झुमकी

Tuesday, March 11, 2014

करीबन तीन  साल पहले यूँ ही बैठे-बिठाए मोनोलोग शैली में पहली बार एक कहानी लिखी और `गर्भनाल' में छपने भेज दी...| कहानी छपने पर उम्मीद से ज़्यादा अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली...| आज ब्लॉग पर भी इसे शेयर कर रही...| आशा है यहाँ भी आपको पसंद आएंगी...|
प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा...|

कहानी
                         झुमकी
                                                                                                                                             प्रियंका गुप्ता

             अरे, मिसेज शर्मा...आइए...आइए... मुझे मालूम था, सबसे पहले आप ही आएँगी...इतनी पंक्चुअल जो हैं... मैं कब आई...? अरे, बस दस ही मिनट हुए होंगे मुश्किल से...क्या करूँ, मुझे तो टाइम का ध्यान रखना ही पड़ेगा...आज की मेजबान जो ठहरी... अब मैं कोई मिसेज सहगल की तरह तो हूँ नहीं, जो अपनी ही पार्टी में सबसे लास्ट में आऊँ... अरे भई, उनकी तरह मेरा भी पूरा दिन ब्यूटी-पार्लर में बीते, तो शायद मैं भी लेट हो ही जाऊँ... अब मेरा तो क्या है मिसेज शर्मा, मैं तो कभी-कभी ही पार्लर जाती हूँ... ये कहते हैं कि मुझमें नैचुरल ब्यूटी है...मुझे लीपने-पोतने की क्या ज़रूरत...? और फिर मेरे ये हैं , थोड़े हिसाबी-किताबी हैं...सी. जो ठहरे... अब क्या बताऊँ मिसेज शर्मा, मैं किसी से कहती नहीं, पर आप तो मेरी अपनी हैं , इसी लिए सिर्फ़ आप को बता रही हूँ... मेरे ये तो एक तरह से एक-एक पैसे को दाँत से पकड़ कर जीने वाले बन्दे हैं... ये जो किटी मैं खेल रही हूँ, बस यही मेरे अपने पैसे हो पाते हैं... मैने तो भई साफ़ इनसे कह दिया, मेरे किटी के पैसों का मैं तुम्हें कोई हिसाब नहीं देने वाली... ये मुझे चाहते भी खूब हैं ...झट से मान गए...
            मिसेज शर्मा, आप क्या लेंगी...? अपना तो पूरा ग्रुप ही वक़्त की क़दर करने वालों का है... तब तक आप के लिए कोल्ड-ड्रिंक मंगवाऊँ...? ये वेटर भी , दस बार मुझसे पूछ चुका है, मैडम ऑर्डर कब प्लेस करेंगी...? इस मंदबुद्धि को मैं कह चुकी कि जब अपना पूरा ग्रुप जाएगा, तभी बताऊँगी... ये आपकी साड़ी बड़ी सुन्दर लग रही...नई ली है क्या...? मेरा साड़ी पहनने का बहुत मन करता है, पर क्या करूँ...? ये कमर जो कमरा बनती जा रही है...ऊपर से इधर पेट भी बहुत निकल आया है... साड़ी पहनती हूँ तो ये कहते हैं कि ऐसा लग रहा किसी ड्रम पर कपड़ा लपेट दिया गया हो... मैने भी गुस्से में पहनना ही छोड़ दिया... वैसे ये मज़ाकिया बहुत है...मैं भी बुरा नहीं मानती...
           ज़रा रुकिए...मैं बाकी सब को फोन लगा लूँ... बारिश तो इतनी तेज़ हो रही, पर सब के पास गाड़ी तो है ... ऐसे बहाने बना रही हैं अपनी लेट-लतीफ़ी का, मानो सब को रिक्शे और टैम्पो से आना हो... अपनी मिसेज सेक्सेरिया तो खुद ड्राइव करती हैं, कम-से-कम वो तो टाइम से सकती हैं... हम दोनो के समय की तो जैसे कोई वैल्यू ही नहीं... वैसे मिसेज सेक्सेरिया अपने सरनेम की तरह ही सेक्सी हैं ...? उनके हसबैण्ड को देखा है आपने...? ज़ालिम ऋतिक रोशन का जुड़वा भाई लगता है... पता नहीं दोनो ने पिछले जनम में क्या दान किया था जो ऐसी माशाअल्लाह जोड़ी बनाई है भगवान ने भी... और एक मेरे इनको देख लो... सिर पर चन्दूल बढ़ता जा रहा, तोंद तो बढ़ते-बढ़ते जाने कहाँ जाकर रुकेगी...हर तीन महीने पर तो पैंट छोटी हो जाती है... हमारे यहाँ के तो नौकर-चाकर बड़े खुश रहते हैं... इधर पैंट छोटी हुई, उधर उनको मिली... पर कमीने इतने अहसान-फ़रामोश होते हैं कि मज़ाल है कभी कोई एक्स्ट्रा काम कर दें... ज़रा सा काम करेंगे और पैसे के लिए तुरन्त मुँह बा देंगे...
            आपको हँसी रही है मिसेज शर्मा...? क्या करूँ, ये इलाहाबादी लहज़ा ज़बान से जाता ही नहीं... इसी कारण तो कई बार ये मुझे देहाती तक कह देते हैं... फिर मैं भी खूब सुनाती हूँ... अपना कौन यहीं की पैदाइश हैं...? इनके रिश्तेदार देख लीजिए... मैं तो शर्म के मारे किसी से यहाँ इंट्रोड्यूस ही नहीं कराती इनके गंवार नातेदारों को... अभी पिछले महीने इनका चचेरा भाई गया था... कहने लगा, भाभी, शहर घुमा दीजिए... अरे, मैं कोई टूरिस्ट गाइड हूँ क्या, जो शहर दिखाती फिरूँ... मैने तो इनकी नज़र बचा कर साफ़ मना कर दिया... तभी किसी काम से मेरी पड़ोसन गई थी...अरे वही...छम्मकछल्लो...आप जानती तो हैं... कितना ऐंठती है... उसे देख पूछ बैठी, कौन है...? मैने भी झट कह दिया, ड्राइवर का भाई है...नौकरी के सिलसिले में आया है... बेचारे का मुँह ज़रा सा रह गया था... मुझे थोड़ा तरस भी आया था, आप तो जानती हैं मैं कितनी दयालू हूँ... छम्मकछल्लो के जाने के बाद मैने उसे कुछ रुपये भी देने की कोशिश की कि खुद ही कहीं घूम आए, पर अकड़ देखो उसकी, रुपये मेरे सामने मेज पर रख दिए... कहने लगा, भाभी हम रुपये-पैसे के लिए नहीं आए...आपके और भैया के प्यार और आशीर्वाद के लिए आए हैं... हुँऽऽऽ...प्यार-आशीर्वाद, माई फ़ुट... सब चोंचले होते हैं इन लोगों के...
               वो उधर वाले टेबिल पर देखिए ज़रा...वो औरत कैसी महरी टाइप की लग रही... क्या ऐसे होटल में आने की उसकी औक़ात लग रही आपको? साथ में जो आदमी बैठा है, आपको क्या लगता है, उसका पति होगा या कोई और...? मुझे तो भाई ये कहीं से इसका हसबैण्ड नहीं लग रहा... दोनो कितना मगन होकर हँस रहे हैं बात-बात पर... अब ये तो आप भी जानो हो कि हसबैण्ड लोग जो होते हैं वो शादी की शुरुआत में भले खी-खी कर लें, पर बाद में... तौबा! मेरे ये तो बात-बात पर काट खाने दौड़ते हैं... मैं इनकी बुराई नहीं करती, पर भगवान इनके जैसे खड़ूस-बदतमीज़ आदमी किसी औरत के भाग्य में लिखे... मज़ाल है कभी दो पल बैठ कर मीठे बोल बोल दें... और एक इनके बाप थे... अपनी बीवी के पल्लू से लटक कर नहीं चलते थे बस्स...बाकी तो सच में- तू डोर, मैं पतंग वाली बात थी... दिन भर बस्स उन्हीं का मुँह ताकना... मुँह से बात निकली नहीं कि झट पूरी... यहाँ तो मेरी ज़बान घिस जाती है अपनी एक छोटी सी बात मनवाने में... मैं कई बार कहती भी हूँ, अपने बाप का यही एक गुण ले लिया होता... मेरे ससुर तो, आपको क्या बताऊँ मिसेज शर्मा, पूरे ज़ोरू के ग़ुलाम थे जैसे...पर मेरी सास यही कहती थी कि इसमें ग़ुलाम वाली कोई बात नहीं, ये तो पति-पत्नी का आपसी प्यार था... अरे आग लगे ऐसे प्यार को... क़ब्र में पाँव लटकाए थे दोनो बुढ्ढे-बुढ़िया...पर चोंचले नए-नवेलों वाले... मज़ाल है, एक-दूसरे के बिना कहीं चले जाएँ... मैं तो कई बार मुँह पीछे कहती भी थी कि अगर इनका बस चले तो लैट्रिन भी दोनो साथ ही जाएँ... एक के बग़ैर दूसरा खाता नहीं था... तभी तो बुढ़िया बुढ़ऊ के मरने के तीन ही महीने बाद ही निकल ली... मेरे ये तो, महीने के पच्चीस दिन बाहर ही पता नहीं किसके साथ पेट भर कर आते हैं... मैं भी इन्तज़ार नहीं करती...
                  क्या भई...? मिस्टर शर्मा का फोन था क्या...? आप भी बड़ी लकी हो यार...शर्मा जी भी बेचारे आपके बिना रह नहीं पाते... दिन में तीन-चार बार तो आपको याद कर ही लेते हैं... और एक हमें देख लीजिए... रोज की कौन कहे, हम अगर महीनों इनसे बात करें तो इन्हें कोई फ़र्क नहीं... अपनी-अपनी क़िस्मत है भई... कभी-कभी तो मुझे आपकी तकदीर पर रश्क़ होता है... बड़ी फ़ुर्सत में लिखी है ऊपर वाले ने...मेरे में ही पता नहीं कौन सी जल्दी थी उसे...
                उस महरी टाइप की औरत को देख कर मुझे बड़ी कोफ़्त हो रही... ज़रूर इस आदमी को फाँस रखा होगा अपने जाल में... ऐसी औरतें जो होती हैं , बड़ी चालाक और लटके-झटके वाली होती हैं... मर्दों को अपनी उँगलियों पर नचाना खूब अच्छे से जानती हैं... ये सब हम-आप जैसे लोग थोड़ी कर पाते हैं... मैं तो इया साफ़ कहती हूँ, ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए...कभी साबका पड़े भी तो कड़ी निगाह रखिए इन पर...
                 हम तो बहुत भुक्तभोगी हैं भई... आप कोल्ड-ड्रिंक पीजिए ...गर्म होकर हॉट ड्रिंक बन जाए... क्या हुआ, आप हँस काहे रही हैं...? अच्छा, ये...? क्या करें, कभी हम अपनी पुरानी आदत के हिसाब सेहम-हमकरके बोलने लगते हैं, कभी इनकी संगत के असर सेमैंकरके... हमारे ये जो हैं, पता नहीं क्योंहमकह कर बोलने से चिढ़ जाते हैं... कहते हैं कि ऐसा लग रहा दो लोग बात कर रहे... पर सच कहूँ, हमें येहममें बड़ी मिठास लगती है...
                  ......मीठा तो हमने बहुत कम कर दिया, अबकी बार ब्लड-टेस्ट में शुगर की शुरुआत दिख रही थी... डॉक्टर बहुत डाँट रहे थे...अरे वही अपने डॉक्टर रस्तोगी...मिसेज रस्तोगी के मियाँ... खुद की बीवी तो सम्हाली नहीं जाती, चले हैं दूसरों को हिदायत देने... पर फ़ायदा तो अपना ही है , सो भई, मन मार कर बात मान ही लेते हैं...
                हाँ, क्या मिसेज शर्मा...? अच्छाऽऽऽ, वो भुक्तभोगी वाली बात...? आप भी , बड़े मज़े आते हैं किस्से-कहानियों में... अरे कुछ ऐसा नहीं...मेरी वो पिछले साल वाली छम्मकछल्लो कामवाली याद है आपको...? अरे वही, पतली कमरिया, तिरछी नज़रिया वाली...? ये नाम भी तो उसे आप ही ने दिया था...अब याद आया...? कम्बख़्त, इतना मानती थी उसे...मेरे यहाँ ही डाका डालने चली थी... आप तो जानो हो मिसेज शर्मा इन मर्दों को...हालाँकि मेरे ये ऐसे नहीं हैं, पर मर्द ज़ात का क्या भरोसा...? कुत्ते से कम होती है क्या...? जहाँ कोई कुतिया देखी, दुम हिलाते पीछे-पीछे चल दिए... मैं तो इया पूरी सतर्कता बरतती हूँ...तभी तो इन्हें अपने ऑफ़िस में कोई लड़की नहीं रखने देती... पी.-वी. के रूप में, आर्टिकिल के रूप में... जाने कबसर-सरकहते-कहते सिर पर चढ़ जाएँ...मर्द की तो गोद भी हमेशा खाली रहती है, पराई लड़कियों के लिए...
                हाँ तो बात उस छम्मकछल्लो की बता रही थी... खाना तो कितना स्वादिष्ट बनाती थी...किटी में सब कैसी भुक्खड़ों की तरह उँगलियाँ चाट जाती थी, याद है ...? अब घर-गृहस्थी के पचड़ों में हमसे तो ज़्यादा पड़ा नहीं जाता, जानती तो हैं आप... खाना बनाने से लेकर इनके-हमारे सबके कपड़े धोना-सुखाना, प्रेस कर के अलमारी में रखना, झाड़ू-पोंछा...सभी तो कितने सलीके से करती थी... हमें तो बहुत आराम मिल गया था... बस्स, मैं भी तो एक नम्बर की भोली हूँ...उसने आराम दिया तो मैं भी निश्चिंत हो गई थी... तभी तो हमने वो दूसरी किटी भी ज्वॉइन की थी...अरे वहीऽऽऽ, वो सो-कॉल्ड हूर की परी...अपनी मिसेज जनार्दन वाली... हम तो उस समय खूब मज़े कर रहे थे, पर हमें क्या मालूम था कि हमारे ही घर में ये छम्मकछल्लो अपनी पतली कमरिया, तिरछी नज़रिया का जादू चलाने की फ़िराक़ में है... तो एक दिन की बात, अपनी किटी पोस्टपोन नहीं हो गई थी...? अरे, हम भी कैसे भुलक्कड़ हैं... आपको कैसे याद होगा, आप मिसेज जनार्दन की किटी में कहाँ थी... आपसे हमने कहा भी तो था कि ज्वॉइन कर लीजिए... ख़ैर, गोली मारिए मिसेज जनार्दन को...नहीं, नहीं...किटी मिसेज जनार्दन को गोली लगने की वजह से कैंसिल नहीं हुई थी, वो तो मैने कहावत कही है... वो तो उसी दिन किटी शुरू होते ही उनके पास ख़बर आई थी कि उनका ससुर निकल लिया... बुढ्ढा कई दिन से बीमार था... अरे नहीं, घर में नहीं, बुढ़ऊ को वृद्धाश्रम में रखा था... गाँव की ज़मीन-जायदाद तो जनार्दन साहब पहले ही बेच-बूच के खा गए थे अपनी फ़ैक्ट्री लगाने के नाम पर... घर पर बुढ़ऊ से मिसेज जनार्दन की पटरी कहाँ बैठती थी...? इसी लिए तो वृद्धाश्रम छोड़ा था बुढ्ढे को...
                  मैं भी कहाँ की बात से कहाँ तक चली जाती हूँ... तो जब किटी अचानक कैंसिल हो गई तो हम सब वापस चल दिए... पहले तो मैने सोचा कि डॉयरेक्ट ही शॉपिंग चली जाऊँ, फिर इतने हैवी ज्वैलरी-कपड़े के साथ शॉपिंग को जाना थोड़ा अटपटा लगा मुझे... कहते हैं , भगवान जो करता है, अच्छा करता है... मेरी क़िस्मत अच्छी थी जो मैं सीधा घर पहुँच गई... जाकर देखती क्या हूँ कि मेरे ये पलंग पर बैठे हैं और ये क़म्बख़्त इनकी गोद में लेटी है... मुझे देखते ही इन्होंने झट से उसे नीचे धकेल दिया... कहने लगे, जाला साफ़ कर रही थी, पैर फिसल गया और इनके ऊपर गिर पड़ी... वैसे मुझे वहाँ कोई झाड़ू-वाड़ू दिखाई नहीं दिया... मैं झट से समझ गई, मेरे ये तो वैसे भी इतने सीधे हैं, भला ये इन छिछोरी औरतों की चालें क्या जानें...? उसने कह दिया होगा, साहब हम तो जाला साफ़ कर रहे थे, फिसल गए...और ये बेचारे भोले-भाले उसकी बात मान गए...  पर मैं भी एक नम्बर की चंट हूँ, झट ताड़ गई कि असलियत क्या है...?
              रात को मैने इन्हें भी उसकी चाल समझाने की कोशिश की, पर आप तो जानो हो इनका भोला स्वभाव... सबको अपनी तरह भोला समझते हैं...माने ही नहीं मेरी बात... मुझ पर ही बिगड़ गए। मैं भी चुप लगा गई...सोचा, आगे से कड़ी निगाह रखूँगी... क्या पता, अगली चाल क्या हो...? भगवान ने भी बहुत जल्दी मुझे मौका दे ही दिया... एक दिन मैने उसे रंगे हाथों पकड़ ही लिया... अरे नहींऽऽऽ, उस तरह से रंगे हाथ नहीं... ये जब सिंगापुर गए थे तो वहाँ से मेरे लिए एक डायमण्ड सेट लाए थे...मैने शायद बताया भी होगा... नहीं, अभी कहीं पहनने का मौका नहीं मिला आप सब के सामने... वहाँ तो पहना था...उसी मिसेज जनार्दन की कैंसिल हुई किटी पार्टी में...तब से ऐसा रखा कि पूरा सेट कभी पहना ही नहीं...कभी-आध उसके कड़े या अंगूठी वगैरह ऐसे ही अलग-अलग पहन लेती थी...  तो उसी सेट की झुमकी गायब हो गई एक दिन... मुझसे इनके साथ जाना था कहीं, सो मैने इन्हीं के सामने निकाल कर ड्रेसिंग टेबिल पर रखी थी... इसी बीच वो चुड़ैल कमरे में आई और लो जी, बस्स...झुमकी गायब... बहुत पूछताछ की, पर चोट्टी ने कबूला नहीं... दो-एक झापड़ भी रसीद कर दिए मैने...पर मज़ाल है... तलाशी भी ली, पर कुछ नहीं निकला... मैने भी इनसे कह दिया, पता नहीं अपने किस यार को झुमकी पार कर दी है... आज झुमकी है, कल नेकलेस और रुपयों के साथ हमारी गर्दन भी पार कर देगी, पता भी नहीं चलेगा... कमीनी को लात मार कर निकाला है मैने... पुलिस में इस लिए नहीं गई कि बेकार तरह-तरह के सवाल-जवाब होंगे, कौन इन झंझटों में पड़े... मेरे ये तो बेचारे मानो सदमा ही खा गए...कितना मानते थे ये भी उसे... जब देखो, हर काम के लिए उसे ही आवाज़ लगाते थे...
             अरे, देखिए ...हम इतनी देर से बोर हो रहे थे और ये सब हीरोइन बन-बन कर अब रही हैं... अरे मिसेज ग्रोवर, आइए, ये मेरे बगल वाली सीट खाली है...और मिसेज खन्ना...आप तो यहाँ से कुछ खास दूर नहीं रहती...आप तो टाइम से जाती... क्या...? अरेऽऽऽ, मेरी ये झुमकी आपको इतनी पसन्द आई है... आते ही निगाह में चढ़ गई...थैंक्यू जी... अरे नहीं मिसेज खन्ना, यहाँ से नहीं खरीदी... मेरे ये जब सिंगापुर गए थे , तब पूरा डायमण्ड सेट लाए थे वहाँ से, उसी सेट की है... अभी पूरा सेट एक साथ पहनने का मौका ही कहाँ मिला...?

                                                                           




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2 comments

  1. अरे वही, पतली कमरिया, तिरछी नज़रिया वाली... :D

    ये तो एकदम अलग स्टाईल की कहानी है रे...तुम तो गॉसिप से कोसों दूर हो और नाही तुम सास बहु या कोई और फ़ालतू टाईप सीरियल देखती हो और फिर भी इतना अच्छा लिखा... :) :) इस किटी पार्टी में तो मज़ा आ गया.....बहुत बढ़िया कहानी है रे :)

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  2. अरे वही, पतली कमरिया, तिरछी नज़रिया वाली... :D

    ये तो एकदम अलग स्टाईल की कहानी है रे...तुम तो गॉसिप से कोसों दूर हो रे और नाही तुम सास बहु या कोई और फ़ालतू टाईप सीरियल देखती हो और फिर भी इतना अच्छा लिखा... :) :) इस किटी पार्टी में तो मज़ा आ गया.....बहुत बढ़िया कहानी है रे :)

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