Friday, November 12, 2010
कविता बन्धन
बहुत बार
खुले आकाश में
पंख फैला कर
पूरी उन्मुक्तता से
ऊँचे, बहुत ऊँचे
उडना चाहती हूँ
तो पता नहीं क्यों
काँप उठती है माँ
शापग्रस्त-सी
और फिर
अचानक
बाँध देती है मेरे पंख
हिदायतों की रेशमी डोर से
और तब
असहाय सी मैं
अपनी काली पुतलियों के बीच
समेटती ओस बिन्दु
सिर धुन कर रह जाती हूँ
परम्पराओं की
काली, ठोस धरती पर खडी.
9 comments
बहुत ही गहरे भाव हैं...आपने बहुत कुछ कह दिया...हम उड़ सकती हैं...क्यों नहीं...ऐसा क्यों सोचती हो कि आपके पंख बाँध दिए...पंख बाँधे नहीं गए..पंखों को सही दिशा में व सही ढंग से उड़ना सिखाया है माँ ने...जिन को यह शिक्षा नहीं मिलती वह जिन्दगी की बहुत सी नियामतों से दूर रह जातीं हैं...आप भाग्यशाली हो आपको यह शिक्षा मिली है!!!
ReplyDeleteप्रियंका जी,
ReplyDelete`काली पुतलियों के बीच ओस बूंद `
अभिनव प्रयोग
ओस की बूंदे सुबह तक अपने को सजाये रखती हैं और सूरज के किरणों का आलिंगन करके जीवन के अनगिनत रंगों के इन्द्रधनुष में आशाओं के रंग भर कर स्वयं को समर्पित कर देती हैं !
आपकी कविता जीवन -आशा के ऐसे ही समर्पित भावों के रंगों का दस्तावेज़ है!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
bhabi ji very nice poem me and mummy both liked it a lot.this is a very high hight of imagination.amazing
ReplyDeleteआप सभी का बहुत शुक्रिया...।
ReplyDeleteकल्पनाओ की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति sparkindians.blogspot.com
ReplyDeleteआपको जो मैंने पहले कहा था वही फिर से कहूँगा,
ReplyDeleteमाँ भी क्या करे,समाज ही ऐसा है अपना..
प्रियंका जी ...क्या गज़ब का लिखा हैं दोस्त तुमने....जादू हैं तुम्हारी कलम में ....बहुत ही ममस्पर्शी भाव हैं तुम्हारी इस सुन्दर कविता में....खुले आंसमां में उड़ने वाले पक्षी के दर्द को जिस खूबी से तुमने अपनी सुन्दर पंक्तियूं में ढाला हैं वो तारीफे काबिल हैं दोस्त....बहुत लम्बी उड़ान भरोगी तुम ...मेरी यही दुआ हैं उस रब से !!!
ReplyDeleteप्रियंका जी ...क्या गज़ब का लिखा हैं दोस्त तुमने....जादू हैं तुम्हारी कलम में ....बहुत ही ममस्पर्शी भाव हैं तुम्हारी इस सुन्दर कविता में....खुले आंसमां में उड़ने वाले पक्षी के दर्द को जिस खूबी से तुमने अपनी सुन्दर पंक्तियूं में ढाला हैं वो तारीफे काबिल हैं दोस्त....बहुत लम्बी उड़ान भरोगी तुम ...मेरी यही दुआ हैं उस रब से !!!
ReplyDeleteढेर सारी बधाईयाँ दोस्त !!!
प्रियका जी नमस्कार । सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ।
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