ये चाट-सी भी होती है ज़िन्दगी...

Tuesday, February 04, 2014

पिछले कई दिनों से ज़िन्दगी कुछ ज़्यादा ही व्यस्त-सी चल रही...। सोचा नहीं था कि कुछ लिख भी पाऊँगी या नहीं...पर आज दिल्ली में रह रहे अपने छोटे भाई से बात करते समय सहसा ‘दिल्ली की चाट’ का ज़िक्र ऐसा चला और मन-पाखी उड़ कर एक बार फिर यादों के झरोखे पर जा बैठा...।
यादें, जो पुरानी दिल्ली के गलियारों से शुरू होकर लाल-किला के पास मिलने वाली चाट के ज़िक्र से गुज़रती हुई राधा चाची के पास आकर रुक गई...। राधा चाची, यानि मेरी सबसे छोटी चचिया सास, जो कई साल पहले ही हमें छोड़ कर जा चुकी हैं...पर हमारे जेहन में वो आज भी उतनी ही शिद्दत से मौजूद हैं...। उनके बारे में कुछ शुरुआती बातें तो मैं अपने एक पोस्ट में पहले ही बता चुकी हूँ...आज कुछ और बातें भी...।
राधा चाची वैसे बहुत कम खा पाती थी, अपनी पेट की तकलीफ़ों के चलते...पर चाट की वे हद दर्ज़े की शौक़ीन थी...। खास तौर से, पानी के बताशे, यानि गोलगप्पों की...। आप उनके साथ बाज़ार गए हों और वो आपको गोलगप्पे खिलाए बिना ले आएँ, ऐसा होना लगभग नामुमकिन ही था। मुझे अच्छी तरह याद है, कई बार तो हम दोनो पास के बाज़ार सिर्फ़ गोलगप्पे खाने ही गए हैं...। चाट खाते वक़्त उनकी खुशी देखते ही बनती थी...। यूँ लगता था, वो वापस अपने स्कूल-कॉलेज़ के दिनों में पहुँच गई हों...एक अल्हड़-मस्त शरारती-सी लड़की...जो अपनी किसी सहेली के साथ क्लास बंक करके चाट-पकौड़े खाने आई है...।
चाट खाते समय वे अक्सर अपने दिल्ली के दिनों को याद करती थी...। वैसे ये याद करना सिर्फ़ चाट के साथ ही सीमित नहीं था, बल्कि बहुत सारे लम्हें ऐसे आते थे, जब दिल्ली उन्हें बेतरह याद आती थी...और याद आते थे अपने बचपन और जवानी के दिन...अनगिनत किस्से...। कुछ मस्त खिलखिलाहटों से सराबोर करने वाले, तो कुछ आँसुओं की नमी से मन भिगो जाने वाले भी...।
बचपन की एक मस्त...बेफ़िक्री के आलम में खोई रहने वाली लड़की बाद में ज़िम्मेदारियों के बोझ तले कहीं गहरे दब ज़रूर गई थी, पर मौका मिलते ही उन दबावों के बीच से भी अक्सर वो नटखट लड़की धीरे से अपना सिर निकाल झाँक ही लेती थी...। किसने सोचा था कि भाई-भाभियों की लाडली, जो कभी एक गिलास पानी भी नहीं उठाती थी...कोई उठाने देता ही नहीं था न...शादी के बाद एक पाँव पर भागते-दौड़ते, सबका स्वागत-सत्कार करते हुए भी उतनी ही ज़िन्दादिली से मुस्कराती भी रहेगी...। आप लाख पेट भर कर उनके पास पहुँचे हों, जब तक आप उनका बनाया कुछ खा नहीं लेते, उनको चैन नहीं था। खाना वो लाजवाब बनाती थी...। खास तौर से उनकी अमिया की चटनी और वो आलू-टमाटर की सब्ज़ी...ये दोनो मैं कभी नहीं भूल सकती...। उनके हाथ के मेरे पसन्दीदा व्यंजनों में से ये दो तो प्रमुख हैं...। मुझे लगता है कि एक ही चीज़ जब दो अलग-अलग लोग बनाते हैं, तो उनके हाथ का जादू उसमे खुद-ब-खुद आ जाता है..। आप लाख विधि की नकल मार लें...सब कुछ वैसा ही, उतनी ही मात्रा में डाल लें, पर हाथ फिर भी अपना जादू दिखाता ही है...। ये आलू-टमाटर की रसेदार सब्ज़ी मुझे दो लोगों के हाथ की बेहद पसन्द थी, और दुर्भाग्यवश दोनो मेरे साथ नहीं...। एक मेरी नानी...और दूसरी, राधा चाची...।
घर-गृहस्थी के काम ही नहीं, राधा चाची किताबें पढ़ने की भी बहुत शौक़ीन थी...। इस विषय पर भी हम घण्टों चर्चा कर लिया करते थे...। पर विदुषी होने के बावजूद जैसा कि आम भारतीय घरों में होता है, पति अपनी पत्नी को बड़े आराम से बोल देते हैं...अरे चुप रहो, तुम्हें समझ नहीं आएगा...वैसे ही कभी-कभी चाचाजी भी उनकॊ बोल दिया करते थे...। चाचीजी इस बात को कभी गम्भीरता से नहीं लेती थी...बस्स मुस्करा कर रह जाती थी...। दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक मेधावी छात्रा, जिसने बी.ए में रूसी भाषा ली थी और जिसे स्कॉलरशिप के तहत आगे की पढ़ाई के लिए रूस जाने का मौका मिला था, उसे एक मामूली बात कैसे नहीं समझ आ सकती थी भला...? पर जो बात न भी सहन हो, उसे भी हँस के हवा में उड़ा दो...ये बहुत बड़ी खासियत थी उनमें...। जाने-अनजाने परिवारजन ही उन्हें कुछ चुभता हुआ कह जाते थे और वो हँस कर रह जाती थी...। मुझसे कई बार सहन नहीं होता था, पर संस्कार और बड़ों के इज़्ज़त करने की आदत के चलते मैं ज़बान सिल के बैठी रह जाती थी..। हाँ, अकेले में एक बेटी की तरह मैं उनसे तुनक जाती थी...क्या चाची जी...अब बस भी कीजिए ये ‘पंचिंग बैग’ बनना...। ग़लत बातों का विरोध करना सीखिए...। मेरे लिए तो आप किसी से भी मोर्चा सम्हाल लेती हैं...अपने लिए कब करिएगा ऐसा...? मैं तो कभी न कर पाऊँगी इस तरह के व्यवहार को बर्दाश्त...। उनका जवाब वही होता था...सह लिया तो क्या हो गया...? जिसकी जैसी फ़ितरत है, अगर वो उसको नहीं बदलता तो मैं क्यों बदलूँ...?
राधा चाची सच में नहीं बदली कभी...जैसी ज़िन्दादिल उन्हें मैंने सुख में देखा था, वैसे ही वो अपने कष्टों में भी रहती थी...हँसती हुई...। हाँ, दो बातों को याद करके मैंने उन्हें थोड़ा उदास होते ज़रूर देखा था। एक, उनकी शादी के चन्द ही दिनों पहले उनकी माँ का अचानक दिल का दौरा पड़ जाने से इस दुनिया से चला जाना...और दूसरा, स्कॉलरशिप पाकर भी रूस जाकर अपने सपने पूरा न कर पाने का मलाल...। रूसी भाषा की किताबें उनके पास वैसे ही सहेज कर रखी हुई थी, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु से चन्द दिनों पहले ही तब निकाला था, रिवीज़न करने के लिए, जब उन्हें पता चला था कि गोपाल को शायद ऑफ़िस की तरफ़ से रूस जाने का मौका मिले...। पर ये रिवीज़न मुकम्मल होने से पहले ही दुनिया में रहने का उनका वक़्त ही पूरा हो गया...।
यादें तो जाने कितनी हैं मेरे पास अपनी राधा चाची की...पर सोचती हूँ...आज इतना ही, बाकी फिर कभी...। शायद तब, जब एक बार फिर यूँ ही, उड़ते-फिरते ये मन जा बैठेगा दिल्ली की किसी ऐसी मुँडेर पर, जहाँ से गुज़रती हुई राधा चाची हँसते हुए कहेंगी...आओ चलें, हनुमान की चाट खा आते हैं...। 

You Might Also Like

9 comments

  1. तुम्हारे साथ साथ थोड़ा इमोशनल हो गए हैं हम भी...! और ज्यादा क्या कहें....तुमने जब एकाएक जिक्र किया था राधा चाची का, तो चलते चलते हम भी रुक गए थे....दो पल हम भी खामोश हो गए थे...! बहुत अच्छा किया तुमने जो इस पोस्ट को लिखा !!

    ReplyDelete
  2. अच्छा हाँ, उसी समय जाने क्यों "मैंने परी को देखा है" की भी याद आई....शाम में दोनों पोस्ट पढ़ लिए फिर से ...एक मेरा लिखा हुआ, एक तुम्हारा लिखा हुआ...! :)

    ReplyDelete
  3. चाट से बात शुरू कर उचाट कर दिया मन राधा चाची के ज़िक्र से। ऐसे पुराने लोग हर परिवार की दीवार पर मिल जायेंगे, लेकिन उनकी असली जगह हमारे दिलों में है।
    प्रणाम करता हूँ उन्हें।

    ReplyDelete
  4. कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी होते हैं, जिनसे कोई नाता ना होते हुए भी, उनकी बातें ही हमें कहीं अन्दर तक भिगो जाती हैं...

    और हाँ... ऐसे लोग शायद दूसरों की खुशी के लिए ही इस दुनियां में आते हैं...पर जाने के बाद बहुत रुलाते हैं, सच्ची...

    आप भाग्यशाली हैं, जो आपको उनका साथ मिला... :)

    ReplyDelete
  5. बहुत भावपूर्ण संस्मरण है प्रियंका । इसे संजोकर रखिएगा । आपका गद्य भी बहुत सधा हुआ , रोचक !

    ReplyDelete
  6. तुम्हारे राधा चाची को नमन !!
    दिल को छूता संस्मरण !

    ReplyDelete
  7. कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी होते हैं

    ReplyDelete
  8. Emotinal kr diya aapki post ne
    Aaj aapki post ne mujhe meri frd ki yaad dila di
    Hum dono bhi bhuth masti krte the ab nhi kafi dino se mujhe uski yaad aa rahi thi aaj aapki post padh ke or bhi jyada yaad aa rahi hai aapki radha chachi ki tere hi thi wo
    Wo bhi aaj is duniya mein nhi hai
    Iske sath clg k din yaad aa gye kitni masti krte the clss bunk karna aata hi nhi tha
    Kbhi bunk ki bhi to tchr k saamne hi bethe rehna or aapne lunch box khol kr beth jana fr lunch lekr clg ki vatika's mein baagna kitni masti ki phele to masti krna pura tym fr xms k wqt books k sath chipak jana fr to pura din padhai

    ReplyDelete
  9. Emotinal kr diya aapki post ne
    Aaj aapki post ne mujhe meri frd ki yaad dila di
    Hum dono bhi bhuth masti krte the ab nhi kafi dino se mujhe uski yaad aa rahi thi aaj aapki post padh ke or bhi jyada yaad aa rahi hai aapki radha chachi ki tere hi thi wo
    Wo bhi aaj is duniya mein nhi hai
    Iske sath clg k din yaad aa gye kitni masti krte the clss bunk karna aata hi nhi tha
    Kbhi bunk ki bhi to tchr k saamne hi bethe rehna or aapne lunch box khol kr beth jana fr lunch lekr clg ki vatika's mein baagna kitni masti ki phele to masti krna pura tym fr xms k wqt books k sath chipak jana fr to pura din padhai

    ReplyDelete