कहीं ऐसी पढ़ाकू टाइप लड़की हमको घोर लफंगा-लोफ़र ही न समझ ले...। एक ग़लत कदम और हमारी नई प्रेम कहानी पहले ही शॉट में फ़्लॉप...। हमारी जगह कोई और होता तो इतने स्ट्रगल से घबरा कर कब का साधू बन कर गंगा किनारे बैठ जाता, पर ये तो हमारा ही जिगरा है जो हर बार मैदान में डट जाते हैं...।
सो इस बार भी हम डटे रहे, बस हाल ये था कि न दिन की दाल-रोटी अच्छी लगती, न रात को मुन्ना हलवाई की दुकान पर मिलने वाला मलाई-दूध...। यार-दोस्त ऐसे कि उनसे हेल्प लेना सबसे बड़ा पाप है। लेकिन हमको अपने साथ-साथ शाहरुख और सलमान की बातों पर भी बहुत भरोसा है, तो बस हमने शिद्दत से अपनी सिमरन से मिलना चाहा और सारी क़ायनात लग गई हमको उससे मिलाने में...।
ये बड़ा काम भी हमारी अम्मा के कारण हुआ...। वो पड़ोस में अपनी कलाकारी दिखाने गई और इधर हमारे दरवाज़े पर खटखट हुई। हम गर्मी लगने के बावजूद छत से उतरने को बिल्कुल तैयार नहीं थे, पर पप्पा तभी आए थे दुकान से...और हम इस समय गरियाये जाना बिल्कुल एफ़ोर्ड नहीं कर सकते थे...सो खुद ही आने वाले को गरियाते हुए दरवाज़ा खोल दिया।
सामने वो खड़ी थी, हमारे इत्ते क़रीब...। हम तो भोंदू की तरह आँख झपकाना भूल कर बस उसको ही ताके जा रहे थे। जाने दो मिनट बीता या दो युग, पर उसने ही हवा में हाथ लहराया,"अरे ओऽऽऽ...एक कटोरी चीनी मिलेगी क्या...? घर में गेस्ट आए हैं और चीनी खतम...। हमारी मम्मी बोली सामने से ले आओ, कल बाज़ार से मँगा कर वापस कर देंगे...।"
वो हमारे इतने क़रीब आकर बस एक कटोरी चीनी की उधारी माँग रही थी। हमारा दिल किया, पप्पा की दुकान से पूरी बोरी लाकर उसके कदमों पर डाल दें...। गन्ना खुद हमारे सामने था, ऐसे में चीनी की उधारी सोचते तो पाप लगता। उसको एक नज़र जीभर कर देखने की नीयत से हम टेढ़े-तिरछे ही रसोई में घुसे और सामने रखे कनस्तर से जा टकराये...। बर्तन धोने के लिए भरी बाल्टी में मुँह के बल गिरने में हमको चोट से ज़्यादा लज्जा लगी...। कसम से, उसी बाल्टी से चुल्लू भर पानी लेकर उसमें डूब जाने की इच्छा तो हुई, पर उसका घबरा कर वहाँ आना और हमको अपने हाथों से उठाना...हाय! दिल भर आया बाइ गॉड...।
हम समझ गए, हर मंगलवार को पनकी जाकर हनुमान जी को इक्कीस रुपये का प्रसाद चढ़ाने का फल आज मिला है...। गिरे तो हम पहले भी बहुत बार हैं, पर वो चोट इतनी हसीन कभी न लगी...। ऐसे मौके पर हम उसको शायरी भी सुनाना चाहते थे, पर वो ज़्यादा इन्टरेस्टेड नहीं लगी, तो हमने भी ये आइडिया आगे के लिए पोस्टपोन कर दिया...।
चीनी के साथ हमारा दिल लेकर वो चली गई, पर जाते हुए अपना स्कूल, क्लास सब बता गई...। वाट्सप्प का नम्बर लेना हम कतई नहीं भूले...। अभी तक किसी लड़की से वाट्सप्प के लेवल पर हमको लाइन नहीं मिली थी। उसके जाते ही फ़टाफ़ट उसकी तारीफ़ में यहाँ वहाँ से चुराये कुछ शेर भेज के हम इस बार अपनी खुशी से बिस्तर पर औंधे पड़ गए। शायरी के जवाब में रात में उसके जीभ चिढ़ाते स्माइली आए और साथ ही कल कोचिंग के बाहर मिलने का बुलावा भी...। हमने तो खुशी के मारे अपना मोबाइल ही कई बार चूम लिया।
किसी तरह वो रात भी उल्लू बन कर काटी। सुबह हमारा मुँह देख कर अम्मा भी बड़ी एक्साइटेड हो गई। पहली बार हम ऐसे दाँत निपोरे स्कूल जा रहे थे न...। स्कूल के बाद छुट्टी का घण्टा बाद में बजा, उसकी कोचिंग के सामने हम पहले ही तैनात हो गए...। सामने से जब वो आती दिखी, हमको लगा हम ‘मोहब्बतें’ के गुरुकुल के बाहर खड़े वायलिन बजा रहे, और वो अभी आकर हमारे चारो ओर घूमती एक गाना गाएगी...।
जब तक वो हमारे पास आई, हमारे दिमाग़ में जाने कहाँ से उसकी मोहब्बत पाने का एक धाँसू आइडिया आ गया था...। बस उसे एप्लाई करने भर की देर थी...।
पता नहीं ये आइडिया हम अब तक क्यों नहीं सोच पाए...? अगर हम इसी कोचिंग में एडमिशन ले लें तो...? कोचिंग में हम उसके बगल में बैठेंगे, इतने पास होंगे तो हमारा प्यार मजबूत होगा और एक दिन जैसे ही सही मौका मिलेगा, हम फट्ट से उससे इज़हारे-मोहब्बत कर देंगे...। हमने खुद की पीठ थपथपा ली। हमारी सिमरन का असली नाम तो वैसे नेहा था, पर अपनी कल्पनाओं में हम उसको सिमरन ही बुलाते रहना चाहते थे...।
पास आकर उसने बड़ी अदा से मुस्करा कर नज़रें झुकाते हुए जब कहा,"हमें पता था आप ज़रुर आएँगे...", एकदम लल्लन-टॉप वाली फ़ीलिंग आई...। बाई गॉड! कल तक ‘अरे ओऽऽऽ’ कहने वाली आज हमें ‘आप’ बुला रही...और उसके चेहरे की वो चमक...यानि मामला उधर भी फ़िट-टाइप ही लगा। आगे उसी ने बताया, अम्मा हमारी मोटी बुद्धि का रोना उसके सामने रो आई थी और अब वो खुद हमको अपनी कोचिंग में एडमिशन दिला रही थी...। कायदे से हमको सिमरन के सामने राज की इमेज खराब करने के लिए अम्मा पर गुस्सा आना चाहिए था, पर यहाँ तो हमारा ही दाँव लग रहा था...।
अभी हम मन में उसको सुनाई जाने वाली शायरियों के नोट्स बना ही रहे थे कि अचानक जैसे किसी ने हमको धोबी-पछाड़ दे दिया हो...। इधर उधर देख कर वो बोली,"आपको हम इतने दिन से देख के समझ गए कि आप दूसरे लड़कों से अलग हैं, इसलिए हमने चाची को खुद सजेस्ट किया कि भैया को हमारे साथ एडमिशन दिला दीजिए...। उनको बस ये डर था कि कहीं कोचिंग आने के नाम से आप भाग न जाएँ, इसलिए आपको बिना कुछ बताए हमने इधर बुला लिया...। सॉरी भैय्याऽऽऽ...आपको बुरा तो नहीं लगा न...?"
कोचिंग हम पहले भी कई बार कर चुके हैं, और प्यार भी...पर ऐसा दर्दनाक हादसा हमारे साथ कभी न हुआ...। आप ही बताइए, काजोल शाहरुख को राखी बाँधती अच्छी दिखती क्या...? अब हमारी सिमरन नहीं, बल्कि हमारी कल्पना में राखी थामे नेहा पढ़ाई को लेकर जाने क्या-क्या बोले जा रही थी, पर इस एक ‘भैय्याऽऽऽ...’ के आगे हमसे कुछ सुना न गया...।
लेकिन हम भी बहुत पॉज़िटिव थिंकिंग वाले है...। अपनी गली में ‘बहन’ मिली, तो शायद उसकी कोचिंग में कोई ‘सिमरन’ मिल जाए...। एडमिशन के बाद कोचिंग से मिली किताबों का बोझ अपने कंधे पर लादे वापस लौटते समय हमको ज़ोरदार यक़ीन हो चुका था कि इस बार फिर डायरी भरेगी...। पर हो सकता है अपनी सिमरन के प्यार में वो ग्यारहवीं के नोट्स से भरी डायरी हो...यानि शायरी कुछ महीनों के लिए पोस्टपोन...।
कुल मिला कर हम अब मान गए...हमारे लिए ये इश्क़ तो सच में आसान नहीं...। एक पढ़ाई का दरिया है और कोचिंग से जाना है...।
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