जागते रहो बनाम बकते रहो...
Friday, April 11, 2014
आज सुबह की दूसरी कप चाय के साथ फ़ुर्सत के कुछ पल चुराए और अख़बार लेकर बैठ गई...। पन्ने पलटते-पलटते एक खबर पर निगाह पड़ गई...। बाकायदा बॉक्स बना कर हाइलाइट की गई थी...। ख़बर घर-परिवार से सम्बन्धित थी, तो दिन भर मचे चुनावी रेलमपेल से इतर एक ख़बर पढ़ने से खुद को नहीं रोक पाई...। समाचार दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित था, सो सोचा लगे हाथ देख तो लूँ...क्या है जिसे इतने अच्छे से हाइलाइट किया गया है..।
समाचार कुछ यूँ था...ब्रिटेन के मशहूर विवाह सलाहकार एन्ड्रियू जी. मार्शल की नई किताब- माइ हस्बैण्ड डज़ेन्ट लव मी एण्ड ही इज़ टेक्स्टिंग समवन एल्स- में दी गई कुछ अमूल्य-बहुमूल्य(???) टाइप की सलाहों को पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर दिया गया था। ‘चुन-चुन के मारूँगा’ स्टाइल चुन-चुन के सलाहें थी...एक से बढ़ कर एक...। बहुत आँखें गड़ा कर, चश्मा उतार कर, फिर उसे अच्छी तरह पोंछ-पाछ आँखों पर चढ़ा कर भी न्यूज़ दुबारा-तिबारा पढ़ी, पर पूरी ख़बर में मुझे कहीं भी दाम्पत्य जीवन में माधुर्य बनाए रखने के लिए पति को दी गई कोई सलाह नज़र नहीं आई। गोया सारा दोष सिर्फ़ पत्नी का ही होता हो...पति बेचारा, वक़्त और हालात का मारा, निरीह प्राणी...। सलाहें कुछ यूँ थी-
१) पति की सेवा करिए।
२) उसकी पसन्द का खाना बना कर खिलाइए।
३) उसके परिवार की सेवा करिए।
४) हर रिश्ते को पूरा मान-सम्मान दीजिए।
५) पति की बुरी आदतों पर भी टीका-टिप्पणी करके उसकी नाराज़गी न बढ़ाइए।
६) उसकी पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखिए। उसे अगर मैच पसन्द है तो खुद की पसन्द का प्रोग्राम देखने की बजाए आप भी मैच में रुचि जगाइए और उसके साथ देखिए।
७) सिर्फ़ परिवार के रिश्तों को ही नहीं,उसे भी वक़्त दीजिए। उसकी इच्छा-अनिच्छा का सम्मान कीजिए।
८) अगर उसकी या उसके परिवार वालों की किसी बात से आपको बुरा भी लगता है तो उसके विरोध में नाराज़ होने की बजाए नज़रअन्दाज़ कर दीजिए।
९) उसकी तीखी बातों को मज़ाक में लें, और
१०) खुद को उसके अनुसार ढालें...वगैरह...वगैरह...।
मार्शल जी की ये किताब चूँकि अभी आई है तो मैने नहीं पढ़ी, सो नहीं पता कि ये अंश ही उस पूरी किताब का सार हैं, या फिर पूरी किताब ही इस तरह की सलाहों-बातों से भरी पड़ी है। अगर ऐसा है तब तो अच्छा है कि मैने वो किताब नहीं पढ़ी...पढ़ना चाहूँगी भी नहीं...।
मुझे कोफ़्त इस बात से नहीं है कि उस पुस्तक में ये सलाहें क्यों हैं...। जहाँ इन वजहों से दरार बढ़ रही हो तो वहाँ इन्हें लागू करने में, आजमाने में कोई हर्ज़ नहीं है...। मुझे तो अफ़सोस इस बात का है कि आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के मध्य में पहुँच कर भी चाहे भारत हो या ब्रिटेन...पुरुषवादी समाज की सोच वही है...। समझौता-सुधार की आशा हमेशा औरतों से ही क्यों की जाती है...? पति के अनुसार ढलने की, उनकी इच्छा-अनिच्छाओं, उनके रिश्तों का सम्मान करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ औरत की ही क्यों...? उनकी पसन्द-नापसन्द का ध्यान पत्नी रखे...अच्छा है ये...पर पत्नी की पसन्द-नापसन्द...? क्या इन सब चीज़ों का पत्नी के लिए कोई मोल नहीं...? क्या उसके सपने, उसके अरमानों की कोई कीमत नहीं...? क्यों नहीं पति से बोला जाता कि वो भी पत्नी के लिए, उसके अनुसार थोड़ा ही सही, पर खुद को बदले...। जो आदतें...जो बातें उसको नागवार गुज़रती हैं उनको बदले...। कभी उसके बनाए खाने की दिल से तारीफ़ करे...। उसके परिवार, उसके रिश्तों का सम्मान करे...। कभी मैच देखना स्थगित करके उसके साथ, उसकी पसन्द की मूवी ही देख ले..., वगैरह...वगैरह...।
आज पूरी दुनिया में लोग चीख-चीख कर कहते नहीं थकते कि औरत और मर्द एक समान हैं...। उनके समान अधिकार के लिए कानून हैं...। हर क्षेत्र में लड़कियों को आगे बढ़ने की पूरी सुविधा मुहैया कराई जा रही है...। पर सवाल ये है कि बाहरी दुनिया में इन सुविधाओं, इन अधिकारों से क्या फ़ायदा यदि जिस जगह उसके जड़े हैं, वहीं खाद-पानी न दिया जाए...। उसके सपनों-अरमानों-इच्छाओं को समुचित धूप और हवा न मिले...। अगर घर की दहलीज़ के अन्दर ही उसे एक इंसान होकर जीने की आज़ादी नहीं, उसे एक हाड़-माँस वाली रोबोट माना जाता हो, जो महज पति के हाथ में थमे एक रिमोट कन्ट्रोल के हिसाब से सोचेगी..करेगी तो कानून से मिलने वाले अधिकार और लाभ तो बेमानी ही हैं न...।
सच्चाई तो ये है कि इस समाज, इस दुनिया में एक इंसान की तरह जी सकने वाली स्त्रियाँ शायद एक लुप्तप्रायः जीव-प्रजाति से भी कम हैं संख्या में...और उनके अस्तित्व-रक्षा के लिए उठने वाली हर आवाज़ के प्रति पितृसत्तात्मक सोच रखने वाले इस समाज ने बिल्कुल वही रवैया अपनाया हुआ है, जैसे एक गहरी नींद में ऊँघ रहा व्यक्ति चौकीदार की ‘जागते रहो’ आवाज़ को सुन कर भी बेखबर सो जाता है...मानो ऊब कर कह रहा हो...बकते रहो...।
समाचार कुछ यूँ था...ब्रिटेन के मशहूर विवाह सलाहकार एन्ड्रियू जी. मार्शल की नई किताब- माइ हस्बैण्ड डज़ेन्ट लव मी एण्ड ही इज़ टेक्स्टिंग समवन एल्स- में दी गई कुछ अमूल्य-बहुमूल्य(???) टाइप की सलाहों को पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर दिया गया था। ‘चुन-चुन के मारूँगा’ स्टाइल चुन-चुन के सलाहें थी...एक से बढ़ कर एक...। बहुत आँखें गड़ा कर, चश्मा उतार कर, फिर उसे अच्छी तरह पोंछ-पाछ आँखों पर चढ़ा कर भी न्यूज़ दुबारा-तिबारा पढ़ी, पर पूरी ख़बर में मुझे कहीं भी दाम्पत्य जीवन में माधुर्य बनाए रखने के लिए पति को दी गई कोई सलाह नज़र नहीं आई। गोया सारा दोष सिर्फ़ पत्नी का ही होता हो...पति बेचारा, वक़्त और हालात का मारा, निरीह प्राणी...। सलाहें कुछ यूँ थी-
१) पति की सेवा करिए।
२) उसकी पसन्द का खाना बना कर खिलाइए।
३) उसके परिवार की सेवा करिए।
४) हर रिश्ते को पूरा मान-सम्मान दीजिए।
५) पति की बुरी आदतों पर भी टीका-टिप्पणी करके उसकी नाराज़गी न बढ़ाइए।
६) उसकी पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखिए। उसे अगर मैच पसन्द है तो खुद की पसन्द का प्रोग्राम देखने की बजाए आप भी मैच में रुचि जगाइए और उसके साथ देखिए।
७) सिर्फ़ परिवार के रिश्तों को ही नहीं,उसे भी वक़्त दीजिए। उसकी इच्छा-अनिच्छा का सम्मान कीजिए।
८) अगर उसकी या उसके परिवार वालों की किसी बात से आपको बुरा भी लगता है तो उसके विरोध में नाराज़ होने की बजाए नज़रअन्दाज़ कर दीजिए।
९) उसकी तीखी बातों को मज़ाक में लें, और
१०) खुद को उसके अनुसार ढालें...वगैरह...वगैरह...।
मार्शल जी की ये किताब चूँकि अभी आई है तो मैने नहीं पढ़ी, सो नहीं पता कि ये अंश ही उस पूरी किताब का सार हैं, या फिर पूरी किताब ही इस तरह की सलाहों-बातों से भरी पड़ी है। अगर ऐसा है तब तो अच्छा है कि मैने वो किताब नहीं पढ़ी...पढ़ना चाहूँगी भी नहीं...।
मुझे कोफ़्त इस बात से नहीं है कि उस पुस्तक में ये सलाहें क्यों हैं...। जहाँ इन वजहों से दरार बढ़ रही हो तो वहाँ इन्हें लागू करने में, आजमाने में कोई हर्ज़ नहीं है...। मुझे तो अफ़सोस इस बात का है कि आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के मध्य में पहुँच कर भी चाहे भारत हो या ब्रिटेन...पुरुषवादी समाज की सोच वही है...। समझौता-सुधार की आशा हमेशा औरतों से ही क्यों की जाती है...? पति के अनुसार ढलने की, उनकी इच्छा-अनिच्छाओं, उनके रिश्तों का सम्मान करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ औरत की ही क्यों...? उनकी पसन्द-नापसन्द का ध्यान पत्नी रखे...अच्छा है ये...पर पत्नी की पसन्द-नापसन्द...? क्या इन सब चीज़ों का पत्नी के लिए कोई मोल नहीं...? क्या उसके सपने, उसके अरमानों की कोई कीमत नहीं...? क्यों नहीं पति से बोला जाता कि वो भी पत्नी के लिए, उसके अनुसार थोड़ा ही सही, पर खुद को बदले...। जो आदतें...जो बातें उसको नागवार गुज़रती हैं उनको बदले...। कभी उसके बनाए खाने की दिल से तारीफ़ करे...। उसके परिवार, उसके रिश्तों का सम्मान करे...। कभी मैच देखना स्थगित करके उसके साथ, उसकी पसन्द की मूवी ही देख ले..., वगैरह...वगैरह...।
आज पूरी दुनिया में लोग चीख-चीख कर कहते नहीं थकते कि औरत और मर्द एक समान हैं...। उनके समान अधिकार के लिए कानून हैं...। हर क्षेत्र में लड़कियों को आगे बढ़ने की पूरी सुविधा मुहैया कराई जा रही है...। पर सवाल ये है कि बाहरी दुनिया में इन सुविधाओं, इन अधिकारों से क्या फ़ायदा यदि जिस जगह उसके जड़े हैं, वहीं खाद-पानी न दिया जाए...। उसके सपनों-अरमानों-इच्छाओं को समुचित धूप और हवा न मिले...। अगर घर की दहलीज़ के अन्दर ही उसे एक इंसान होकर जीने की आज़ादी नहीं, उसे एक हाड़-माँस वाली रोबोट माना जाता हो, जो महज पति के हाथ में थमे एक रिमोट कन्ट्रोल के हिसाब से सोचेगी..करेगी तो कानून से मिलने वाले अधिकार और लाभ तो बेमानी ही हैं न...।
सच्चाई तो ये है कि इस समाज, इस दुनिया में एक इंसान की तरह जी सकने वाली स्त्रियाँ शायद एक लुप्तप्रायः जीव-प्रजाति से भी कम हैं संख्या में...और उनके अस्तित्व-रक्षा के लिए उठने वाली हर आवाज़ के प्रति पितृसत्तात्मक सोच रखने वाले इस समाज ने बिल्कुल वही रवैया अपनाया हुआ है, जैसे एक गहरी नींद में ऊँघ रहा व्यक्ति चौकीदार की ‘जागते रहो’ आवाज़ को सुन कर भी बेखबर सो जाता है...मानो ऊब कर कह रहा हो...बकते रहो...।
4 comments
Very apt and well put.
ReplyDeleteबेशक यह अनुचित है पर फिर भी सब इस व्यवस्था में जी रहे हैं पुरे विश्व की औए देखें सब जगह पुरुष प्रधान समाज ही है
ReplyDeleteMrg k baad life itni bekar ho jaati hai har kisi ki pasand ka dhyan rakho din bhar kaam kro ek machine ki tere apni har wish ka sacrifice kro mrg ke baad agr ye sb hona hai to mein to mrg krne wali nhi hoo
ReplyDeleteHum hi har baat k liye sacrifise kyu kre husband ko bhi sacrifise krna chiye ladki k sath hi kyu hota hai easa har baat pr girls kyu samjhota kre saddi k baad ladki apna ghr chod k us ajnebi k ghar pr jaye waha pr bhi ldki apne ko adjust kre kyu
Boys ko krna chiye na har bar ladki hi kyu
Kya girls mein jyada shen skti hoti hai har baat k liye ladki ko kyu toka jata hai
I hate married life
Ab to mrg krni hi nhi kbhi bhi nhi
Mrg k baad ye sb kaam krna padega har kisi ki pasand -na pasand ka dhyan rakhna padega wo bhi ek easi fmly jo ajneebi hai unke hi dhang mein dhalna padega
ReplyDeleteApni har wish k liye sacrifise krna or us ajneebi ki sari wish puri krna jis kaam ko krne ko bole wo kaam krna machine ki tere kaam krna pura din
Never mein ye sb kbhi nhi krungi or na hi mrggg
Life kyu bekar krni shaadi krke