कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे…
Friday, April 30, 2010नमस्कार ,
सोचा था अब की बार आप सब से अपनी बातों का यह क्रम टूटने नहीं दूँगी , पर अगर अपना सोचा ही सच हो तो रोना किस बात का…। कहते हैं ना , होनी होत बलवान…यही हुआ…।
सब कुछ अच्छा ही तो चल रहा था कि अचानक समय ने करवट बदली और सब कुछ उथल-पुथल कर दिया । मेरी मौसी , स्नेह ,जिन्हें मैं स्नेह आंटी कहा करती थी , जिनकी तन्दुरुस्ती के लिए हम छोटों को उनकी मिसाल दी जाती थी , डाक्टरों की लापरवाही की वजह से अचानक ही चली गई । एक गहरा आघात छोड गई । मन अब भी विश्वास नहीं करता…ऐसा कैसे हो सकता है…? अभी मानो तो कल की ही बात थी न कि मेरी उनसे बात हुई थी…। पर नही…उन्हें गए ही जब बीस दिन हो गए तो कल की बात कैसे हो सकती है…?
उनकी मौत ने बहुत सी सच्चाइयाँ सामने ला दी । एक तो यह कि कभी कोई अपना बीमार पडे तो सिर्फ़ एक डाक्टर की बात सही मत मानो…। एक पर किया गया विश्वास कभी-कभी इतना मँहगा पडता है कि उसका मोल जीवन से ही चुकाना पडता है…। कोई भी निर्णय लेने से पहले दूसरे , नहीं तो तीसरे डाक्टर के पास जाओ और अंत में अपनी अक्ल लगाओ । दूसरी सच्चाई रिश्तों की…। मेरी स्नेह आँटी की मौत की खबर सुन कर जहाँ एक ओर बहुत से लोगों ने शोक जताते हुए सान्त्वना के शब्द बोले , वहीं मैने कुछ ऐसे भी महान आत्माओं को पहचाना , जिन्होंने सुन कर कहा अच्छा…और फिर छूटते ही पूछा , इस छुट्टी में कोई नई फ़िल्म देखी…? मैं पहले तो आश्चर्यचकित सी उन्हें देखती रही , फिर लगा शायद वे समझ नहीं पाए…। एक बार फिर बताया , मेरी सगी मौसी थी…उनकी गोद में खेल के बडी हुई…। इस समय क्या फ़िल्म देखने की मनस्थिति में हूँ…? और उनका जवाब सुनेंगे…तो क्या हुआ…थी तो मौसी ही न…। मन हुआ , घुमा के दूँ एक…। क्या मौसी-मामा , चाचा-ताऊ , नाना-नानी , दादा-दादी का रिश्ता कोई महत्व ही नहीं रखता…। मर गए तो मर गए…??? ऐसे लोग मुझे इंसान कहलाने के लायक नहीं लगते…। ठीक है तुम्हे दुख नहीं , पर अगला किससे कितना जुडा है , इसके लिए तो दुख की घडी में उसका साथ दो…।
और फिर परायों की क्या कहूँ…। मैने तो अपने देखे…। मेरी सबसे बडी मौसी की लडकियाँ…। मेरी स्नेह आँटी उन पर जान छिडकती रही जीते-जी…। पर उनकी मौत पर वो ऐसे आई , जैसे किसी फ़न्क्शन में आई हों…। बढिया , चमकता हुआ नया सूट , दोनो हाथों में सोने की दमकती चूडियाँ , होंठो पर हल्की सी लिपिस्टिक का टच देना वो नहीं भूली थी…। अन्तिम विदाई से आधा घण्टा पहले आकर , सूखी आँखों के साथ उन्हों ने अपना सामाजिक कर्तव्य निबाह दिया । कायदे से इस लिए आई थी कि देखने वालों को उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में कोई संशय न रहे । मन खट्टा हो गया…।
खैर , कितना कहूँ…। ये सच आपसे अनजाने नहीं…पर मैने अपना दर्द बाँट लिया आपसे…। वक्त बीतेगा , दुख हल्का हो ही जाएगा । पर ज़िन्दगी में ऐसे लोगों के लिए शायद मन की खटास न जा सके…और नहीं जाएँगी तो मेरी स्नेह आँटी की यादें …उनके हाथों के बनाए स्वेटरों की गर्माहट…उनके हाथों के डाले गए अचार का स्वाद…मेरी खुशी में उनका वो खुश होकर हँसना…दुख में ढाँढस बँधाना…। बस अब नहीं लौटेगा तो उनका साथ , रोज हम दोनो का फोन पर घण्टों बतियाना , उनके हाथ का बनाया खाना…।
शेष फिर…मेरी स्नेह आँटी जहाँ भी हों , बस उनके लिए सुख-शान्ति की प्रार्थना में मेरे साथ रहिए…
अपना ख्याल रखिएगा…
3 comments
bahut acha likha hai, yadi apke pass kuch women se relative ho to send me my mail.
ReplyDeletegps.journalist@gmail.com
9960540397
बहुत दुख हुआ आपकी मौसी के देहावसान का सुन कर..
ReplyDeleteईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे एवं आप और आप्के परिवार को इस दुख को वहन करने की क्षमता दे.
ॐ शांति!!
आप सब का बहुत शुक्रिया...
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