डोर

Tuesday, May 03, 2011


कहानी
                                                    डोर
                                                                                      प्रियंका गुप्ता

            गुसलखाने से राजेश के गुनगुनाने की आवाज़ आ रही थी । स्मृति समझ गई, कम-से-कम आधा घण्टा तो लगना ही है आज उसे बाथरूम में, संडे जो था । राजेश रोज चाहे कितनी ही हड़बड़-तड़बड़ में नहाए, पर इतवार को पूरी मस्ती से नहाता है, गुनगुनाते हुए । शायद अकेले में मुस्कराता भी हो...क्या पता ?
            स्मृति को पता नहीं क्यों उसकी गुनगुनाहट से बोरियत सी होने लगी । बोबू टी.वी पर कार्टून नेटवर्क की दुनिया में खोया था, नाश्ता बन चुका था और खाना बनाने में अभी दोपहर तक का वक़्त बाकी था । राजेश को "एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा..." गुनगुनाते सुन स्मृति को कोफ़्त होने लगी । बड़ा आया लड़की देखने वाला...कभी बीवी को भी देख लिया करे...। 
            स्मृति ने भी बोबू के साथ कार्टून में मन लगाने की कोशिश की, पर कम्बख़्त मन था कि लगा ही नहीं...। कार्टून चैनल बोबू बदलने नहीं देता कि कोई मजेदार कार्यक्रम ही देख ले...। वैसे भी टी.वी में मजेदार आता ही क्या है...? हर चैनल पर वही सास-बहू की साजिश, विवाहितों - अविवाहितों के नजायज़ सम्बन्धों का अंतहीन सिलसिला या रियलिटी के नाम पर अपने को अंदर-बाहर से ज्यादा-से-ज्यादा नंगा दिखाने की नौटंकी...। कभी इनसे उकता कर न्यूज़ लगाती तो वहाँ भी सिर्फ़ किसी बेहूदे डरावने सीरियल की तर्ज़ पर सनसनियाँ...।
            हार कर स्मृति ने अपना मोबाइल उठा लिया । चलो कुछ नहीं तो इनबॉक्स में पड़े मैसेजों को ही एक बार फिर पढ़ ले । वैसे भी स्मृति का यह पसंदीदा टाइमपास था । मैसेज क्लिक करते-करते स्मृति की निगाह अचानक साहिल के भेजे एक जोक पर ठहर गई । कई बार पढ़ चुकने के बावजूद अनायास ही एक बार फिर उसके होंठो पर मुस्कराहट तैर गई...। स्मृति ने घड़ी की ओर देखा । साढ़े दस बजे थे...इसका मतलब साहिल इस समय फ़्री होगा । बरबस ही स्मृति ने साहिल के नम्बर पर कॉल बटन दबा दिया ।

            स्मृति का अंदाज़ा सही निकला । साहिल इस वक़्त फ़्री ही था या कम-से-कम उससे ऐसा ही जता रहा था । इधर स्मृति साहिल की बातों पर खिलखिला रही थी, उधर ग़ुसलखाने में राजेश के गाने पर मानो स्टाप लग गया था । स्मृति ने कनखियों से देखा, दो मिनट के अंदर ही बाथरूम का दरवाज़ा खुला और राजेश तेजी से तौलिया लपेटता बाहर निकल आया ।
           " मेरे कपड़े कहाँ हैं...?" स्मृति को फोन पर व्यस्त होने को जितना नज़र-अंदाज़ करते हुए राजेश ने पूछा, उतनी ही बेपरवाही से साहिल की किसी मज़ेदार बात पर खिलखिलाती स्मृति ने हाथ से अलमारी की ओर इशारा कर दिया ।
            साहिल की बातों में पूरी रुचि लेती स्मृति आँखों के कोरों से राजेश के चेहरे पर बढ़ते तनाव, उसकी भवों की सिकुड़न को पूरी शिद्दत से महसूस रही थी ।
           " नाश्ता दो जल्दी..." माथे पर बल डाले उससे बोलते राजेश को स्मृति ने हाथ के इशारे से रोका और साहिल से बात करने लगी ।
           " अच्छा रखती हूँ...मेरे पतिदेव बेचारे भूख से कूदते चूहों के कारण शेर बन कर दहाड़ें, उससे पहले ही बाय एण्ड टेक केयर...।" अपनी हँसी पर काबू पाते हुए स्मृति ने फोन काट दिया ।
           " क्या ज़रूरत थी सुबह-सुबह किसी ग़ैर-मर्द को फोन करके यूँ खी-खी करने की...? कल को उसकी शादी हो जाएगी तो जूता-लात चलेगा तुम्हारा उसकी बीवी से...। अक़्ल नहीं है बिल्कुल भी...।" इधर राजेश का गुनगुनाना बंद होकर बड़बड़ाना चल रहा था, उधर किचन में गुनगुनाती हुई स्मृति नाश्ता गर्म कर रही थी ।
            वैसे साहिल से उसकी पहली मुलाकात भी कम अनोखी नहीं थी । बिल्कुल फ़िल्मी स्टाइल...। उसने बाद में एक बार साहिल से कहा भी था..." अभी तक यही सुना था कि फ़िल्में हक़ीकत पर आधारित होती हैं, पर हमारी मुलाक़ात देखो...किसी फ़िल्म पर बेस्ड नहीं लगती...?"
            उसे अभी तक अच्छी तरह याद है...साल भर पहले की ही तो बात है...। बोबू को हमेशा की तरह घर पर राजेश के पास छोड़ कर सारा राशन-पानी लेने पास की मार्केट गई थी । सामान खरीदते-खरीदते, थोड़ी सी विन्डो-शापिंग करते हुए कब जाड़े की शाम का झुटपुटा चारो तरफ़ पसर गया, उसे ध्यान ही नहीं रहा । अहसास तो तब हुआ जब अपने घर की तरफ़ आने वाले लगभग सुनसान रास्ते पर दो शोहदे से लोगों को अपना पीछा करते देखा । आम तौर पर बोल्ड रहने वाली स्मृति पता नहीं क्यों घबराहट सी महसूसने लगी । किसी सहारे की तलाश में उसने चारो ओर निगाह दौड़ाई तो कुछ दूरी पर खुली पान की छोटी सी गुमटी पर सिगरेट खरीदता एक लड़का ही नज़र आया । स्मृति को वह डूबते को तिनके का सहारा सा लगा । बिना सोचे कि वह कैसा होगा, क्या समझेगा, स्मृति तेजी से उसकी ओर बढ़ गई..." एक्सक्यूज़ मी, प्लीज़...। देखिए, वो दो शोहदे काफ़ी देर से मेरा पीछा कर रहे हैं...। मेरा घर अगली गली में है । क्या आप कृपा कर के मुझे मेरे घर तक छोड़ सकते हैं...?" स्मृति रुआंसी हो उठी थी । लड़के ने पल भर को उसे मानो निगाहों में ही तौला, फिर ’चलिए’ कह कर उसके साथ हो लिया ।
             घर के दरवाज़े पर पहुँच कर स्मृति की जान-में-जान आई । उसे घण्टी बजाते देख युवक ने नमस्ते कर पलटना चाहा पर स्मृति ने उसे रोक लिया ।
            " धन्यवाद स्वरूप एक कप काफी तो पीते जाइए...। अ-हाँ...घबराइए नहीं...," एक अनजान लड़की द्वारा यूँ अंदर बुलाए जाने पर युवक की हिचकिचाहट महसूस करती स्मृति की हँसी मानो दिन भर से निकले परिंदे की मानिन्द लौट आई..." मैं शादीशुदा, एक बच्चे की माँ हूँ...। घर पर मेरे पति और बच्चा, दोनो ही मौज़ूद हैं...। आप बेखटके अंदर आ सकते हैं...।"
             युवक को अंदर आने का इशारा करती स्मृति तब तक दरवाज़ा खोल चुके राजेश को लगभग ठेलती-सी अंदर घुसी," मीट माई हसबैण्ड, राजेश...एंड ही इज़ मि..." राजेश की प्रश्नवाचक निगाहों के जवाब में सामान वहीं सोफ़े पर रख दोनो का परिचय कराती स्मृति ने खुद ही युवक की ओर देखा ।
            " मैं साहिल हूँ..." युवक ने खुद ही अपना परिचय देना शुरू कर दिया, " जहाँ पर आप मुझसे मिली थी, वहीं पास में मेरे एक दोस्त का घर है । उससे मिल कर लौट ही रहा था कि आपसे मुलाकात हो गई । एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सीनियर एक्ज़िक्यूटिव हूँ...और..."
            " तुम दोनो पहले से एक दूसरे को जानते हो...?" राजेश को हमेशा की तरह अभी भी पूरी बात समझ में नहीं आई थी,इस लिए वह बीच में ही कूद पड़ा ।
            " जी नहीं...आप बैठिए न मि. साहिल..." साहिल को बैठने का इशारा करती स्मृति राजेश से मुख़ातिब हुई," हम एक-दूसरे को पहले से तो क्या...कभी भी नहीं जानते थे...। पर आज के बाद जान गए...सिम्पल...। जब तक आप दोनो एक-दूसरे को जानिए, तब तक मैं फटाफट कॉफी लाती हूँ...।" कहती हुई स्मृति बेपरवाह अंदाज़ में किचन में घुस गई तो साहिल ने ही राजेश की तनी हुई भृकुटि के सामने मोर्चा संभाला । कॉफी पीते-पीते और साहिल के उठ खड़े होने तक सब कुछ जान लेने के बावज़ूद राजेश वैसे ही तना बैठा रहा ।
            " आप प्लीज़ राजेश के व्यवहार का बुरा मत मानिएगा...ये ऐसे ही हैं...। इनके चेहरे पर हँसी सिर्फ़ तभी देखने को मिलती है जब ये अपने दोस्तों के बीच होते हैं...। खड़ूस टाइप पर्सन, यू नो...," दरवाज़े तक आ साहिल को विदा करती स्मृति ने हाथ जोड़ कर क्षमायाचना वाले अंदाज़ में धीरे से कहा तो साहिल अचकचा गया ।
            " डज़ेन्ट मैटर ( कोई बात नहीं) स्मृति जी...जिस काम में हूँ उसमें हर तरह के लोगों से पाला पड़ता है...। मैं किसी बात को दिल पर नहीं लेता...। वैसे अगर कभी मौका लगे तो आप राजेश जी को लेकर आइए...मुझे अच्छा लगेगा...।" स्मृति को अपना विज़िटिंग कार्ड देकर उससे विदा ले साहिल चला गया ।
            " आज नाश्ता मिलेगा या अगले संडे तक इंतज़ार करूँ...?" राजेश की तीखी आवाज़ से स्मृति वर्तमान में आ गई । नाश्ते की मेज पर भी राजेश का बड़बड़ाना जारी रहा पर स्मृति ने हमेशा की तरह नज़र-अंदाज़ कर दिया । जानती है प्रत्युत्तर देने का कोई फ़ायदा नहीं...। राजेश तो नार्मली भी और गुस्से में भी, दोनो ही स्थितियों में सिर्फ़ अपनी ही कहता है, अपनी ही सुनता है और अपनी ही करता है...सो बहस का कोई मतलब ही नहीं ।
              स्मृति को अब भी अच्छी तरह याद है, उस दिन कितना चिल्लाया था राजेश उसपर साहिल के जाने के बाद..." और जाओ मटरगश्ती करने...देर रात तक घूमोगी तो गुण्डे नहीं तो क्या भगवान मिलेंगे...? अक़्ल नहीं है क्या...?"
              स्मृति लाख कहती रह गई," तुम जब कहीं साथ चलने को तैयार ही नहीं होते तो मैं क्या करूँ...?" पर राजेश को अपनी रौ में जो कहना था, कहता गया । हार कर स्मृति ही चुप रह गई । कौन सिर फोड़े अपना इस पत्थर से...पर पत्थर कहाँ ? पत्थर भी होता तो कम-से-कम चुप तो रहता...राजेश की तरह दिमाग़ तो न खराब करता...।
              आज भी राजेश चुप नहीं हो रहा था । पानी जब सिर से ऊपर होने लगा तो स्मृति भी तीखी हो उठी," अपना ये लेक्चर जाकर अपने उस प्रिय मित्र की तथाकथित महान पत्नी को क्यों नहीं देते जो हर जगह अपने पति के साथ-साथ तुमको भी टाँग कर ले जाती है जैसे ’बाय वन,गेट वन’ की कोई स्कीम हो । मैं कम-से-कम उसके जैसी तो नहीं हूँ न...जो पति की ग़ैरमौजूदगी में उसके दोस्त के साथ ही अपनी गाइनी के यहाँ चली जाऊँ...। अगर मुझमें अपनी माँ के दिए अच्छे संस्कार न होते तो मैं कब की तुम जैसे बददिमाग़, खड़ूस को छोड़ कर भाग गई होती तुम्हारे उसी दोस्त की बहन की तरह...।"
             " चुप रह पागल औरत...भाड़ में जा...मूड खराब करके रख दिया संडे की सुबह...।" राजेश प्लेट पटक कर उठ खड़ा हुआ तो स्मृति भी चुप होने की बजाय और उग्र हो उठी," मैं क्यों जाऊँ भाड़ में...भाड़ में जाए तुम्हारे उस प्यारे दोस्त की प्यारी बीवी नयना और मर्जी आए तो तुम भी पीछे-पीछे चले जाना...।" कहते-कहते स्मृति रुआंसी हो उठी । 
              पता नहीं क्यों राजेश उसे देख कर इतना चिढ़ा रहता है ? गोरी-चिट्टी, सुन्दर है, पढ़ी-लिखी , हँसमुख-मिलनसार है...। वह तो और लोगों की पत्नियों की तरह कभी राजेश से ज़ेवरों या डिज़ाइनर कपड़ों की ज़िद भी नहीं करती । अपने भरसक कोशिश करती है कि राजेश से बहस या लड़ाई न ही करे...फिर...? और रही साहिल की बात...ऐसा नहीं है कि राजेश स्मृति के चरित्र की दृढ़ता से अंजान हो । साहिल के भेजे गए हर मैसेज को वही तो सुनाती है राजेश को और साथ ही पूरे खुलेपन से अपने भी मैसेजों के बारे में बेहिचक बता देती है । राजेश अच्छी तरह जानता है कि किसी भी तरह का अश्लील या द्विअर्थी मज़ाक तक स्मृति को बिल्कुल पसंद नहीं, चाहे करने वाला कितना ही क़रीबी क्यों न हो...। राजेश के पास तो उस पर शक़ करने की कोई वजह ही नहीं...।
              ऐसे में स्मृति को दीपाली की कही बात ही सच लगती है," देख स्मृति, ये राजेश की हीनभावना और असुरक्षा की भावना ही है, जो उसे तुझसे यूँ लड़ने को मजबूर करती है...। यह तो मानी हुई बात है कि मर्द अपने ईगो से बाहर नहीं आ पाते...। जब तू साहिल से बात करती है, चाहे उसके सामने ही हो, एक सरल-सहज संवाद ही हो...उसे लगता है कि कोई दूसरा मर्द तेरे लिए महत्वपूर्ण हो रहा है...और फिर कहीं-न-कहीं उसे डर भी तो लगता होगा, जितना वो देखने में उन्नीस है, उतना ही उसका स्वभाव भी तो बकवास है...।"
             " स्वभाव बकवास नहीं है दीपाली । अपने दोस्तों, उनकी बीवियों, उनके परिवारवालों के साथ कैसे हँस-बोल लेता है वो..." स्मृति ने दीपाली की बात बीच में ही काट दी थी," साहिल से मेरी दोस्ती से उसकी नाराज़गी की बात मैं अब के लिए एक कारण मान भी लूँ तो तुम इस बात का क्या कारण बताओगी कि शादी के एक महीने बाद से ही मैने नोटिस किया है कि वह मुझसे लड़ने का, मुझसे भागने का बहाना ढूंढता है...। पहला साल तो रोते ही बीता मेरा, पर अब रोती नहीं हूँ, लड़ना भी अवाएड ही करती हूँ...बस अब मैं भी उसे नज़र-अंदाज़ कर देती हूँ...। अपने में तो बड़ा चिढ़ जाता है, पर क्या मुझे चिढ़ नहीं होती...? कम-से-कम मैं साहिल या किसी और से उसकी तुलना करके उसे नीचा दिखाने की कोशिश तो नहीं करती...। पर वो...अपने दोस्तों की गंदी-से-गंदी बीवियों को मेरे आगे ,मुझसे सुपर साबित करने की कोशिश करेगा, वो भी उन्हीं के सामने...। ऐसे में उन औरतों के चेहरे पर गर्व तो देखो...। अपने पतियों से तारीफ़ तो मिलती नहीं, दूसरे का ही पति सही...।"
             " तो अब इस सच को भी स्वीकार कर ही ले कि राजेश का चरित्र ही ठीक नहीं...। एक चरित्रहीन व्यक्ति ही अपनी सुंदर-सुशील पत्नी से विमुख रह सकता है...।" दीपाली ने मानो निर्णय सा सुनाते हुए कहा तो वह जैसे निरुत्तर हो गई ।
              " मम्मी...बोतल...भुखु आई है..." तीन साल के बोबू ने आकर उसकी गोद में सिर रखा तो मानो वह तंद्रा से बाहर आई । चारो ओर निगाह दौड़ाई तो राजेश का कहीं कोई पता नहीं था । यानि हर छुट्टी के दिन की तरह आज भी वह निकल गया था अपने यार-दोस्तों के यहाँ...। फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि आज वो उससे बिना कुछ कहे ही निकल गया और उसे पता भी नहीं चला ।
               दिन तो पंख लगा कर उड़ते ही हैं,स्मृति की ज़िन्दगी के भी उड़ रहे थे । कहीं कुछ नहीं बदला था...बदलना था भी नहीं । हाँ इतना ज़रूर था कि दीपाली की सलाह के अनुसार स्मृति ने राजेश से साहिल का ज़िक्र करना लगभग बंद कर दिया था । एक-दो बार राजेश ने ज़िक्र छेड़ा भी तो उसने दो टूक जवाब दे दिया," देखो, अगर तुम्हे मुझसे लड़ना ही है तो बताओ...मैं तुम्हें कोई जेनुइन-सा लगने वाला बहाना बता दूँगी...। यूँ फ़ालतू की बातें छेड़ कर लड़ना मुझे पसंद नहीं...।" राजेश भी पता नहीं क्या सोच कर ख़ामोश रह गया था ।
                राजेश तो नहीं सुधरा था, हाँ उसके तनाव के चलते स्मृति जरूर अपना मन मसोस कर रह जाती थी । नहीं जानती क्यों, पर जब साहिल से बातें करते देख राजेश का मुँह बनता था तो स्मृति एक अजीब से संतोष, एक अनजाने सकून के अहसास से भर जाती थी । पर बड़े होते बोबू पर उन दोनो के बीच रोज की चिक-चिक का बुरा असर होगा, दीपाली की इसी बात के कारण स्मृति ने अपने इस सकून भरे अहसास का परित्याग किया था । ऐसा नहीं था कि साहिल से उसकी बातचीत बंद हो गई थी, बस अब पहले की तरह वक़्त-बेवक़्त वाला चक्कर नहीं रह गया था ।
                आज सुबह से ही स्मृति का मन बड़ा उदास था । बहुत अकेलापन सा महसूस कर रही थी । दीपाली अपने आफ़िस के काम से चार दिनो के लिए बैंगलोर गई थी, सो वह उसे वहाँ डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी । समझ नहीं पा रही थी, क्या करे...। जब बेचैनी कफ़ी बढ़ सी गई तो मन हल्का करने के लिए मोबाइल उठा साहिल को फोन करने बैठ गई । कई दिन हो भी तो गया था एक-दूसरे का हालचाल लिए...। स्मृति जानती थी कि साहिल की खुशनुमा बातें उसकी पूरी उदासी दूर कर देंगी । साहिल और उसका स्वभाव कितना तो मिलता है...दोनो की पसंद-नापसंद, सेंस आफ़ ह्यूमर, रुचियाँ...।
                साहिल के फोन पर लगातार घंटी जा रही थी । कालर ट्यून के रूप में " तुझे देखा तो ये जाना सनम..." सुनते-सुनते स्मृति के कान पक गए थे । ये साहिल भी न...शाहरुख और काजोल की फ़ैन तो वो भी है पर इतनी नहीं...छः महीने हो गए इस ट्यून को सुनते-सुनते...।
                लगातार कई बार मिलाने पर भी जब फोन नहीं उठा तो स्मृति समझ गई, महाशय शायद फिर गाड़ी में ही फोन भूल गए हैं । हार कर उसने अपना मोबाइल सिरहाने रखा और सो रहे बोबू के बगल में खुद भी चादर तान कर लेट गई ।
               " यू हैव अ मैसेज..." मोबाइल में दो बार बजे इस मैसेज अलार्म से चौंक कर स्मृति जाग गई । लेटे-लेटे पता नहीं कब उसकी भी आँख लग गई थी । हाथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया, साहिल के मैसेज थे । पहला शायराना मैसेज पढ़ते-पढ़ते स्मृति के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई...। साहिल जानता है, स्मृति को शेरो-शायरी पसंद है । पर दूसरा मैसेज पढ़ कर स्मृति हैरान रह गई । ये साहिल को क्या हो गया...? शेरो-शायरी तक तो ठीक था पर ये...? लव यू, मिस यू जानू...!!

                सहसा स्मृति को कुछ याद आया तो वो मुस्करा पड़ी...तो ये बात थी...। जनाब की जरूर कोई गर्लफ़्रेन्ड है जिसे यह मैसेज भेजना था, पर ग़लती से स्मृति को भेज दिया । स्मृति को सुखद आश्चर्य हुआ...कितना छुपा रुस्तम निकला यह साहिल भी...। वो दोनो कभी मिलते भले न हों, पर फोन पर तो कितनी बातें होती हैं, फिर भी इस बंदे ने कभी भनक भी नहीं लगने दी अपने इस चक्कर की...।
               " अभी बताती हूँ बच्चू को..." खुद से ही बात करती, मुस्कराती स्मृति साहिल को वापस फोन मिलाने लगी," क्यों जनाब, क्या इरादा है...?"
               साहिल की ’हैलो’ सुनते ही हँसी रोकती स्मृति ने भरसक अपनी आवाज़ को संजीदा बनाए रका," क्या मेरा तलाक़-वलाक़ करवाने का इरादा है...? अब बोलती क्यों बंद कर रखी है...?अपनी इस हरकत के लिए कोई जवाब नहीं सूझ रहा क्या...?" साहिल को कल्पना में ही अचकचाया देख कर स्मृति की सप्रयास रोकी गई हँसी किसी जलधारा की तरह फूट पड़ी," अरे मियाँ, जाना था जापान, पहुँच गए चीन...। अपनी गर्लफ़्रेन्ड की बजाय अपनी बेस्ट-फ़्रेन्ड को लव यू का मैसेज भेज दिया...। कौन है भाई वो, मियाँ घुन्नी, हमें कब मिलवाओगे अपने प्यार से...?"
               " चाहो तो अभी...," स्मृति तो हँसे जा रही थी पर साहिल की आवाज़ में न जाने क्यों अभी भी एक असहजता सी थी," बस जाकर शीशे के सामने खड़ी हो जाओ, अभी मिल लोगी...।"
                 स्मृति की हँसी को मानो ब्रेक लग गया," व्हाट...आर यू जोकिंग...? ये आज कैसी बात कर रहे हो...? पता है तुम्हारा सेंस आफ़ ह्यूमर बहुत अच्छा है, पर ये मज़ाक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया...।"
               " ये मज़ाक नहीं है स्मृति..." स्मृति की आवाज़ की तल्ख़ी को नज़र-अंदाज़ करते हुए साहिल ने अपनी बात जारी रखी," आइ एम सीरियसली इन लव विद यू...तुमसे कभी मिलता नहीं...तुम्हें देखता नहीं...तुमने इजाज़त जो नहीं दी है...पर फिर भी प्यार बहुत करता हूँ...। प्यार करने के लिए तो किसी इजाज़त की जरूरत नहीं न...।"
                " स्टाप किडिंग साहिल...एनफ़ इज़ एनफ़...बहुत हो गया तुम्हारा ये बेहूदा मज़ाक..." स्मृति अचानक उग्र हो उठी थी," जानते भी हो क्या कह रहे हो ? तुम्हारी अच्ची दोस्त होने के अलावा मैं किसी की बीवी हूँ...एक बच्चे की माँ हूँ...।"
                " तो क्या हुआ स्मृति...?" साहिल मानो आज उससे पूरी बहस करने के मूड में था," प्यार कोई बंधन नहीं देखता । आज सच बताना स्मृति, तुम्हें मेरी क़सम..., क्या कहीं-न-कहीं तुम भी मुझसे प्यार नहीं करती...?"
                " हाँ करती हूँ...पर कुछ भी समझने से पहले मेरी पूरी बात सुनो साहिल..." स्मृति की आवाज़ में उग्रता की जगह एक अजीब तरह की दृढ़ता आ चुकी थी," मेरा तुमसे प्यार वैसा ही है जैसा कोई भी अपने बहुत अच्छे दोस्त से करता है...यू आर माइ बेस्ट फ़्रेन्ड, बेवकूफ़...। जैसा प्यार मैं तुमसे करती हूँ, वैसा ही प्यार मैं दीपाली से भी करती हूँ, संजना से करती हूँ...। हम सब आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं न...। तुमसे मैं खुल कर हँसती-बोलती हूँ,, सुख-दुःख शेयर करती हूँ, क्योंकि तुम मेरे लिए मेरे एक बहुत-बहुत-बहुत ही अच्छे और प्यारे दोस्त हो...और कुछ नहीं...।"
                " ऐसा मत कहो स्मृति...मैने तो हमेशा से तुम्हे एक दोस्त से ज्यादा ही समझा है...मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता...आइ कान्ट लिव विदाउट यू...।" साहिल बुरी तरह रुआंसा हो उठा था ।
                " नाऊ यू हैव टू साहिल...और रही मुझे खोने की बात...वो तो आज तुम खो ही चुके हो शायद...। आज मैने भी तो कितना कुछ खो दिया...अपने एक बहुत प्यारे, बहुत ही अच्छे दोस्त को...साथ ही अपने मन के उस विश्वास को भी, कि एक औरत और मर्द के बीच ऐसा रिश्ता भी कायम रखा जा सकता है , जिसे दोस्ती के सिवा कोई और नाम देने की कभी जरूरत ही न पड़े...। एनीवेज़, आल द वैरी बेस्ट फ़ार युअर अपकमिंग लाइफ़...थैंक्स फ़ार एवरीथिंग यू एवर डिड फ़ार मी...गुडबॉय...एण्ड टेक केयर...।"
                  साहिल की आगे की कोई भी बात सुने बग़ैर स्मृति ने फोन काट दिया । अनचाहे, अनजाने ही जिस डोर से वह बंध चुकी थी, उस के यूँ हाथ से छूट जाने पर जड़-सी बैठी स्मृति की आँखें छलक पड़ी...।

(दोनों चित्र freeimageworks.com   से साभार)

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6 comments

  1. रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं, संभाल के रखने चाहिए, और हर रिश्ते को अपनी एक मर्यादा, हद में रहना जरूरी है..

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  2. मेरा तुमसे प्यार वैसा ही है जैसा कोई भी अपने बहुत अच्छे दोस्त से करता है...यू आर माइ बेस्ट फ़्रेन्ड, बेवकूफ़...। जैसा प्यार मैं तुमसे करती हूँ, वैसा ही प्यार मैं दीपाली से भी करती हूँ, संजना से करती हूँ...। हम सब आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं न...। तुमसे मैं खुल कर हँसती-बोलती हूँ,, सुख-दुःख शेयर करती हूँ, क्योंकि तुम मेरे लिए मेरे एक बहुत-बहुत-बहुत ही अच्छे और प्यारे दोस्त हो...और कुछ नहीं...।"
    िस संवाद में आपने सब कुछ कह दिया । आज का बहुत से लोगों की सोच का दुखद पहलू यह है कि उनकी दृष्टि में औरत मित्र नहीं हो सकती है , वह केवल और केवल पत्नी या प्रेमिका ही हो सकती है । यह सोच बहुत सारे दुखों का करण है । वह बेटी , बहन और मित्र भी तो हो सकती है , होती भी है , लेकिन ऐसे सौभाग्यशाली लोग कम हैं ।
    प्रियंका बेटी आपकी यह कहानी सामान्य बधाई से बहुत ऊपर है , लिखते रहना , इसी तरह से ।

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  3. priyanka ji
    bahut si rochkata liye hue ant tak pahunchte pahunchte kahaani thoda gam-geen ho gai .par sachchi ko badi hi khoob surati ke saath kahani ke madhyam se vykt kiya hai .bilkul aaj -kal ka sanyik chitran kahen ya jita jagta roop.
    sadiyo ki parmpara itni aasani se kaise tut sakti hai .
    pati ka patni dwara kisi aur se baate karna achhana na lagna us par shak karna ye saare adhikaar to patiyo ki jeb me hi aate hain.han1aisa kuchh katrne ke liye ve svayam ko aajad panchhi hi mante hain.
    par dost ka dost bankar ek seema tak bane rahna hi achha hai par agar hamari dosti ko vo kisi aur arth me lene ki pahal kare to use hamesha ke liye gud-bye kah dena hi behtar hai.hammare liye bhi aur uske liye bhi.
    bahut hi badhiya lagi aapki prastuti jisme dono hi paxho ko badi hi khubsurat samanjasy ke saath baithaya hai aapne .
    bahut bahut badhai
    dhanyvaad sahit
    poonam

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  4. Hello Priyanka ji..
    aapki kahani padhi.. naam aapne bahut hi soch samajh ke rakha hai.. "DOR" .. ye rishte hote hi ek " dor" ki tarah hai... jara sa jhatka laga nahi ki "dor" me gaanth aa jati hai..!! any ways.. aapki kahani ke sabhi character apne hi aas-paas ke lagte hai..!! jaise mai, aap aur hamara parivar..! aapko itni sundar kahani likhne aur hum sab ke saath share karne ke liye dher saari badhaiyaa..!! keep writing..

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  5. sachi aur acchi kahani hai bahut accha likha hai jo ki har ek ke saath hota hai.....

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