सपनों का मर जाना
Sunday, January 30, 2011 कवि पाश ने कहा था -
ख़तरनाक होता है
किसी सपने का मर जाना
सपने
जो पालते हैं अपने भीतर
न जाने कितनी ज़िन्दगियाँ
सच ,
महकती... चहकती
खिल-खिल करती
कभी ठहरी नदी सी
कभी गहरा समन्दर
सपनो के बिना
अधूरा है आदमी
और शायद
अकेला भी
आदमी के ज़िन्दा रहने के लिए
जरूरी हैं सपने
वे सपने
जो टूट कर तोड़ते हैं
तो जीने के लिए जोड़ते भी हैं
अतः
सपनों को मरने मत दो
बेहद ख़तरनाक होगा
मर जाना
उनका यूँ ही...।
3 comments
सपनों को मरने मत दो
ReplyDeleteबेहद ख़तरनाक होगा
मर जाना
उनका यूँ ही...।
बहुत सुन्दर..आम आदमी के लिए सपने ही तो जीने का सहारा होते हैं..
बहुत अच्छे भाव और कविता. सपने ही तो जीवन में आगे बढ़ने का दिशा-निर्देशन करते हैं. सपने न हों तो क्या जीवन?
ReplyDeleteपाश की वो कविता 'मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती' न जाने कितनी बार पढ़ चूका हूँ..
ReplyDeleteये कविता भी बहुत सही है..सच है...