ख़्वाब

Monday, February 01, 2016


ख़्वाब तहा के रख देती हूँ
रात के पास 
कतरनों में बँटा दिन 
तुरपाई करते बीतता है 
लम्हों की; 
सर्द रातों में 
सारे ख़्वाब ओढ़ के 
अधखुली आँखों संग सोती हूँ 
टीस उठती है 
शायद कोई टूटा ख़्वाब 
फिर ऊँगली में चुभ गया हो...।

-प्रियंका गुप्ता

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