Saturday, March 13, 2010
Hi,
आज कुछ नया नहीं लिख रही...बस कुछ लोगो ने कहा , अपनी शुरुआत के बारे में बताओ...तो बताने का काम फिलहाल टाल रही हूँ , (कबीर जी से क्षमायाचना सहित ) , पर अपनी पहली रचना आप के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ , जो मैंने तब लिखी थी जब मैं मात्र छह या सात साल की थी...और ये रचना छपी भी थी | इसी रचना के छपने से मेरा उत्साह बढा और मैं यहाँ हूँ...|
बस एक बात और...बच्चों को प्रोत्साहन जरुर दीजिए...उनकी कला को बचकाना समझने की बड़ी भूल मत कीजिए...| न जाने कब आपका बच्चा वह काम कर गुज़रे की आप कहें...मुझे गर्व है तुम पर...|
लल्लू और मल्लू
एक था लल्लू, एक था मल्लू
दोनो मिल के गए बाजार,
राह में मिल गई बिल्ली मौसी,
छोड के भागे झोला दोनो
जान बची और लाखों पाए
लौट के बुद्धू घर को आए.
आज बस इतना ह़ी...फिर मिलते हैं...तब तक
अपना ख्याल रखिए...
4 comments
वाह प्रियंका जी बहुत अच्छा लगा आपके बारे मे जान कर अच्छी रचना लिखी है सात साल की उम्र मे । ऐसे ही लिखती रहो शुभकामनायें
ReplyDeleteशाबाश बच्चे !
ReplyDelete"होनहार विरवान के होत चीकने पात " सही चरितार्थ कर रही हो ! शुभकामनायें !
शुक्रिया कपिला जी और सतीश जी,
ReplyDeleteपर सतीश जी शायद कुछ गलतफ़हमी हुई है...
ये कविता मैने तब लिखी थी , जब सात साल की थी...
पर आज मै एक बच्चे की माँ हूँ...।
प्रोत्साहन जरुर दीजिए
ReplyDelete-यही मूल मंत्र है-क्या बच्चे, क्या बड़े..सभी को जरुरत है.
स्वागत है. अनेक शुभकामनाएँ.